भारत में रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स (Startups) की संख्या 1 लाख के करीब पहुंच चुकी है. लेकिन पिछले करीब डेढ़-दो सालों में स्टार्टअप्स की हालत बहुत खराब है. फंडिंग विंटर (Funding Winter) चल रहा है, यानी इन स्टार्टअप्स को अब फंडिंग (Startup Funding) नहीं मिल पा रही है. अगर सिर्फ इस साल की बात करें तो इसकी पहली छमाही में स्टार्टअप्स की फंडिंग में करीब 72 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इस साल की पहली छमाही में करीब 536 फंडिंग राउंड हुए हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में ये आंकड़ा 1500 था, जो पिछले साल दूसरी छमाही में 946 रह गया था. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इन सब का नतीजा ये हो रहा है कि कई स्टार्टअप बंद हो गए हैं, जबकि बहुत सारे स्टार्टअप्स ने लोगों को नौकरी से निकाल दिया है. अगर मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो स्टार्टअप्स ने अब तक करीब 1 लाख लोगों को नौकरी से निकाला है. छोटे से लेकर बड़े स्टार्टअप तक, सभी कॉस्ट कटिंग के लिए छंटनी का सहारा ले रहे हैं. कुछ की हालत ज्यादा खराब हो गई तो उन्होंने अपने ऑपरेशन ही बंद कर दिए. अब सवाल ये है कि ऐसा हो क्यों रहा है? एक के बाद एक तमाम स्टार्टअप पर सवाल खड़े होना और इतनी सारी छंटनी होना, क्या स्टार्टअप की दुनिया में कोई गड़बड़ चल रही है? आखिर इन तमाम स्टार्टअप्स के बिजनेस मॉडल में ऐसी क्या खामी है कि वह बाजार में टिक नहीं पा रहे हैं. आइए जानते हैं क्यों एक के बाद एक स्टार्टअप या तो छंटनी कर रहे हैं या बंद हो रहे हैं. कहीं ये स्टार्टअप बबल तो नहीं था, जो अब फूट गया है?

वैल्युएशन सिस्टम ने बिगाड़ दिया है खेल

स्टार्टअप ईकोसिस्टम में सबसे बड़ी खराबी है इसका वैल्युएशन तय करने का तरीका. एक स्टार्टअप के पास शुरुआती दौर में सिर्फ एक आइडिया होता है, ना कोई रेवेन्यू होता है ना ही मुनाफा. ऐसे में सिर्फ उस आइडिया के आधार पर ही बिजनेस का वैल्युएशन तय होता है. वैल्युएशन तय करने के लिए कोई तय तरीका नहीं है, बल्कि निवेशक को स्टार्टअप की वैल्यू जितनी लगती है वह उसी हिसाब से पैसे लगा सकता है. मान लीजिए कि आपने कोई स्टार्टअप शुरू किया और किसी निवेशक ने उसमें 1 लाख रुपये में 1 फीसदी इक्विटी खरीद ली तो आपके स्टार्टअप की वैल्यू उसी वक्त 1 करोड़ रुपये हो जाएगी. 

वैल्युएशन सिस्टम में एक बड़ी दिक्कत ये भी है कि बिजनेस के एक छोटे हिस्से से पूरे बिजनेस की वैल्यू बदल जाती है. मान लीजिए कि आपके बिजनेस की वैल्यू 1 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के बाद 1 करोड़ रुपये तय हुई. अब भले ही आप अगले साल भर तक कोई पैसा ना कमाएं या कोई बिजनेस ना बनाएं, लेकिन अगर साल भर बाद किसी निवेशक ने आपके बिजनेस में 1 फीसदी वैल्यू 2 लाख रुपये में खरीद ली तो फिर स्टार्टअप की वैल्यू 2 करोड़ रुपये हो जाएगी. स्टार्टअप का यही वैल्युएशन सिस्टम स्टार्टअप के बिजनेस मॉडल की सबसे बड़ी दिक्कत है. यानी बिजनेस का जो बेसिक गुण होता है मुनाफा कमाने का, स्टार्टअप की दुनिया में उसे ही नजरअंदाज किया जा रहा है.

