What is FPO: अदानी ग्रुप और अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग का विवाद इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. लेकिन इसके साथ ही Adani Enterprises का FPO भी फोकस में है. यह FPO 20,000 करोड़ रुपए का है. ऐसे में समझना जरूरी है कि आखिरकार FPO यानी फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर क्या होता है? यह IPO से कितना अलग होता है? साथ ही यह भी जानना चाहिए कि कंपनियां FPO लाती क्यों हैं...तो चलिए इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं...

क्या होता है FPO?

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

FPO के जरिए कंपनी अपना फोलो ऑन पब्लिक ऑफर जारी करती है. मतलब जो कंपनी पहले से शेयर बाजार में लिस्ट है, वह निवेशकों के लिए नए शेयर ऑफर करती है. ये बाजार में मौजूद स्टॉक्स से अलग होते हैं. ज्यादातर ये शेयर प्रोमोटर्स जारी करते हैं. FPO का इस्तेमाल कंपनी के इक्विटी बेस को डाइवर्सिफाई करने के लिए होता है.

कंपनियां क्यों लाती हैं FPO?

बाजार में शेयर उतारने के लिए कंपनी पहले IPO लाती है. लेकिन, एक बार लिस्ट होने के बाद अगर नए शेयर जारी करना हो, तो उस स्थिति में FPO का इस्तेमाल होता है. कंपनी नए शेयर कैपिटेल रेजिंग (Capital raising) या फिर अपने कर्ज का भुगतान करने के लक्ष्य से करती हैं. नए शेयरों के जरिए कंपनी बाजार से कैपिटल जुटाती है और फिर उसका इस्तेमाल अपनी जरूरत के लिहाज से करती हैं.

IPO और FPO अंतर?

कंपनियां अपने एक्सपेंशन के लिए IPO या FPO का इस्तेमाल करती हैं. कारोबार बढ़ाने के लिए फंड की जरूरत पड़ने पर कंपनियां IPO या FPO का सहारा लेती हैं. कैश फ्लो की जरूरतों को पूरा करने या फिर कारोबार बढ़ाने के लिए इस फंड का इस्तेमाल होता है. IPO के जरिए कंपनी पहली बार बाजार में अपने शेयर्स उतारती है. इसलिए इसे इनिशियल पब्लिक ऑफर कहते हैं.  जबकि FPO में अतिरिक्त शेयर्स को बाजार में लाया जाता है. 

IPO में शेयरों की बिक्री के लिए फिक्स्ड प्राइस होता है, जिसे प्राइस बैंड कहते हैं. कंपनी शेयर का प्राइस बैंड लीड बैंकर्स तय करते हैं. वहीं, FPO के वक्त शेयरों का प्राइस बैंड बाजार में मौजूद शेयरों की कीमत से कम रखा जाता है. इसको शेयरों की संख्या के हिसाब भी तय किया जाता है. आमतौर पर कंपनी मौजूदा मार्केट प्राइस से कम कीमत पर इसे ऑफर करती हैं.

Zee Business Hindi Live TV यहां देखें