Koo के पास हुई पैसों की कमी! को-फाउंडर बोले- 'आगे बढ़ने के लिए स्ट्रेटेजिक पार्टनर और फंडिंग की जरूरत'
Koo के को-फाउंडर मयंक बिदावतका ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट करते हुए बताया कि इस वक्त कू को फंडिंग (Funding) की सख्त जरूरत है. बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा है कि उन्हें इस वक्त एक ऐसा स्ट्रेटेजिक पार्टनर चाहिए, जिसकी डिस्ट्रूब्यूशन स्ट्रेंथ बहुत ज्यादा हो और जो Koo को भी ग्रो कर सके.
भारत की माइक्रोब्लॉगिंग साइट Koo इन दिनों मुश्किलों का सामना कर रही है. Twitter को टक्कर देने के लिए शुरू हुआ ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इन दिनों संघर्ष कर रहा है. खुद Koo के को-फाउंडर मयंक बिदावतका ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट करते हुए इसकी जानकारी दी है. अपनी पोस्ट में मयंक ने बताया कि इस वक्त कू को फंडिंग (Funding) की सख्त जरूरत है. बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा है कि उन्हें इस वक्त एक ऐसा स्ट्रेटेजिक पार्टनर चाहिए, जिसकी डिस्ट्रूब्यूशन स्ट्रेंथ बहुत ज्यादा हो और जो Koo को भी ग्रो कर सके.
Koo को लेकर पिछले कुछ दिनों से तमाम तरह की बातें हो रही थीं, ऐसे में मयंक ने अफवाहों को हवा ना देने का आग्रह करते हुए कंपनी की स्थिति साफ करने की कोशिश की है. उन्होंने शुरुआत में ही लिखा है कि पिछले दिनों Koo से जुड़ी कई खबरें आई हैं, ऐसे में वह ये जानकारी सबको दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि साल 2023 पूरे स्टार्टअप ईकोसिस्टम के लिए बहुत ही खराब साबित हुआ है. फंडिंग विंटर के दौरान हर स्टार्टअप फाउंडर को फंडिंग के लिए जूझना पड़ रहा है.
उन्होंने लिखा है कि अभी तक कंपनी का प्लान तेजी से बिजनेस को बढ़ाने का था, ना कि रेवेन्यू जरनेट करने का, लेकिन फंडिंग विंटर के दौरान हमें रेवेन्यू जनरेट करने पर फोकस करना पड़ रहा है. अगर हमें 6 महीने का और वक्त मिल जाता तो हम भारत में ट्विटर से तगड़ा मुकाबला ले सकते थे, लेकिन रेवेन्यू जनरेट करने के लिए हमें अपने खर्चे कम करने पड़े. पिछले सालों में हमने इस माइक्रोब्लॉगिंग साइट को मजबूत बनाने के लिए काफी तगड़ा निवेश किया है, ताकि इसे ग्लोबल स्टैंडर्ड का बनाया जा सके.
तेजी से ग्रो होने से लेकर अपनी यूनिट इकनॉमिक्स को साबित करने तक, 6 महीनों में किए गए रेवेन्यू एक्सपेरिमेंट में अपने 180 डिग्री का टर्न लेते हुए ये दिखा दिया कि यह एक असली बिजनेस है. भले ही अभी परिस्थितियां हमारे पक्ष में नहीं हैं, हम एक फाउंडर की तरह अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमारा अगला कदम है Koo को तेजी से स्केल करना, जो या तो फंडिंग से मुमकिन होगा या फिर स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप से, जिसके बिजनेस पहले से ही बहुत बड़ा हो. हमें ऐसे पार्टनर की जरूरत है जिससे Koo के यूजर्स की संख्या बढ़ सके.
Koo के मंथली यूजर्स की संख्या घटने की खबरें पिछले कई हफ्तों से मीडिया में आ रही हैं. Twitter और सरकार के बीच कानूनी लड़ाई चल रही है, लेकिन कू इसका फायदा उठाने में नाकाम रही है. इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है. इस देशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने अभी तक FY23 के अपने वित्तीय नतीजे जारी नहीं किए हैं. FY22 में इसका रेवेन्यू सिर्फ 14 लाख रुपये था. FY21 में यह 8 लाख रुपये था. FY22 में कू का नुकसान बढ़कर 197 करोड़ रुपये पहुंच गया, जो FY21 में सिर्फ 35 करोड़ रुपये था. इस स्टार्टअप की शुरुआत अपरमेया राधाकृष्णा और मयंक बिदावतका ने 2020 में की थी. इसने टाइगर ग्लोबल सहित कई बड़े निवेशकों से करीब 6.5 करोड़ डॉलर जुटाए हैं.