अगर आप अपनी पढ़ाई के लिए एजुकेशन लोन लेने के बारे में सोच रहे हैं तो ये खबर आपके बड़े काम की है. मौजूदा समय में हर पैरेंट्स की इच्छा होती है कि वो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला सकें. कुछ लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेशों में भी भेजते हैं. लेकिन, विदेश में हायर एजुकेशन मिडल क्लास लोगों के लिए या किसी चुनौती से कम नहीं है. इसलिए देश में कई ऐसे बैंक हैं जो की बहुत ही आसान और कम ब्याज पर एजुकेशन लोन मुहैया करते है. लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जो, लोन से पहले जरूर जान लेनी चाहिए ताकि बाद में कोई दिक्कत न हो. 

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1. कितने लोन की है जरूरत

आपको कितनी राशि की जरूरत है इसके लिए संस्थान की फीस से लेकर पढ़ाई के छोटे-बढ़े खर्चे को भी जोड़ लें जैसे कि ट्यूशन और हॉस्टल फीस, साथ ही लैपटॉप और किताबें आदि के चार्जेस को भी ध्यान में रखें. सिर्फ कॉलेज फीस को जोड़कर लोन लेने की गलती न करें क्योंकि बाद में पैसे कम पड़ने जैसी दिक्कत सामने आ सकती है. 

 

2. थर्ड पार्टी गारंटी

4 लाख से कम का एजुकेशन लोन आपको बिना किसी लोन गारंटर के मिल सकता है. लेकिन, लोन की राशि 4 लाख से ज्यादा होने पर थर्ड पार्टी गारंटर की जरूरत पड़ती है. इतना ही नहीं 7.5 लाख से ज्यादा लोन पर कोई प्रॉपर्टी, इंश्योरेंस पॉलिसी, बैंक डिपॉजिट को सिक्योरिटी के रूप में देना पड़ता है. इसलिए लोन से पहले ही एक लोन गारंटर तैयार कर लें. 

3. अकेडमी रिकॉर्ड/क्रेडिट स्कोर

विभिन्न बैंकों की ओर से दी जाने वाली ब्याज दरों की तुलना करना एक आवश्यक कदम है. आपको मिलने वाली ब्याज दर आपके द्वारा चुने गए कोर्स और यूनिवर्सिटी के साथ-साथ आपके शैक्षणिक रिकॉर्ड (Academic Record) पर भी निर्भर करता है. इसके अलावा, लोन के लिए आवेदन करने से पहले अपने क्रेडिट स्कोर को बढ़ाना समझदारी है, क्योंकि 700 से ऊपर का क्रेडिट स्कोर अच्छा माना जाता है ऐसे में लेंडर आपको लोन आसानी से दे देता है. 

4. लोन रिपेमेंट

बैंक आपको पढ़ाई के पीरियड के दौरान एक साल का मोरेटोरियम पीरियड देता है जिसमें EMI के तौर पर बैंक से ली गई राशि को नहीं चुकानी होती है. लेकिन इसके बाद 15 साल के अंदर इस लोन को रिपेमेंट कर सकते हैं. बता दें कि जिस दिन से लोन सेंशन होता है उसी दिन से ब्याज शुरू हो जाता है. खास बात ये है कि बैंक मोरेटोरियम पीरियड (Mortorium period) को दो साल और बढ़ा भी सकता है. बैंकों की ओर से यह सुविधा इसलिए शुरू की गई ताकि स्टूडेंट्स पर लोन का दबाव न बने.