Sebi: बड़े शेयर और कमोडिटी ब्रोकर्स के लिए जल्द ही नए नियम लाकर निगरानी बढ़ाने की तैयारी है. ताकि निवेशकों और पूरे मार्केट के लिए जोखिम को कम किया जा सके. ज़ी बिजनेस ने जून में बताया था कि रिजर्व बैंक (RBI) जिस तरह से 'टू बिग टू फेल' वाले बैंक जिन्हें सिस्टमकली इंपॉर्टेंट बैंक कहा जाता है. उसी तर्ज पर सिस्टमकली इंपॉर्टेंट ब्रोकर्स के कॉन्स्पेट पर विचार कर रही है. अब ताजा अपडेट ये है कि इस पर चर्चा हो रही है और आगे रेगुलेशन लाने की तैयारी है. सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने सेबी ने इसी मामले पर ब्रोकर्स की बैठक बुलाई थी. जिसमें मोटे तौर संभावित नियमों की जानकारी दे दी गई है.

कहां होगा फोकस

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सूत्रों की मानें तो सेबी (Sebi) का सबसे ज्यादा फोकस ब्रोकर्स के लिए कॉरपोरेट गवर्नेंस नियम लाने पर है. जिसमें इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति, ऑडिट कमेटी बनाने, रिस्क मैनेजमेंट कमेटी बनाने जैसी बातें शामिल की जाएंगी. ताकि बोर्ड की निगरानी में ब्रोकिंग फर्म्स में कोई गड़बड़ी नहीं होने पाए. इसके अलावा कंप्लायंस बेहतर और तकनीकी तौर पर ब्रोकिंग फर्म्स बेहतर तरीके से काम कर पाएं ये भी पक्का किया जाएगा. साइबर सेफ्टी भी एक अहम हिस्सा होगा.

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कब से होगा अमल

सूत्रों की मानें तो सब कुछ ठीक चले तो सेबी की मंशा इसे नए कारोबारी साल से अमल में लाने की है. इसी मामले पर चर्चा के लिए सेबी ने पिछले महीने सभी बड़े ब्रोकर्स को बुलाकर बैठक की थी. जिसमें मौटे तौर पर ड्राफ्ट नियमों को लेकर चर्चा की गई. दरअसल,शेयर बाजार के कामकाज में ब्रोकर काफी अहम कड़ी हैं। इसलिए अगर किसी बड़े ब्रोकर का कारोबार ठप होता है या फिर किसी तरह की गड़बड़ी होती है तो बाजार के एक बड़े हिस्से पर प्रभाव पड़ता है. ऐसे में सेबी ऐसी चिंताओं को दूर करना चाहती है.

चुनाव के लिए किन पैमानों पर विचार

जानकारों की मानें तो सिस्टमकली इंपॉर्टेंट ब्रोकर्स के चुनाव के लिए सबसे अहम पैमाना क्लाइंट्स की संख्या हो सकती है. इसके अलावा ब्रोकिंग फर्म्स का टर्नओवर और क्लाइंट्स की कितनी बड़ी रकम वो संभालते हैं ये भी एक पैमाना हो सकता है. सेबी इसके अलावा दूसरे और पैमाने भी तय कर सकती है.

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नियम जरूरी क्यों

ब्रोकिंग फर्म मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर तक देश के सबसे बड़े एक्सचेंज NSE के कुल एक्टिव क्लाइंट्स की संख्या का 59% टॉप 5 डिस्काउंट ब्रोकिंग फर्म्स के पास है, जबकि बड़े डिस्काउंट ब्रोकिंग फर्म्स की शुरुआत एक तरह से स्टार्टअप से हुई है. स्टार्टअप्स में कुछ गिनती के लोग ही डिसीजन मेकर होते है. इसका फायदा ये होता है कि फैसले तेजी से होते हैं. अमल भी तेज होता है लेकिन सेबी की मंशा है कि नए नियमों के जरिए व्यवस्था को और बेहतर किया जाए. ताकि कोई गड़बड़ी होने पर विपरीत असर कम हो.

सूत्रों के हवाले से खबर-

  • बड़े ब्रोकर्स के लिए खास दर्जा जल्द 
  • बड़े ब्रोकर्स के लिए सिस्टमकिली इंपॉर्टेंट ब्रोकर का दर्जा 
  • कॉरपोरेट गवर्नेंस को बेहतर करने पर सेबी का जोर होगा 
  • जैसे कि इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स हों, ऑडिट कमेटी आदि रहे 
  • रिस्क मैनेजमेंट, कंप्लायंस, साइबर सेफ्टी भी अहम रहेंगे  
  • नए कारोबारी साल से अमल में लाया जा सकता है नियम 
  • निवेशकों की बड़ी रकम के जोखिम देखते हुए नए नियम  
  • ज़ी बिज़नेस ने जून में बताया था कि कॉन्सेप्ट पर विचार  

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एक्टिव क्लाइंट्स के आधार पर टॉप 10 कौन ब्रोकर

ब्रोकरेज फर्म                                         एक्टिव क्लाइंट                   

ज़ीरोधा                                               66 लाख 

ग्रो                                                        51 लाख 

अपस्टॉक्स                                            42 लाख  

एजेंल वन                                             42 लाख        

ICICI सिक्योरिटीज़                               28 लाख  

(स्रोत: MOFSL, NSE, नवंबर 2022 तक) 

ब्रोकरेज फर्म                                         एक्टिव क्लाइंट

5 पैसा कैपिटल                                     12 लाख       

कोटक सिक्योरिटीज                                11 लाख 

HDFC सिक्योरिटीज                              11 लाख 

IIFL सिक्योरिटीज                                   8 लाख       

(स्रोत: MOFSL, NSE, नवंबर 2022 तक) 

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