आज के वक्त में स्टार्टअप (Startup) कल्चर तेजी से फैल रहा है. हर युवा अब सरकारी नौकरी के सपने नहीं देख रहा है, बल्कि बहुत से युवा अपना खुद का स्टार्टअप शुरू करने के सपने देख रहे हैं. यही वजह है कि अब तेजी से बहुत सारे स्टार्टअप सामने आ रहे हैं. स्टार्टअप इंडिया (Startup India) के अनुसार सरकारी विभाग DPIIT पर ही 1 लाख से भी ज्यादा स्टार्टअप रजिस्टर्ड हैं. जब भी स्टार्टअप का जिक्र होता है तो उसमें आपको बार-बार फंडिंग (Funding) के बारे में सुनने को मिलता होगा. कभी सीड फंडिंग (Seed Funding) तो कभी राउंड ए की फंडिंग. ऐसे में कई लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि आखिर ये अलग-अलग राउंड की फंडिंग (ABCD Round Funding) क्या होती है, कब होती है, कैसे होती है? आइए जानते हैं फंडिंग की पूरी ABCD.

पहले समझना होगा प्रोटोटाइप क्या होता है

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प्रोटोटाइप किसी भी कपंनी के असली प्रोडक्ट या सर्विस जैसा ही होता है, लेकिन बड़ी मात्रा ना होकर बहुत कम होता है. जैसे कार बनाने वाली कंपनी पहले कार का प्रोटोटाइप यानी सिर्फ एक कार बनाती है तो बिल्कुल असली कार जैसी होती है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि प्रोडक्ट में जिन सुधारों की जरूरत है, उसे किया जा सके और बार-बार बाजार में जा चुके प्रोडक्ट्स से शिकायत ना आए.

प्री सीड फंडिंग

कोई भी स्टार्टअप प्री सीड फंडिंग तब उठाता है जब वह अपने आइडिया पर काम कर रहा होता है और एक प्रोटोटाइप तैयार करता है. इस दौर में निवेश काफी कम होता है. अगर आइडिया दमदार होता है तो निवेशक इस स्टेज पर तुरंत पैसे लगा देते हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि आगे चलकर उनके पैसे कई सौ गुना बढ़ सकते हैं. इस स्टेज पर निवेश उठाने की जरूरत इसलिए पड़ती है, क्योंकि इनोवेटर के पास फंड की कमी होती है. 

सीड राउंड की फंडिंग

जब किसी इनोवेटर का आइडिया रूप ले लेता है यानी प्रोटोटाइप तैयार हो चुका होता है और बाजार में जाने के लिए तैयार होता है, तब सीड राउंड की फंडिंग उठाई जाती है. इस राउंड की फंडिंग के पैसों का इस्तेमाल कर के स्टार्टअप अपने प्रोडक्ट को बाजार में लॉन्च करता है और बिजनेस करना शुरू करता है. इस राउंड की फंडिंग में प्रोडक्शन, मार्केटिंग, कस्टमर एक्विजिशन, मशीनरी और कई तरह के ऑपरेशनल खर्चों के लिए फंड जुटाया जाता है.  इस स्टेज पर एंजेल इन्वेस्टर , इनक्युबेटर और तमाम निवेशक तो पैसे डालते ही है, आप सरकारी स्कीमों के तहत ग्रांट भी हासिल कर सकते हैं.

सीरीज ए राउंड की फंडिंग

जब स्टार्टअप का बिजनेस शुरू हो जाता है, उसके बाद बिजनेस को थोड़ा बढ़ाने या यूं कहें कि तगड़ा मुनाफा जनरेट करने लायक बनाने के लिए सीरीज ए राउंड की फंडिंग उठाई जाती है. इस राउंड की फंडिंग में निवेशकों की तरफ से स्टार्टअप के कस्टमर बेस या यूजर्स की संख्या, कंपनी के सोशल मीडिया पेज की पहुंच और कंपनी के रेवेन्यू को भी देखा जाता है. ये भी देखा जाता है कि कंपनी का बिजनेस कितनी तेजी से बढ़ रहा है यानी उसकी कितनी डिमांड है. इस लेवल पर कारोबारी वेंचर कैपिटल फंड भी निवेश करते हैं. यानी ये वह लेवल होता है जब कंपनी में बड़े निवेशक पैसा लगाने लगते हैं.

सीरीज बी, सी, डी राउंड की फंडिंग

इस राउंड की फंडिंग तब उठाई जाती है जब बिजनेस को तेजी से फैलाना होता है. जैसे हो सकता है कोई स्टार्टअप सिर्फ एक शहर या जिले या राज्य तक सीमित हो, लेकिन वह पूरे देश में या कई राज्यों में फैलना चाहता हो तो वह बी राउंड की फंडिंग लेता है. उसके बाद वह सी राउंड और फिर डी राउंड की फंडिंग लेता है. यानी जैसे-जैसे स्टार्टअप आगे बढ़ता जाता है और उसे पैसों की जरूरत पड़ती है तो वह अलग-अलग राउंड की फंडिंग उठाता जाता है.