Delhi Assembly Election 2025: दिल्‍ली विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो चुका है. 5 फरवरी को दिल्‍ली की सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग होगी और 8 फरवरी को चुनाव के नतीजे सामने आएंगे. दिल्‍ली को जीतने के लिए आप, बीजेपी और कांग्रेस तीनों पार्टियां अपना पूरा जोर लगा रही हैं. दिल्‍ली में किसकी सरकार बनेगी, ये तो नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन इस बीच हम आपको बताने जा रहे हैं, दिल्‍ली विधानसभा की उस सीट के बारे में जिसको लेकर मान्‍यता है कि यहां से दिल्‍ली की किस्‍मत तय होती है. जो उम्‍मीदवार इस सीट से जीतता है, राज्‍य में उसकी ही सरकार बनती है. 

दिल्‍ली की हॉटसीट में शामिल है ये सीट

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हम बात कर रहे हैं पटपड़गंज सीट की, जो दिल्ली विधानसभा चुनाव की हॉट सीट में शामिल है. पूर्वी दिल्ली की पटपड़गंज सीट से जुड़े दो मिथक बड़े रोचक हैं. पहला मिथक है कि यहां बाहरियों पर स्थानीयों ने भरपूर प्यार लुटाया है. वहीं दूसरा मिथक है कि जिस पार्टी के उम्मीदवार ने इस सीट से जीत हासिल की, दिल्‍ली में उसकी ही सरकार बनी है.

1993 से अब तक जो जीता, उसी की बनी सरकार

इस सीट के इतिहास पर नजर डालें तो पहली बार यानी 1993 में भाजपा के ज्ञान चंद इस सीट से जीते थे, वो भी बाहरी थे. इस क्षेत्र के नहीं, बल्कि कृष्णानगर के घोंडली के रहने वाले थे. 1993 में यहां भाजपा की सरकार बनी थी. उसके बाद 1998, 2003, 2008 के तीन चुनाव में लगातार कांग्रेस को जीत मिली, तो दिल्‍ली में कांग्रेस की 15 साल तक सरकार रही. उसके बाद 2013, 2015 और 2020 में नई नवेली पार्टी 'आप' की झाड़ू चली. मनीष सिसोदिया लगातार जीतते रहे और दिल्‍ली की सत्ता पर भी आम आदमी पार्टी का कब्जा रहा. कुल मिलाकर 1993 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव से लेकर साल 2020 तक ऐसा हुआ ही नहीं कि सीट पर किसी स्थानीय नेता का सिक्का जमा हो. बाहरी ने ही यहां से बाजी मारी. 

पहले आरक्षित थी ये सीट, अब सामान्‍य हो गई

1993 से लेकर 2008 तक ये आरक्षित सीट थी, बाद में परिसीमन के बाद सामान्य हो गई. यहां पूर्वांचल और उत्तराखंड के लोगों की आबादी ठीक-ठाक है. यही वजह है कि उत्तराखंड मूल के भाजपा प्रत्याशी रविंदर सिंह नेगी ने मनीष सिसोदिया को तगड़ी टक्कर दी और सिसोदिया के जीत के आंकड़े को कम कर दिया. हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी (आप) ने मनीष सिसोदिया को यहां से नहीं खड़ा किया, बल्कि जंगपुरा सीट से उम्मीदवार बनाया है. 

दिल्‍ली की पटपड़गंज सीट की आबादी

भारत की 2001 की जनगणना के अनुसार, पटपड़गंज की आबादी लगभग 34,409 थी, जिसमें 55% पुरुष और 45% महिलाएं थीं. औसत साक्षरता दर 70% दर्ज की गई, जिसमें पुरुष साक्षरता 74% और महिला साक्षरता 64% थी. वहीं स्टेट इलेक्शन कमीशन परिसीमन ड्राफ्ट 2022 के मुताबिक कुल आबादी 2,21,317 21317 है और 30,305 अनुसूचित जाति की संख्या है.

कैसे इस जगह का नाम पड़ा पटपड़गंज

वैसे ये सीट किसी जमाने में जंग का मैदान भी रही है. मराठा और अंग्रेजों के बीच इसी जमीन पर लड़ाई लड़ी गई. पटपड़गंज का अटपटा नाम भी अक्‍सर लोगों के जेहन को कुरेदता है. दरअसल, पटपड़गंज एक उर्दू शब्द है. पटपड़ का मतलब जमीन का निचला सपाट हिस्सा होता है, जहां खेती नहीं की जा सकती और गंज का अर्थ बाजार होता है, यानी वो इलाका जहां खेती नहीं हो सकती, लेकिन व्यापार हो सकता है. आज भी इस इलाके में कई फैक्ट्रियां हैं, जो कइयों को रोजगार देती हैं.

ये हैं इस सीट में मुद्दे

मुद्दों की बात करें तो सुरक्षा, पार्किंग, अतिक्रमण, साफ-सफाई, आवारा पशु यहां का बड़ा मुद्दा हैं. विधानसभा क्षेत्र में नगर निगम के चार वॉर्ड मंडावली, विनोद नगर, मयूर विहार फेज दो और पटपड़गंज आते हैं. दिलचस्प बात ये है कि चार में से तीन पर भाजपा के पार्षद हैं. लगभग 15 अवैध कॉलोनियां और तीन गांव इस पूर्वी दिल्ली क्षेत्र में आते हैं. 50 से ज्यादा ग्रुप हाउसिंग सोसायटीज हैं, तो वहीं झुग्गी झोपड़ी और कुछ रेसिडेंशियल कॉलोनियां भी हैं. इन सब किंतु परंतु और समीकरणों के बीच आप ने फिर बाहरी अवध ओझा को टिकट थमाया है. कांग्रेस ने अनिल चौधरी को तो भाजपा ने रविंद्र नेगी को, जिन्होंने सिसोदिया को कड़ी टक्कर देते हुए जीत के मार्जिन को कम कर दिया था.