Sanchiconnect के सीईओ Sunil Shekhawat कहते हैं कि तेजी से आगे बढ़ने के चक्कर में स्टार्टअप एक बिजनेस के बेसिक को भूल जाते हैं, जो है मुनाफा. मुनाफे के ताक पर रखकर स्टार्टअप अपन बिजनेस को तेजी से बढ़ाते हैं. यह शुरू में तो अच्छा लगता है, ढेर सारे निवेशक भी मिलते हैं, लेकिन जब बाजार में और भी कॉम्पटीटर आ जाते हैं तो उनका नुकसान कम होने के बजाय बढ़ने लगता है और मुनाफा दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता.

यूनिकॉर्न बनने के बावजूद नुकसान उठा रहे स्टार्टअप

साल 2022 में कुल 23 स्टार्टअप यूनिकॉर्न बने. यूनिकॉर्न उस स्टार्टअप को बोलते हैं, जिसका वैल्युएशन 1 अरब डॉलर से अधिक हो जाए. अब अगर इन 23 यूनिकॉर्न में से देखा जाए तो मुनाफे में कितने थे, तो सिर्फ 4 ही स्टार्टअप मुनाफे वाले थे. यानी 19 ऐसे यूनिकॉर्न थे, जिन्हें नुकसान हो रहा था. बिना मुनाफा कमाए ही ये स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन गए यानी 1 अरब डॉलर से भी ज्यादा की वैल्युएशन पर पहुंच गए. आज भी बहुत सारे ऐसे स्टार्टअप हैं, जो नुकसान में हैं. पेटीएम आज तक मुनाफे में नहीं आ पाई है. बायजूज़ का वैल्युएशन तेजी से गिर रहा है, जो देश की सबसे बड़ी एडटेक यूनिकॉर्न कही जाती है. हाल ही में एक स्टार्टअप जेप्टो यूनिकॉर्न बना है, लेकिन वह भी अभी तक नुकसान झेल रहा है. जोमैटो, स्विगी, मीशो जैसे स्टार्टअप्स ने हाल ही में मुनाफे में एंट्री की है. 

Netsol Water के को-फाउंडर Praveen  Tiwari स्टार्टअप्स के बिजनेस मॉडल में आजकल कई खामियां दिखाई दे रही हैं और इसके कई कारण हो सकते हैं. पहला मुख्य कारण है कि अनेक स्टार्टअप्स अपने बिजनेस मॉडल को पूरी तरह से समझने की कमी कर देते हैं. दूसरा कारण है वित्तीय प्रबंधन में कमी. अधिकांश स्टार्टअप्स वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं क्योंकि वे अपने पूंजी व्यवस्था को ठीक से प्रबंधित नहीं कर पा रहे हैं. तीसरा कारण है पूरी तरह से नकारात्मक स्थितियों का सामना करना. स्टार्टअप्स को सामाजिक और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें सफलता प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

Doodhvale के को-फाउंडर Aman Jain कहते हैं कि एक मजबूत बिजनेस मॉडल नहीं होने का मतलब है कि सभी स्टार्टअप किसी समस्या को हल करके शुरू होते हैं, लेकिन उन्हें पहले से यह एहसास नहीं होता है कि बिजनेस बनाने के लिए उनका समाधान ऐसा होना चाहिए जो बिजनेस बढ़ा सके और जिससे मुनाफा भी कमाया जा सके. स्टार्टअप गहराई तक जाने के लिए पर्याप्त फोकस किए बिना बहुत सी चीजों को आजमाने लगते हैं, जिससे भी नुकसान होता है. वहीं भविष्य की चुनौतियों और आकांक्षाओं पर कड़ी नजर रखे बिना बहुत अधिक नकदी खर्च कर देना भी स्टार्टअप की दिक्कतों में से एक है.

फंडिंग पर निर्भरता बहुत ज्यादा

जहां साल 2022 में स्टार्टअप्स को हर 3 घंटे में फंडिंग मिल रही थी, अब 2023 में उन्हें करीब 10 घंटों में एक फंडिंग मिल रही है. सिर्फ 2023 की पहली छमाही में ही फंडिंग में करीब 72 फीसदी की गिरावट आई है. तमाम स्टार्टअप तेजी से छंटनी कर रहे हैं, क्योंकि फंडिंग ना मिल पाने की वजह से उन्हें जरूरत है कॉस्ट कटिंग की. फंड ही नहीं हैं तो सैलरी तक देने के पैसे नहीं हैं, ऐसे में छंटनी की जा रही हैं. इन दिनों स्टार्टअप डंजो काफी खबरों में छाया हुआ है, क्योंकि हाल ही में उसने छंटनी की थी और अब अपने पुराने कर्मचारियों को बकाया सैलरी तक नहीं चुका पा रहा है. यह सब हुआ फंडिंग नहीं मिल पाने की वजह से. साल 2021 में खूब फंडिंग मिली और खूब सारे स्टार्टअप यूनिकॉर्न बने, लेकिन पिछले साल मार्च-अप्रैल के महीने से फंडिंग में गिरावट आनी शुरू हुई जो अब तक जारी है. 

