Chhadi Mar Holi 2023 in Gokul: ब्रज की होली का अपना अलग ही आनंद है. ब्रज क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्‍ण का बचपन बीता है, इसलिए यहां के लोग आज भी श्रीकृष्‍ण लीलाओं को विरासत के तौर पर समेटे हुए हैं. हर साल बरसाना, नंदगांव, गोकुल और मथुरा के तमाम क्षेत्रोंं में होली के मौके पर खास आयोजन किया जाता है जिसमें श्रीकृष्‍ण की होली की लीलाओं को जीवन्‍त किया जाता है. ब्रज की होली का आनंद लेने के लिए दूर दूर से लोग मथुरा आते हैं. यहां होली का आयोजन कई दिन पहले से हो जाता है और हर दिन लोग अलग-अलग तरह की होली खेलते हैं. बरसाना और नंदगांव की लट्ठमार होली तो विश्‍व प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए लोग देश-विदेश से मथुरा आते हैं.

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बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली (Lathmar Holi) के बाद गोकुल में छड़ीमार होली (Chhadi Mar Holi 2023) खेली जाती है. ये होली फाल्‍गुन मास की शुक्‍ल पक्ष की द्वादशी तिथि को खेली जाती है. इस दिन ब्रज की गोपियां, लाठी की बजाय छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती हैं. आज 4 मार्च को गोकुल में छड़ी मार होली का आयोजन किया जा रहा है. इस मौके पर यहां जानिए छड़ीमार होली से जुड़ी खास बातें.

कई दिन पहले से होती हैं तैयारियां

गोकुल की छड़ी मार होली की शुरुआत यमुना किनारे स्थित नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर होती है. इसके लिए कई दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इस दिन कान्हा की पालकी के पीछे-पीछे गोपियां सज धज कर हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं. ये परंपरा यहां सालों से चल रही है.  

इसलिए लाठी की जगह छड़ी का होता है इस्‍तेमाल

वास्‍तव में छड़ीमार होली कृष्‍ण के प्रति प्रेममयी और भावमयी होली का प्रतीक है. दरअसल भगवान कृष्‍ण ने ब्रज में अपना बचपन कान्‍हा के तौर पर बिताया है. कान्‍हा बचपन में बहुत नटखट हुआ करते थे और गोपियों को सताया करते थे. ऐसे में कान्‍हा को सबक सिखाने के लिए गोपियां हाथ में छड़ी लेकर कान्‍हा की पालकी के पीछे-पीछे चलती हैं. बाल कृष्ण को कहीं चोट न लग जाए, इसलिए लाठी की जगह छड़ी का इस्‍तेमाल किया जाता है.

गोपियों को 10 दिन पहले से किया जाता है तैयार

छड़ीमार होली खेलने वाली गोपियों को 10 दिन पहले से दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है. लट्ठमार होली की तरह ही छड़ीमार होली का भी अपना अलग महत्‍व है. छड़ीमार होली देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु गोकुल में आते हैं.

 

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