जलवायु में आ रहे बदलावों की वजह कार्बन डाई ऑक्साइड (Co2) गैस बताया जाता है. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक कार्बन डाई ऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में भारत की वैश्विक भागीदारी सात फीसद है. वैज्ञानिकों का दावा है कि हमारी जलवायु में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. कार्बन डाई ऑक्साइड को सबसे प्रमुख मानव जनित ग्रीनहाउस गैस माना जाता है. 

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कार्बन डाई ऑक्साइड पर नियंत्रण करने के लिए वैज्ञानिक लगातार अनुसंधान कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने एक नई प्रणाली विकसित की है जो कार्बन डाई ऑक्साइड से बिजली और हाइड्रोजन ईंधन उत्पन्न कर सकता है. कार्बन डाई ऑक्साइड का वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी में मुख्य योगदान है. शोधकर्ताओं ने बताया कि हाइब्रिड एनए-कार्बन डाई ऑक्साइड लगातार विद्युत ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है.

दक्षिण कोरिया में उलसान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (यूएनआईएसटी) के गुंटे किम ने बताया, ‘वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने में कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड सिक्वेसट्रेशन (सीसीयूएस) प्रौद्योगिकी का महती योगदान रहा है.’ 

किम ने कहा कि उस प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण बात यह है कि रासायनिक रूप से स्थिर कार्बन डाय ऑक्साइड के अणुओं को अन्य पदार्थों में आसानी से परिवर्तित किया जा सकेगा. हमारी नई प्रणाली ने कार्बन डाई ऑक्साइड की विघटन प्रणाली के साथ इस समस्या का समाधान कर दिया है.

बता दें कि अमेरिका के वैज्ञानिक भी इस तकनीक पर काम रहे हैं. शिकागो स्थित अर्गोन नेशन लैबोरेटरी और इलिनोइस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक पेड़-पौधों से प्रेरित होकर कार्बन डाई ऑक्साइड को पहले मोनो ऑक्साइड में बदलकर फिर उससे ईंधन बनाने पर रिसर्च कर रहे हैं. कुछ वैज्ञानिक इस गैर को ऑक्सीजन में बदलने पर प्रयोग कर रहे हैं.

(इनपुट भाषा से)