Shark Tank India-3: जिसे 'बेकार' समझ औने-पौने दाम में बेच देते हैं आप, उसी से इन दो युवाओं ने खड़ा कर दिया 200 करोड़ का बिजनेस
इस स्टार्टअप का नाम है ReFit, जो पुराने मोबाइल को रीफर्बिश करने का काम करता है. इसकी शुरुआत मई 2017 में अवनीत शेट्टी और साकेत सौरव ने करीब 30 साल की उम्र में की थी.
शार्क टैंक इंडिया के तीसरे सीजन (Shark Tank India-3) में हाल ही में एक ऐसा स्टार्टअप (Startup) आया, जो आपके बेकार समझे जाने वाले फोन से बिजनेस (Business) कर रहा है. हम जिस फोन को कुछ साल इस्तेमाल कर के उसे बेकार समझकर औने-पौने दाम में अमेजन-फ्लिपकार्ट या किसी और को नए फोन के एक्सचेंज में दे देते हैं, उसी के दम पर दिल्ली के दो युवाओं ने 200 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी है. यह स्टार्टअप जब शार्क टैंक में आया तो इनका आइडिया (Business Idea) सुनकर शार्क कुछ ज्यादा इंप्रेस नहीं दिखे. और तभी जब स्टार्टअप के फाउंडर्स ने बताया कि इस साल वह 240 करोड़ रुपये की सेल करेंगे, सबके होश उड़ गए. बता दें कि कैशिफाई के बाद रीफिट स्टार्टअप रीफर्बिश फोन (Refurbish Smartphone) बेचने वाली भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है.
इस स्टार्टअप का नाम है ReFit, जो पुराने मोबाइल को रीफर्बिश करने का काम करता है. इसकी शुरुआत मई 2017 में अवनीत शेट्टी और साकेत सौरव ने करीब 30 साल की उम्र में की थी. अवनीत दिल्ली में रहते हैं, जबकि साकेत का घर गुरुग्राम में है. दोनों का ये बिजनेस अभी 80 से भी ज्यादा शहरों में या यूं कहें कि पूरे देश में फैला हुआ है. पिछले साल 2022-23 में इस कंपनी का टर्नओवर 187 करोड़ रुपये रहा था और इस साल इसके 240-250 करोड़ रुपये के करीब रहने का अनुमान है.
कहां से आया पुराने फोन को रीफर्बिश करने का आइडिया
साकेत और अवनीत दोनों ही कॉलेज टाइम से दोस्त हैं. एमबीए की पढ़ाई भी दोनों ने साथ ही की. इसके बाद अवनीत वीडियोकॉन में काम करने लगे, जबकि साकेत एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स जा पहुंचे. करीब 5 साल काम करने के बाद साकेत ने शॉपक्लूज ज्वाइन कर ली, जहां वह कैटेगरी मैनेजर फॉर लॉर्ज अप्लाएंस की तरह काम कर रहे थे. कुछ ही समय बाद अवनीक भी साकेत की टीम में शॉपक्लूज में पहुंच गए. वहां दोनों ने मिलकर रीफर्बिस्ड कैटेगरी लॉन्च की और महज 7-8 महीने में इससे होने वाला बिजनेस लगभग 40 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
छोड़ा 40-45 लाख का पैकेज, शुरू की अपनी कंपनी
शॉपक्लूज में दोनों का ही पैकेज 40-45 लाख रुपये के करीब था. रीफर्बिस्ड कैटेगरी में दोनों की रुचि बहुत ज्यादा थी, लेकिन शॉपक्लूज में कंपनी के डेट और फाउंडर्स को लेकर कई दिक्कतें चल रही थीं. इसके चलते वहां रीफर्बिस्ट कैटेगरी की सेल गिरने लगी थी. इसके बाद 2017 में दोनों ने तय किया कि नौकरी छोड़ी जाए और अपना बिजनेस शुरू किया जाए. उस वक्त यह मार्केट पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रहा था और बड़ी बड़ी कंपनियां इसमें उतर गई थीं. ऐसे में दोनों को इस बात का भरोसा था कि आज नहीं तो कल ये मार्केट भारत में भी बनेगा, क्योंकि जो पश्चिम में होता है, वह भारत में भी जरूर पहुंचता है.
करीब 55 लाख रुपये से शुरू किया बिजनेस
अनवीत और साकेत के पास लगभग 8-9 साल का कॉरपोरेट एक्सपीरियंस था. इंडस्ट्री के कुछ कॉन्टैक्ट्स भी थे, लेकिन एक बिजनेस में जिसकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है, उसी की कमी थी. बिजनेस शुरू करने के लिए पैसों की बहुत ज्यादा कमी खल रही थी. ऐसे में दोनों ने मिलकर अपनी सेविंग का इस्तेमाल किया और 15-15 लाख रुपये का बैंक लोन लिया. इस तरह दोनों ने कुल मिलाकर करीब 55 लाख रुपये लगाकर बिजनेस शुरू किया. छोटा बिजनेस था, खुद के पैसों के शुरू किया गया तो पैसे जलाने या यूं कहें कि बर्निंग मॉडल से दूर रहते हुए दोनों ने पहले ही दिन से मुनाफा कमाने वाली कंपनी शुरू की.
