कोई भी व्‍यक्ति किसी स्‍कीम में प्रॉफिट को देखकर निवेश शुरू करता है. कुछ लोग प्रॉफिट के चक्‍कर में जोखिम भी उठाने के लिए तैयाररहते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसी जगह पर इन्‍वेस्‍ट करना पसंद करते है जहां उनका निवेश पूरी तरह से सुरक्षित रहे और उन्‍हें गारंटीड मुनाफा मिले. अगर आप भी उन निवेशकों में से हैं, जो सुरक्षित और गारंटीड रिटर्न वाली स्‍कीम्‍स में निवेश करना पसंद करते हैं, तो पोस्‍ट ऑफिस की एक स्‍कीम आपको अपने पोर्टफोलियो में जरूर रखनी चाहिए. हम बात कर रहे हैं पोस्‍ट ऑफिस किसान विकास पत्र (Post Office Kisan Vikas Patra) की, ये ऐसी स्‍कीम है जो आपके निवेश को गारंटीड दोगुना करके लौटाती है. जानिए इस स्‍कीम के तमाम फायदे.

115 महीनों में दोगुना कर देगी आपका पैसा

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पोस्‍ट ऑफिस की किसान‍ विकास पत्र स्‍कीम किसी भी निवेशक को 115 महीने में निवेश को दोगुना करने की गारंटी देती है. मौजूदा समय में इस स्‍कीम में 7.5 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि ब्‍याज मिलता है. अच्‍छी बात ये है कि इस स्‍कीम में कोई व्‍यक्ति 1000 रुपए से भी निवेश की शुरुआत कर सकता है और अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है. इसके अलावा इस योजना के तहत कितने भी अकाउंट खोले जा सकते हैं.

कौन खोल सकता है अकाउंट

किसान विकास पत्र नाम सुनकर ऐसा लगता है कि ये स्‍कीम सिर्फ किसानों के लिए बनाई गई है. दरअसल इस स्कीम की शुरुआत 1988 में हुई थी, तब इसका मकसद था किसानों के निवेश को दोगुना करना, लेकिन अब इसे सभी के लिए खोल दिया गया है. अब इसमें कोई भी वयस्‍क व्‍यक्ति सिंगल या जॉइंट अकाउंट ओपन करवा सकता है. इसके अलावा 10 साल से अधिक उम्र का बच्‍चा अपने नाम पर किसान विकास पत्र ले सकता है. 

अवयस्क या विकृत मस्तिष्क के व्यक्ति की ओर से अभिभावक खाता खोल सकते हैं. खाता खुलवाते समय आधार कार्ड, आयु प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, केवीपी एप्लीकेशन फॉर्म वगैरह डॉक्‍यूमेंट्स की जरूरत पड़ सकती है. NRI इस स्कीम के लिए पात्र नहीं है.

115 महीने से पहले करनी हो रकम की निकासी तो क्‍या है नियम

केवीपी खाते को जमा करने की तारीख से 2 साल 6 महीने के बाद प्रीमैच्योर विड्रॉल जा सकता है. हालांकि इस पर कुछ शर्तें लागू होती हैं, जो कि इस प्रकार हैं:-

  • KVP होल्डर या जॉइंट अकाउंट के मामले में किसी एक या सभी अकाउंट होल्डर्स की मृत्यु होने पर
  • राजपत्र अधिकारी के मामले में गिरवीदार द्वारा जब्त किए जाने पर
  • न्यायालय के आदेश पर