Indian Railways News: कर्नाटक में बुजुर्ग दंपती को लोअर बर्थ न देना रेलवे को भारी पड़ा. जिला उपभोक्ता फोरम ने रेलवे को 3 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया है. वहीं राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने भी रेलवे की याचिका खारिज कर दी. 

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3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश (Rs 3 lakh compensation order)

रेलवे की गाइडलाइन दिव्यांग, बुजुर्ग यात्रियों का विशेष ख्याल रखने की बात करती है. लेकिन कई बार रेलवे कर्मचारी इन नियमों की अनदेखी करते है. ऐसे ही एक मामले में बुजुर्ग और दिव्यांग दंपती को लोअर बर्थ न देने और गंतव्य से करीब 100 किलोमीटर पहले उतारना रेलवे को महंगा पड़ा.

                जिला उपभोक्ता फोरम ने रेलवे को घोर लापरवाही और सेवा में कमी का जिम्मेदार मानते हुए 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. वहीं राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने रेलवे की याचिका खारिज करते हुए जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेश को सही ठहराया है.

टीटीई ने नहीं दी लोअर बर्थ (TTE did not give lower birth)

दैनिक जागरण के मुताबिक रेलवे की लापरवाही का यह मामला कर्नाटक का है. 4 सितंबर 2010 को बुजुर्ग दंपती सोलापुर से बिरूर जाने के लिए थर्ड एसी में दिव्यांग कोटे से सीट आरक्षित कराई क्योंकि दंपती में एक व्यक्ति दिव्यांग था. उन्हें रेलवे से लोअर बर्थ आवंटित नहीं हुई. दंपती ने टीटीई से लोअर बर्थ देने का आग्रह किया लेकिन उसने लोअर बर्थ नहीं दी. एक यात्री ने अपनी लोअर बर्थ उन्हें दे दी लेकिन सीट न मिलने तक वे बहुत परेशान रहे. 

100 किलोमीटर पहले उतार दिया (Unloaded 100 km ago)

रेलवे के खिलाफ की गई शिकायत में कहा गया था कि ट्रेन चलते समय कोच में 6 लोअर बर्थ खाली होने के बावजूद टीटीई ने उन्हें लोअर बर्थ नहीं दी. इसके अलावा उन्होंने कोच अटेंडेंट और टीटीई से कहा था कि बिरूर स्टेशन आने पर उन्हें बता दें क्योंकि ट्रेन तड़के वहां पहुंचनी थी. लेकिन उन्हें बिरूर से करीब 100 किलोमीटर पहले चिकजाजुर में उतार दिया गया जिससे उन्हें बहुत दिक्कत हुई.

जिला उपभोक्ता फोरम ने दिया आदेश (District Consumer Forum ordered)

बुजुर्ग दंपती का बेटा उन्हें चिकजाजुर स्टेशन लेने आया और तब तक सर्दी में उन्हें वक्त गुजारना पड़ा. जिला उपभोक्ता फोरम ने रेलवे को घोर लापरवाही और सेवा में कमी का जिम्मेदार ठहराते हुए 302000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. साथ ही 2500 रुपये मुकदमा खर्च भी देने का आदेश दिया.

                   राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि फोरम ने हर पहलू पर विस्तार से विचार किया है और उसका फैसला साक्ष्यों पर आधारित है. राज्य आयोग ने भी फोरम के फैसले को परखने के बाद सही ठहराया है. फैसले में कोई कानूनी खामी नहीं है. राष्ट्रीय आयोग ने रेलवे की याचिका आधारहीन बताते हुए खारिज कर दी.

रेलवे की खारिज की याचिका (Railway's dismissal petition)

रेलवे ने आदेश के खिलाफ राज्य आयोग में अपील की और कहा कि फोरम का फैसला सही नहीं है. सीट कंप्यूटराइज्ड आरक्षित होती है और स्थान के हिसाब से कोटा लगता है. टीटीई सीट नहीं दे सकता. राज्य आयोग ने अपील खारिज करते हुए कहा कि टीटीई का यात्रियों के प्रति कर्तव्य होता है, खासतौर से वरिष्ठ यात्रियों के प्रति.

लेकिन टीटीई ने इस पर ध्यान नहीं दिया कि कौन रात में ट्रेन से उतर रहा है, यह घोर लापरवाही है. ऐसे लोगों की नियोक्ता होने के चलते रेलवे अपने कर्मचारियों के इस आचरण के लिए जिम्मेदार है. राष्ट्रीय आयोग ने रेलवे की सारी दलीलें ठुकराते हुए याचिका खारिज कर दी.

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