इस तरह प्रॉफिटेबिलिटी की सुनिश्चित
पैसे कम थे तो दोनों ने तय किया कि पहले ऑफलाइन मार्केट में पकड़ अच्छी करेंगे, क्योंकि रीफर्बिस्ड मार्केट में जब तक लोगों को भरोसा नहीं होगा, लोग प्रोडक्ट नहीं खरीदेंगे. ऑफलाइन में भी मार्केटिंग करने और ग्राहकों को अपनी ओर खींचने में ज्यादा पैसे ना खर्च हों, इसके लिए उन्होंने बी2बी पर फोकस किया. शॉपक्लूज में काम करने के दौरान इस इंडस्ट्री से जुड़े कई कॉन्टैक्ट्स बने थे, उन पुराने रिटेलर्स के साथ मिलकर काम करना शुरू किया. रिटेलर्स को भी जब इस पर तगड़ा रिटर्न मिलने लगा तो वह भी तेजी से ऑर्डर देने लगे. शुरुआती दौर में तो दोनों को-फाउंडर खुद ही अपनी गाड़ी में फोन रख के उन्हें रिटेलर्स को देने निकल जाते थे.
आखिर फोन कैसे होता है रीफर्बिश?
सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि रीफर्बिश और रिपेयरिंग में क्या फर्क है. अगर कोई फोन खराब हो जाता है तो दुकान पर उसी पार्ट को रिपेयर करते हुए उसे किसी दूसरे ग्राहक को बेच दिया जाता है. कई बार तो फोन में कोई दिक्कत ही नहीं होती है, उसे भी लोग बेचकर नया मोबाइल लेते हैं. ऐसे फोन सेकेंड हैंड कहलाते हैं, जो कई बार रिपेयरिंग से भी गुजर चुके होते हैं. वहीं रीफर्बिश करने के दौरान फोन को कुछ पैरामीटर से गुजारा जाता है और उसके बाद उसके खराब पार्ट को बदल कर बेचा जाता है, वह भी वारंटी के साथ.
क्या है रीफिट का बिजनेस मॉडल?
अगर बात रीफिट की करें तो यह स्टार्टअप पहले अमेजन-फ्लिपकार्ट या किसी दूसरे रिटेलर से एक्सचेंज ऑफर में आए पुराने फोन लेता है. उसके बाद इन सभी फोन में रीफिट डायग्नोस्टिक ऐप रन किया जाता है. स्टार्टअप का दावा है कि यह ऐप 47 पैरामीटर्स पर डिवाइस को चेक करता है. इसके बाद मोबाइल के अलग-अलग हिस्से की परफॉर्मेंस और दिक्कत समझ आती है. उन दिक्कतों को कंपनी की इनहाउस टीम सही करती है. जब फोन पूरी तरह से तैयार हो जाता है तो डबल चेक करने के लिए फिर से वही ऐप रन किया जाता है. जब सब कुछ ठीक रहता है तो उसे बेचने के लिए रिटेलर को दे दिया जाता है. अभी तक यह कंपनी ऑफलाइन तरीके से करीब 15 लाख मोबाइल बेच चुकी है और 50 हजार से भी अधिक आउटलेट तक इसके फोन पहुंचे हुए हैं.
अब डी2सी मार्केट में भी उतर गई है कंपनी
अभी तक यह स्टार्टअप ऑफलाइन पर फोकस कर रहा था, लेकिन अब कंपनी ने डी2सी मार्केट में भी कदम रख दिया है. इसके लिए कंपनी ने अपनी ईकॉमर्स वेबसाइट शुरू कर दी है. अभी तक मुनाफे में चल रही इस कंपनी के लिए डी2सी मार्केट में जाने का मतलब था कि मार्केटिंग पर काफी पैसा खर्च करना पड़ता. हालांकि, इस स्टार्टअप के शार्क टैंक में आने की वजह से शो ऑन एयर होने के महज 24 घंटे में ही इनकी ई-कॉमर्स वेबसाइट का ट्रैफिक करीब 50 गुना बढ़ गया. बता दें कि इन्हें 24 घंटे में ही करीब 5000 डिस्ट्रीब्यूटर्स ने भी संपर्क किया.
रीफर्बिश फोन खरीदने से आपको कितना फायदा?
ग्राहक का फायदा तभी होगा जब उसके पैसे बचेंगे. साकेत बताते हैं कि उनके रीफर्बिश फोन की कीमत नए की तुलना में 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक कम होती है. अलग-अलग फोन की कंडीशन अलग-अलग होती है, जिसके चलते उनकी मरम्मत पर अलग-अलग खर्च होता है और इसी की वजह से उनकी कीमतें भी अलग-अलग होती हैं. रीफिट के हर फोन के साथ 6 महीने की वारंटी जरूर मिलती है. छोटे शहरों में रीफर्बिश फोन की मार्केट मेट्रो या टीयर-1 शहरों से काफी अधिक है.
फंडिंग और फ्यूचर प्लान
बात अगर फ्यूचर की करें तो रीफिट का प्लान अगले कुछ सालों में अपने डी2सी मार्केट को बड़ा बनाना है और साथ ही ऑफलाइन मार्केट में अपनी मौजूदगी को लगातार बढ़ाना है. शार्क टैंक में इस स्टार्टअप ने 400 करोड़ रुपये की वैल्युएशन पर 0.5 फीसदी के बदले 2 करोड़ रुपये की डिमांड की थी. हालांकि, शार्क के साथ नेगोशिएशन के बाद साकेत और अवनीत ने 200 करोड़ रुपये की वैल्युएशन पर 1 फीसदी इक्विटी के बदले 2 करोड़ रुपये और साथ ही 1 फीसदी रॉयल्टी की डील की, जब तक 3 करोड़ रुपये शार्क को वापस ना चुका दिए जाएं. इस डील में अनुपम मित्तल, अमित जैन और विनीता सिंह साथ आए हैं.