Bharat Bandh: आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का कोटा के भीतर कोटा (Quota within Quota Judgement) वाले फैसले के विरोध में आज 21 अगस्‍त को दलित संगठनों ने भारत बंद का आवाह्न किया है. इसके साथ ही उन्होंने  अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की कई मांगों की एक लिस्ट भी जारी की है. भारत बंद को बहुजन समाज पार्टी समेत कई राजनीतिक दलों का साथ भी मिला है. ऐसे में भारत बंद का असर कहां और कितना है? क्‍या खुला रहेगा और क्‍या बंद रहेगा, यहां जानिए इसके बारे में.

क्‍या बंद रहेगा और क्‍या खुला रहेगा

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भारत बंद के चलते देश में कहां क्‍या बंद रहेगा और क्‍या खुला रहेगा, इसको लेकर किसी तरह का आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है. लेकिन माना जा रहा है कि इसकी वजह से तमाम जगहों पर सार्वजनिक परिवहन सेवा प्रभावित हो सकती है. हालांकि इसके बावजूद सार्वजनिक परिवहन, रेल सेवाएं चालू रहेंगी. बैंक, सरकारी दफ्तरों में सामान्‍य तरीके से काम होगा. शिक्षण संस्थान भी खुले रहेंगे. एंबुलेंस, हॉस्पिटल और चिकित्सा सेवाओं सहित इमरजेंसी सेवाएं खुली रहेंगी. आयोजकों ने लोगों से बड़ी संख्या में शांतिपूर्ण तरीके से भाग लेने का आग्रह किया है.

कहां कितना असर

वैसे तो 'भारत बंद' का आवाह्न पूरे देश में किया गया है, लेकिन कुछ राज्‍यों में इसका ज्‍यादा असर देखने को मिल सकता है जैसे- उत्‍तर प्रदेश, बिहार, राजस्‍थान, झारखंड जैसे राज्‍य भारत बंद से प्रभावित हो सकते हैं. भारत बंद की वजह से राजस्‍थान में सवाई माधोपुर, जयपुर, दौसा, भरतपुर, डीग और गंगापुर में स्‍कूलों में छुट्टी की गई है. सवाई माधोपुर में इंटरनेट सेवाएं भी बंद हैं. इसके अलावा वहां आज कोचिंग संस्थानों से लेकर आंगनबाड़ी और लाइबेरी भी बंद रहेंगे. हालांकि देश की राजधानी दिल्‍ली में भारत बंद का बहुत ज्‍यादा असर देखने को नहीं मिलेगा.

भारत बंद को इन राजनीतिक दलों का मिला साथ

भारत बंद को तमाम राजनीतिक दलों का भी साथ मिल गया है. इसमें मायावती की बसपा (BSP), हेमंत सोरेन की जेएमएम (JMM) और लालू प्रसाद याद की पार्टी राजद (RJD) का नाम शामिल है. साथ ही भीम आर्मी ने भी इसका समर्थन किया है.

क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिसका हो रहा विरोध

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 1 अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर पर बड़ा फैसला दिया था. सर्वोच्‍च अदालत ने कहा कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा (Quota within Quota Judgement) बनाने का अधिकार है यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी उसी तरह लागू होता है, जैसे यह ओबीसी पर लागू होता है.

क्‍या है कोटे के अंदर कोटा

कोटा के भीतर कोटा होने का मतलब है कि आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर ही अलग से एक आरक्षण व्‍यवस्‍था लागू कर देना, ताकि आरक्षण का लाभ उन जरूरतमंदों तक भी पहुंचे जो अक्‍सर इसमें उपेक्षित रह जाते हैं. बता दें कि साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में जो फैसला दिया था वो इसका बिल्‍कुल उलट था. तब सर्वोच्‍च अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं. इस फैसले के साथ सर्वोच्‍च अदालन ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है.