आपने ये तो अक्सर सुना होगा कि चिप्स से सेहत खराब होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनसे हमारा पर्यावरण भी खराब हो रहा है? चिप्स के पैकेट एमएलपी यानी मल्टी लेयर प्लास्टिक से बने होते हैं, जिसे रीसाइकिल करना नामुमकिन है. अभी जो लोग इसे रीसाइकिल कर रहे हैं, वह या तो इसे जला रहे हैं या फिर इसका फॉर्म बदल कर उसकी शेल्फ लाइफ बढ़ा रहे हैं. हर साल करीब 38 लाख टन एमएलपी पैदा होता है, जो सीधे लैंडफिल और समुद्रों की ओर जा रहा है. इसी समस्या से निजात दिलाने के लिए अनीष किशोर मालपानी ने फरवरी 2021 में एक स्टार्टअप Without की शुरुआत की.

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फरवरी 2021 में अनीष ने पुणे में एक लैब शुरू की और रिसर्च करने लगे. काफी समय तक रिसर्च के बाद उन्होंने एक टेक्नोलॉजी ढूंढ निकालनी, जिसके चलते एमएलपी की सारी लेयर को अलग किया जा सकता है. अनीष दावा करते हैं कि दुनिया में अभी तक यह काम कोई दूसरा नहीं कर रहा है और कंपनी इस टेक्नोलॉजी को पेटेंट भी कराना चाहती है. 

तगड़ी सैलरी वाली नौकरी छोड़ी, भारत लौटे

भारत में पैदा हुए अनीष जैन 9 साल तक यहीं रहे, लेकिन उसके बाद उनके पिता की नौकरी दुबई में लग गई, तो वह वहां चले गए. अनीष ने अपनी अंडरग्रेजुएशन अमेरिका का टेक्सस यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में की. वहां से वह 2016 में  न्यूयॉर्क चले गए, जहां एक कंपनी में  वह डायरेक्टर भी बन गए. नौकरी अच्छी थी, सैलरी अच्छी थी, लेकिन कुछ कमी सी लगती थी. उन्होंने सोचा कि कुछ और काम करना चाहिए. उन्होंने यह समझना शुरू किया कि इंपैक्ट कैसे बनाया जा सके और गरीबी उन्हें एक बड़ी समस्या दिखी. इसी सोच के साथ वह दिसंबर 2019 में भारत आ गए.

भारत में करीब 40 लाख ऐसे लोग हैं जो कूड़ा बीनने का काम करते हैं और उसी से रोजी-रोटी कमा रहे हैं. अनीष बताते हैं कि आज भी 50-80 फीसदी तक का वेस्ट ट्रीट नहीं हो पाता है. ऐसे में उन्होंने इस पर रिसर्च शुरू कर दी कि आखिर कैसे वेस्ट की वैल्यू बढ़ाई जाए और कूड़ा बीनने वालों की कमाई बढ़ाकर उनकी जिंदगी बेहतर की जाए. रिसर्च में उन्हें ये समझ आया कि इस क्षेत्र में टेक्नोलॉजी की कमी है, जिसके चलते बहुत सारा वेस्ट रीसाइकिल नहीं हो पाता है और रीसाइकिल वेस्ट की वैल्यू नहीं बढ़ पाती है.

दुनिया का पहला चश्मा, जो बना है चिप्स के पैकेट से

अनीष बताते हैं कि जब वह एमएलपी की सारी लेयर अलग-अलग कर के उसे बेचने गए तो कोई खरीदार नहीं मिला. तब उन्हें लगा कि इससे कुछ प्रोडक्ट बनाना चाहिए, ताकि तमाम बिजनेस इससे बने प्रोडक्ट की क्वालिटी देख सकें और इस बिजनेस में जुड़ सकें. अब सवाल ये था कि कौन सा प्रोडक्ट बनाया जाए. अनीष ने करीब 400 प्रोडक्ट पर रिसर्च की और उनमें से 70 को चुना. फिर लगभग 27 पैरामीटर्स बनाए, जिस पर सभी को परखा. अंत में ये निष्कर्ष निकला कि इससे सनग्लास यानी चश्मे बनाने चाहिए. अनीष का दावा है कि ये दुनिया के पहले चश्मे हैं, जो चिप्स के पैकेट को रीसाइकिल कर के बने हैं. साथ ही यह हाई क्वालिटी, ड्यूरेबल, हल्के और रीसाइकिल करने योग्य हैं.

