वैसे तो छाते का इस्तेमाल धूप और बारिश से बचाने के लिए किया जाता है. लेकिन भारतीय रेल छाते का इस्तेमाल बिजली पानी से बचने के लिए नहीं बल्कि बिजली और पानी बचाने के लिए शुरू करने जा रहा है और वह भी उल्टे छाते का. 

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साउथ-सेंट्रल रेलवे ने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में गुंतकल रेलवे स्टेशन पर बारिश के पानी के संरक्षण और सौर ऊर्जा के लिए 'उल्टा छाता' पहल की है. हरित रेलवे योजना के तहत स्टेशन पर 6 उल्टे छाते लगाए गए हैं. 

इन उल्टे छाते (कैनोपी) को सौलर पैनल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है और इससे बनने वाली बिजली का इस्तेमाल रेलवे स्टेशन पर मोबाइल फोन और लैपटॉप चार्ज करने के लिए किया जा रहा है. साथ ही उल्टे छातों के नीचे यात्रियों की बैठने की व्यवस्था भी की गई है.

इन कैनोपी का डिजाइन ज्यामितीय कोणों के कारण इन्हें (उल्टा छाता) को 'Model 1080' भी कहा जाता है. इन उल्टे छातों का डिजाइन साधारण छातों की तरह ही है, जिनका इस्तेमाल बरसात या धूप से बचने के लिए किया जाता है. 

उल्टे छाते का निर्माण तथा उनकी रेलवे को सप्लाई 'Think-PIE sustainable lab pvt ltd' द्वारा की गई है. कंपनी का कहना है कि यह उत्पाद दुनिया का पहला एकीकृत प्लग एंड प्ले सिस्टम है जो छाया, पानी और प्रकाश व्यवस्था का संयोजन करता है. इन छातों से बरसात के मौसम में बारिश के पानी को भी इकट्ठा किया जा सकता है.

गुंतकुल रेलवे स्टेशन पर इन 6 उल्टे छातों को लगाने पर साउथ-सेंट्रल रेलवे ने लगभग 14 लाख रुपये खर्च किए हैं. प्रत्येक छाते का आकार 5X5 मीटर और वजन 120 किलोग्राम है. छाते चकोर आकार के हैं और इसमें 40 वॉट के एलईडी ट्यूब लगाए गए हैं. 

उल्टा छाता की खासियत-

इनके आकार को जरूरत के मुताबिक समायोजित किया जा सकता है.

इन छातों से सौर ऊर्जा बनती और इसके लिए किसी तार या बिजली सप्लाई की जरूरत नहीं होती है.

मॉनसून के दौरान इन छातों में बारिश के पानी को इकट्ठा किया जा सकता है.

प्रत्येक छाते की बारिश के पानी को इकट्ठा करने की सालाना क्षमता 60,000 लीटर है.

छाते में इकट्ठा पानी को टैंक में जमा करके उसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

छाते में इकट्ठा पानी को जमीन के अंदर भेज कर ग्राउंड वाटर को बढ़ा सकते हैं.

बरसात नहीं होने पर इन छातों से सोलर पैनल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

ये उल्टे छाते 140 किमी/घंटा की रफ्तार से चलने वाली हवाओं के थपेड़ों को सहन कर सकते हैं.

(रिपोर्ट-Prasad Bhosekar)