Chandrayaan-3: जिस चांद की खूबसूरती की मिसाल दी जाती है, उसमें आखिर इतने गड्ढे क्यों?
चंद्रयान ने जब चांद की तस्वीरें लेकर भेजीं, तो उसमें बड़े-बड़े गड्ढे नजर आ रहे थे. ये वही चांद है जिसकी खूबसूरती की मिसालें सालों से दी जा रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है इन गड्ढों की वजह.
Chandrayaan-3 चांद का ऑर्बिट पकड़ने के बाद से चंद्रमा की ओर तेजी से बढ़ रहा है. इसे देखकर इसरो को भी उम्मीद है कि चंद्रयान 23 अगस्त को सफलतापूर्वक चांद पर लैंडिंग कर लेगा. चांद के ऑर्बिट में प्रवेश करने के साथ ही चंद्रयान ने चांद की कुछ तस्वीरें भेजी थीं, जिस इसरो ने शेयर किया. इस तस्वीर में चांद पर बड़े-बड़े गड्ढे नजर आ रहे हैं. आमतौर पर चांद की खूबसूरती की मिसाल दी जाती है. कई फिल्मी गानों, शायरी, कविताओं में चांद की खूबसूरती का जिक्र किया गया है. ऐसे में चांद की गड्ढे वाली तस्वीर को देखकर कुछ तो खयाल आपके भी मन में आया होगा? आइए आपको बताते हैं चांद पर आखिर इतने गड्ढे क्यों हैं.
ये है इन गड्ढों की वजह
साल 2019 में चंद्रयान-2 के मिशन के दौरान भी चांद की कुछ तस्वीरें सामने आयी थीं, जिसमें चांद पर काले धब्बे और बड़े-बड़े गड्ढे नजर आ रहे थे. उस समय इसरो ने इसकी वजह को बताया था. इसरो के मुताबिक चांद की सतह पर अक्सर उल्कापिंड, छोटे ग्रह और धूमकेतु टकराते रहते हैं. इनके टकराने की वजह से ये गड्ढे बने हैं. वहीं कुछ गड्ढे ज्वालामुखी की वजह से बने हैं. ये गड्ढे हजारों-लाखों सालों से बनते आ रहे हैं. जब चांद बना था, तब ये गड्ढे उसमें नहीं थे, ये बाद में बनने शुरू हुए. आज चंद्रमा पर ऐसे लाखों गड्ढे हैं. तमाम को तो अंधेरे वाले हिस्से में देखा भी नहीं जा सकता.
धरती की तरह भर नहीं पाते चांद के गड्ढे
अंतरिक्ष से आने वाले पत्थर, उल्कापिंड धरती पर भी गिरते रहते हैं. इन्हें इम्पैक्ट क्रेटर कहा जाता है. धरती पर अभी तक ऐसे 180 इम्पैक्ट क्रेटर खोजे गए हैं. लेकिन ये समय के साथ पट जाते हैं. चांद पर न तो पानी है. न वायुमंडल और न ही धरती की तरह टेक्टोनिक प्लेट. इन कारणों से वहां मिट्टी कटती नहीं है और इरोशन नहीं होता है. इसलिए गड्ढे भर नहीं पाते. जबकि धरती पर इन गड्ढों पर मिट्टी जम जाती है, पानी भर जाता है और पौधे उग आते हैं. इसके कारण ये गड्ढे भर जाते हैं.
काले धब्बे की वजह
चांद पर काले धब्बे को लेकर माना जाता है कि ये चांद पर समुद्र थे, जिसमें पानी नहीं, लावा भरा था. जब बहुत बड़ी-बड़ी चट्टानें जाकर चांद से टकराईं तो धमाके से बड़े-बड़े गड्ढे बने, साथ ही चांद की बाहरी सतह फट गई. इससे अंदर का लावा बाहर आकर गड्ढे में भर गया. बाद में लावा ठंडा होने के बाद जम गया और काली चट्टानों में तब्दील हो गया. अब यही जमा हुआ लावा हमें काले धब्बे के रूप में दिखता है.
23 अगस्त को लैंडिंग करेगा चंद्रयान
बता दें अभी फिलहाल चंद्रयान-3 चांद के चारों तरफ 1900 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से चांद के चारों तरफ 170 km x 4313 km के अंडाकार ऑर्बिट में यात्रा कर रहा है. 9 अगस्त की दोपहर पौने दो बजे करीब इसके ऑर्बिट को बदलकर 4 से 5 हजार किलोमीटर की ऑर्बिट में डाला जाएगा. इसके बाद 14 अगस्त की दोपहर इसे घटाकर 1000 किलोमीटर किया जाएगा. पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में इसे 100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा. 17 अगस्त को प्रोपल्शन और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे और 18 से 20 अगस्त के बीच डीऑर्बिटिंग होगी. 23 अगस्त को शाम करीब 5 बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी.