Mutual Fund निभाएगा जिंदगी भर का साथ, परिवार को भी देगा सुरक्षा कवच
म्यूचुअल फंड निवेश के अगर ज्वाइंट होल्डर हैं. ऐसे में पहले होल्डर की मृत्यु हो जाती है तो म्यूचुअल फंड यूनिट्स दूसरे होल्डर को मिलेंगी. और अगर म्यूचुअल फंड निवेश का एक ही होल्डर है तो ऐसे में नॉमिनी को म्यूचुअल फंड यूनिट्स मिलेंगी.
म्यूचुअल फंड में निवेश न सिर्फ आपके रहते आपके काम आता है, बल्कि आपके जाने के बाद भी यह आपके परिवार को बेहतर रिटर्न देता रहता है. आपके जाने के बाद आपके म्यूचुअल फंड निवेश किसको मिलेगा, ये आप नॉमिनी बना कर तय कर सकते हैं. लेकिन अगर आप ने निवेश के लिए कोई नॉमिनी नहीं रखा है तो कौन आपके म्यूचुअल फंड निवेश को भुना सकेगा है.
फिनसेफ इंडिया की फाइनेंशियल एजुकेटर मृन अग्रवाल इन सभी सवालों का जवाब देते हुए बताते हैं कि म्यूचुअल फंड निवेश आपके साथ और आपके बाद भी रहता है.
ज्वाइंट होल्डर के होने पर
म्यूचुअल फंड निवेश के अगर ज्वाइंट होल्डर हैं. ऐसे में पहले होल्डर की मृत्यु हो जाती है तो म्यूचुअल फंड यूनिट्स दूसरे होल्डर को मिलेंगी. और अगर म्यूचुअल फंड निवेश का एक ही होल्डर है तो ऐसे में नॉमिनी को म्यूचुअल फंड यूनिट्स मिलेंगी. यूनिट्स दिए जाने की प्रक्रिया को ट्रांसमिशन कहते हैं.
कैसे होगा ट्रांसमिशन
पहले ज्वाइंट होल्डर की मृत्यु पर दूसरे होल्डर को यूनिट्स मिलेंगी. इसके लिए दूसरे होल्डर को डेथ सर्टिफिकेट, अकाउंट क्लोजिंग फॉर्म देना होगा. यूनिट्स ट्रांसफर करने के लिए दूसरे होल्डर का अकाउंट होना जरूरी है. और अगर दूसरे होल्डर का अकाउंट नहीं तो नया डिपोजिटरी अकाउंट खोलना होगा. क्योंकि यूनिट का ट्रांसफर अकाउंट में भी होता है. ट्रांसमिशन के लिए फर्स्ट होल्डर का डेथ सर्टिफिकेट देना होगा. दूसरे यूनिट होल्डर को अपना KYC कन्फर्म करना होगा. दूसरे यूनिट होल्डर को पहचान पत्र भी जमा करना होगा. नये फर्स्ट होल्डर का कैंसल चेक भी देना होगा.
निवेश की जानकारी न होने पर
ज्यादातर भारतीय घरों में ऐसा देखने में आया है कि घर का मुखिया कहां निवेश कर रहा है, इसके बारे में घर के अन्य लोगों को कम ही पता होता है. पत्नी को पता नहीं कि पति ने कहां निवेश किया है. ऐसे में पति की मौत होने पर पत्नी CAMS/कार्वी MFS के पास पहुंच सकती है. यहां पत्नी को निवेशक के साथ रिश्ता साबित करना होगा. उसके लिए मैरेज सर्टिफिकेट व अन्य दस्तावेज जमा करने होंगे. CAMS/कार्वी सारी डिटेल वेरीफाई करेगा और वेरिफिकेशन के बाद फोलियो/अकाउंट स्टेटमेंट पत्नी को ट्रांसफर कर दिए जाएंगे.
होल्डर्स नहीं, नॉमिनी रजिस्टर्ड
MF यूनिट्स के सभी होल्डर की मृत्यु हो गई है और होल्डर ने नॉमिनी रजिस्टर्ड कराए हुए हैं. ऐसे में हर AMC में अलग-अलग ट्रांसमिशन के लिए दस्तावेज देने होंगे. मृत यूनिट होल्डर का ऑरिजनल/अटेस्टेड फोटोकॉपी देनी होगी. नॉमिनी/दावेदार का KYC कन्फरमेशन भी जरूरी होता है. नये बैंक का कैंसल चेक/बैंक स्टेटमेंट, जिस पर नॉमिनी का नाम हो, जमा करना होगा. यहां FATCA सेल्फ सर्टिफिकेशन भी अहम होता है.
होल्डर्स नहीं और नॉमिनी भी नहीं
कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि निवेशक का कोई होल्डर भी नहीं है और उसका अपना कोई वारिश भी नहीं है. ऐसे में डॉक्युमेंटेशन काफी ज्यादा बढ़ जाता है. कानूनी वारिस को व्यक्तिगत स्तर पर एफिडेविट देना होगा. इंडेम्निटी बॉन्ड भी सभी कानूनी वारिसों को साइन करना होगा. दावे की रकम अगर 25 लाख रुपये से कम है, ऐसे में प्रूफ के लिए जरूरी दस्तावेज देने होंगे. अगर दावे की रकम अगर काफी ज्यादा है तो विल की नॉटराइज कॉपी, सक्सेशन सर्टिफिकेट देना होगा. लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, FACTA डिटेल भी देनी होंगी.
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तलाक होने पर
सिंगल होल्डिंग है तो तलाकशुदा महिला फंड्स निकाल सकती है. महिला चाहे तो म्यूचुअल फंड निवेश जारी भी रख सकती है. और अगर ज्वाइंट होल्डिंग है, दोनों के हस्ताक्षर जरूरी हैं. ज्वाइंट होल्डिंग है और पत्नी पहली होल्डर है तो यहां पत्नी ज्वाइंट होल्डर को फोलियो से हटवा सकती है. पत्नी को डिवोर्स सर्टिफिकेट, पति से NOC जमा करनी होगी.
नॉमिनेशन क्या है
निवेशक की मौत के बाद उसकी संपत्ति का हकदार उसका नॉमिनी होता है. निवेशक किसी को भी नॉमिनी बना सकता है. नॉमिनी पति/पत्नी, बच्चा या परिवार का कोई सदस्य हो सकता है. दोस्त या कोई ऐसा व्यक्ति भी, जिस पर आपको भरोसा हो, उसे भी नॉमिनी बना सकते हैं. सिंगल होल्डिंग्स में खुलने वाले फोलियो में नॉमिनी अब जरूरी है. ज्वाइंट्स होल्डिंग्स के मामले में नॉमिनी जरूरी नहीं होता है.
कैसे बनाएं नॉमिनी
म्यूचुअल फंड निवेश के फॉर्म में एक कॉलम होता है, जिसमें आप नॉमिनी की डिटेल भर सकते हैं. निवेशक अकेले या संयुक्त रूप से नॉमिनी नियुक्त कर सकता है. नॉन-इंडिविजुअल्स जैसे सोसायटी, ट्रस्ट नॉमिनी नियुक्त नहीं कर सकते.
कितने हो सकते हैं नॉमिनी
कोई निवेशक 3 नॉमिनी तक नियुक्त कर सकता है. किस नॉमिनी को कितना हिस्सा मिलेगा, ये भी निवेशक खुद तय कर सकता है. अगर हिस्सेदारी तय नहीं की गई है तो हर नॉमिनी को बराबर हिस्सा मिलेगा.
बदला जा सकता है नॉमिनी
निवेशक जब चाहे तब नॉमिनी बदल सकता है. निवेशक मर्जी से पुराने नॉमिनी को चुन सकता है और नया नॉमिनी भी बना सकता है. नॉमिनी रहने से फंड ट्रांसमिशन आसान होता है. नॉमिनी नहीं होने पर कानूनी वारिसों को दिक्कतें होती हैं. ट्रांसमिशन के लिए काफी जटिल औपचारिकताएं और कई तहर के दस्तावेज भी पेश करने पड़ते हैं. इसलिए निवेश करते समय फार्म में अपना नॉमिनी भी जरूर चुन लें.