Infused Kettle की फाउंडर Shalini Sharma कहती हैं कि स्टार्टअप में फाउंडर ही सारे काम करते हैं. ऐसे में वह सेल्स पर ध्यान देने के बजाय संचालन प्रबंधन बन जाते हैं. जिन स्टार्टअप को फंडिंग मिलने लगती है वह अति-उत्साह में पूरे बाजार पर छा जाने की सोचते हैं और तेजी से पैसे उठा-उठाकर बिजनेस को बढ़ाते हैं. जब फंड की दिक्कत आती है तो पता चलता है कि प्रोडक्ट में आगे बढ़ने का दम नहीं है. ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि आज के वक्त में हर कोई शार्क बनना चाहता है, कोई मार्केट की एनालिसिस नहीं करना चाहता.

स्किल बेस्ड एडटेक स्टार्टअप Uplifters के फाउंडर और सीईओ Umang Sangal कहते हैं कि कई एडटेक स्टार्टअप निवेशकों से पैसा प्राप्त करने पर बहुत अधिक निर्भर हैं. हो सकता है कि उनके पास स्वयं पैसा कमाने की कोई स्पष्ट योजना न हो. जब उन्हें निवेशकों से अधिक पैसा नहीं मिल पाता, तो उन्हें पैसों की समस्या होने लगती है. वहीं कई स्टार्टअप बाजार को ठीक से समझे बिना शिक्षा के लिए ऐसी चीज़ें बनाते हैं जो लोग वास्तव में नहीं चाहते या जिनकी उन्हें ज़रूरत नहीं है. इतना ही नहीं, एडटेक स्टार्टअप के लिए अच्छी शैक्षिक सामग्री बनाना और बहुत से लोगों तक पहुंचने में संतुलन बनाना कठिन है. कुछ स्टार्टअप बहुत अधिक लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं और आखिरकार लो-क्वालिटी वाली चीज़ें बनाते हैं, जिससे लोगों का भरोसा टूटता है.

Saraf Furniture के फाउंडर और सीईओ Raghunandan Saraf कहते हैं कि स्टार्टअप के संसाधनों को ठीक से मैनेज नहीं करने की वजह से भी स्टार्टअप्स को दिक्कत होती है.अधिक खर्च करना, फंड का गलत आवंटन या जरूरी खर्चों के लिए बजट ना बना पाने से दिक्कतें होती हैं. फंडिंग पर बहुत अधिक निर्भर रहना खतरनाक है, जो हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकता , जिसके चलते पैसों की किल्लत झेलनी पड़ सकती है. भले ही किसी स्टार्टअप का प्रोडक्ट बहुत ही शानदार हो, लेकिन मार्केटिंग और सेल्स के तरीकों से बिजनेस सीमित हो सकता है. कुछ स्टार्टअप मुनाफे को नजरअंदाज करते हुए किसी भी कीमत पर बिजनेस को बढ़ाने की सोचते हैं, जो एक बड़ी दिक्कत है.

SpaceMantra की फाउंडर निधि अग्रवाल कहती हैं कुछ क्षेत्रों में भारी कॉम्पटीशन की वजह से आंत्रप्रेन्योर्स को वहां पैर जमाना मुश्किल हो जाता है. किसी स्टार्टअप की सफलता के लिए एक मजबूत, प्रतिभाशाली स्टाफ जरूरी है. नेतृत्व के मुद्दे, आंतरिक असहमति और महत्वपूर्ण कौशल की कमी भी विकास को बाधित कर सकती है और इसका नतीजा होता है छंटनी या बिजनेस का बंद हो जाना. कई बार स्टार्टअप को जटिल कानूनी और नियामक मानकों को पूरा करने में कठिनाई हो सकती है. नियमों का पालन ना करने पर जुर्माना या शटडाउन हो सकता है. इतना ही नहीं, आर्थिक मंदी या महामारी जैसी अप्रत्याशित घटनाएं भी बाजार और ग्राहकों के व्यवहार को बदल सकती हैं, जिससे स्टार्टअप्स की सेहत पर बुरा असर पड़ता है.