दुनिया की पहली ऐसी टेक्नोलॉजी

इस बिजनेस को शुरू करने से लिए अनीष ने अपनी खुद की लगभग 1.8 करोड़ रुपये की कमाई भी लगा दी. इसके लिए उन्होंने वेबसाइट बनाई. उन्हें केमिस्ट्री का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है, तो उन्होंने एक ऐसा शख्स हायर किया, जिसने केमिस्ट्री में पीएचडी किया है. अनीष बताते हैं कि 1 फरवरी 2021 को उन्होंने पुणे की लैब में दो डेस्क, दो कुर्सी और कुछ चिप्स के पैकेट के साथ काम करना शुरू किया था. इसके तहत उन्होंने खुद ही एक रिएक्टर भी बनाया, जिससे चिप्स के पैकेट को रीसाइकिल कर के उससे प्लास्टिक के पैलेट बनाए जाते हैं. अनीष का दावा है कि इस टेक्नोलॉजी के जरिए 90-95 फीसदी तक का वेस्ट आप रीसाइकिल कर सकते हैं, जो दुनिया में अभी तक किसी ने नहीं किया है.

क्या है फ्यूचर प्लान?

अनीष बताते हैं कि सिर्फ सनग्लास बनाने भर से वेस्ट मैनेजमेंट की समस्या खत्म नहीं होगी. 15 लाख से भी अधिक कूड़ा उठाने वाले गरीबी में जी रहे हैं, उन्हें सम्मानित काम देकर उनकी जिंदगी को बेहतर किया जा सकता है. 2030 तक वह 10-15 हजार कूड़ा उठाने वालों को हायर करना चाहते हैं, ताकि उन्हें गरीबी से बाहर निकाल सकें. उनका अनुमान है कि तब तक कंपनी का रेवेन्यू करीब 3000 करोड़ रुपये हो जाएगा. वहीं हर रोज वह 20 हजार टन तक वेस्ट रीसाइकिल कर सकेंगे.

अनीष कहते हैं कि उनका स्टार्टअप एक इंपैक्ट फर्स्ट स्टार्टअप है, जो बड़ा असर लाना चाहता है. वह किसी प्रोडक्ट कंपनी से ज्यादा एक पार्टनर की तरह भी पैसे कमाना चाहते हैं, जैसे अगर कोई चश्मों का ब्रांड इनके साथ पार्टनरशिप करे तो उस ब्रांड के ग्राहक इस बात से खुश होते हुए भी चश्मा खरीदेंगे कि इससे पर्यावरण भी सुधर रहा है और कूड़ा बीनने वालों की गरीबी भी दूर हो रही है. अनीष कहते हैं कि वह एक प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट बना रहे हैं, जिसके तहत वह अलग-अलग बिजनेस के साथ पार्टनरशिप कर सकते हैं.

क्या है कमाई और चश्मों की कीमत?

अनीष बताते हैं कि 6 दिन में उनके 500 सनग्लास बिक गए और 1 महीने में 1000 बिक गए. ये बेचने से जो पैसे मिलेंगे, वह रिसर्च के लिए ऑक्सीजन का काम करेंगे. इनके चश्मे 1000 रुपये से लेकर 2500 रुपये तक के हैं. भविष्य में बड़ा इंपैक्ट लाने के लिए अनीष एक एमएलपी रीसाइकिलिंग प्लांट बना रहे हैं. अभी वह हर रोज करीब 5-10 किलो एमएलपी रीसाइकिल करते हैं, लेकिन आने वाले वक्त में वह हर रोज 50-100 किलो तक एमएलपी रीसाइकिल करना चाहते हैं. 

कितनी मिली फंडिंग?

शार्क टैंक इंडिया में इस स्टार्टअप ने 1 फीसदी इक्विटी के बदले 75 लाख रुपये देने की पेशकश की थी. इससे पहले कंपनी को यूनीलीवर से एक 60 लाख रुपये का ग्रांट भी मिल चुका है, जिससे यह अपनी रिसर्च को फंड कर सकें. यह स्टार्टअप 52 करोड़ रुपये के कैप पर 4.9 करोड़ रुपये की फंडिंग उठा चुका है. वहीं करीब 64 करोड़ रुपये के वैल्युएशन पर 12 करोड़ की फंडिंग की टर्मशीट मिल चुकी है. अनीष मानते हैं कि चैरिटी से बिजनेस नहीं चलेगा, मुनाफा कमाकर ही बदलाव लाया जा सकता है. उनके इस स्टार्टअप में अपग्रेड से को-फाउंडर रॉनी स्क्रूवाला और लेंसकार्ट के को-फाउंडर पीयूष बंसल ने साथ मिलकर 25 करोड़ के वैल्युएशन पर 3 फीसदी इक्विटी के बदले 75 लाख रुपये दिए.