Mutual Fund Investment: बाजार में जारी उतार-चढ़ाव के बावजूद म्‍यूचुअल फंड में निवेशकों का भरोसा मजबूत बना हुआ है. मार्च 2022 के दौरान इक्विटी म्‍यूचुअल फंड्स (Mutual Fund) में रिकॉर्ड 28,463 करोड़ रुपये का इनफ्लो हुआ. यह इक्विटी फंड्स का ऑल टाइम हाई निवेश है. एसोसिएशन ऑफ म्‍यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च में लगातार 13वें महीने इक्विटी फंड्स में निवेश आया. म्‍यूचुअल फंड में निवेश आज के समय में काफी आसान है. कई ऐसे अप्‍लीकेशन और डिजिटल प्‍लेटफॉर्म हैं, जहां ऑनलाइन KYC पूरी कर निवेश शुरू किया जा सकता है. इसमें निवेशक महज 100 रुपये की SIP (सिस्‍टमैटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लान) से भी निवेश शुरू कर सकते हैं. हालांकि, म्‍यूचुअल फंड में निवेश को लेकर कई तरह के ऊहापोह दिमाग में चलते हैं, जैसेकि रेग्‍युलर प्‍लान में जाएं या डायरेक्‍ट निवेश करें. एडलवाइस वेल्‍थ मैनेजमेंट के प्रेसिडेंट एंड हेड (पर्सनल वेल्‍थ) राहुल जैन से म्‍यूचुअल फंड में निवेश से पहले के कॉमन सवालों के जवाब जानते हैं.

डायवर्सिफाइड या कन्‍संट्रेटेड स्‍कीम 

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कुछ फंड्स का पोर्टफोलियो 50-60 कंपनियों में फैला होता है. जबकि, कुछ स्‍कीम्‍स का काफी कॉम्‍पैक्‍ट होता है, उनके पोर्टफोलियो में 25-30 स्‍टॉक्‍स ही होते हैं. एक कन्‍संट्रेटेड पोर्टफोलियो बाजार की रैली में रिटर्न बढ़ा सकता है, लेकिन एक डायवर्सिफाइड फंड मार्केट की गिरावट में मुनाफे को प्रोटेक्‍ट करता है. बतौर निवेशक, आपको डायवर्सिफाइड फंड्स में अपनी कोर होल्डिंग रखनी चाहिए. साथ ही कन्‍संट्रेटेड फंड में अपना कुछ निवेश सप्‍लीमेंट्री तौर पर करना चाहिए. इस स्‍ट्रैटजी से आपको मार्केट की तेजी और गिरावट दोनों ही स्थिति के लिए आपका पोर्टफोलियो बेहतर साबित होगा.

डायरेक्‍ट प्‍लान या रेग्‍युलर प्‍लान 

सभी म्‍यूचुअल फंड्स (Mutual Funds) में डायरेक्‍ट और रेग्‍युलर वेरिएंट्स हैं. डायरेक्‍ट प्‍लान में कोई इंटरमीडियरी नहीं होता है. इसलिए एक्‍सपेंश रेश्‍यो कम होता है. वहीं, रेग्‍युलर प्‍लान इससे अलग होता है. इसमें एक्‍सपेंस रेश्‍यो ज्‍यादा हाता है, क्‍योंकि उसमें इंटरमीडियरीज शामिल होता है. लॉन्‍ग टर्म में कम एक्‍सपेंश रेश्‍यो हायर रिटर्न ट्रांसलेट होता है. इसके साथ ही कम्‍पाउंडिंग के चलते लो एक्‍सपेंश रेश्‍यो से डायरेक्‍ट प्‍लान में गेन्‍स ज्‍यादा होता है. हालांकि, डायरेक्‍ट प्‍लान में तभी निवेश करना चाहिए, जब आपको मार्केट की समझ अच्‍छी हो और मार्केट के टर्म को अच्‍छी तरह समझते है. वर्ना, रेग्‍युलर प्‍लान में निवेश करना चाहिए. 

 

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एक्टिव या पैसिव फंड्स 

एक्टिव फंड्स अपने बेंचमार्क इंडेक्‍स से बेहतर रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं. दूसरी ओर, पैसिव फंड्स बामुश्किल से अपने बेंचमार्क इंडेक्‍स के बराबर रिटर्न दे पाते हैं. एक्टिव फंड्स की फीस ज्‍यादा होती है, जबकि पैसिव फंड्स में फंड मैनेजर्स की जरूरत नहीं होती है. अगर सबकुछ ठीक रहता है, तो एक्टिव फंड्स बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. हालांकि, जब मार्केट कंडीशन बेहतर न हो, तो इनका रिटर्न बेंचमार्क इंडेक्‍स से कम रहता है. हालांकि, इस कौन-सा फंड चुनें इस बात का फैसला आपके इन्‍वेस्‍टमेंट गोल पर तय होता है.

अगर आप दमदार रिटर्न जेनरेट करना चाहते हैं तो एक्टिव फंड चुनें. दूसरी ओर, अगर आप किसी इंडेक्‍स के बराबर परफॉर्मेंस चाहते हैं, तो पैसिव फंड बेहतर ऑप्‍शन हैं. डायवर्सिफिकेशन के लिए निवेशक को पोर्टफोलियो में एक्टिव और पैसिव दोनों ही फंड रखने चाहिए. 

बड़ा या छोटा फंड 

फंड कितना बड़ा है या छोटा, यह कोई मायने नहीं रखता है. इसकी बजाय निवेश से पहले लॉन्‍ग टर्म में फंड की परफॉर्मेंस कैसी रही है, इसका एनॉलसिस जरूर करना चाहिए. अगर काई फंड लंबी अवधि में हाई रिस्‍क एडजस्‍टेड रिटर्न देता है, तो वह निवेश के लिए बेहतर च्‍वाइस हो सकता है. दूसरी ओर, अगर फंड का लॉन्‍ग टर्म रिटर्न अच्‍छा नहीं है, तो उसमें निवेश से बचना चाहिए. कई ऐसी स्‍माल म्‍यूचुअल फंड स्‍कीम्‍स है, जिनकी परफॉर्मेंस बड़े फंड्स से बेहतर रही है.

ओपन या क्‍लोज-एंडेड फंड्स 

अगर आप किसी ओपन-एंडेड म्‍यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो आप किसी भी समय एंट्री या एग्जिट कर सकते हैं. आप जरूरत पर आसानी से आंशिक रूप से निकासी कर सकते हैं या अपना निवेश अमाउंट बढ़ा सकते हैं. हालांकि, क्‍लोज-एंडेड फंड्स में आप ऐसा नहीं कर सकते हैं. इसमें निवेशकों को एकमुश्‍त निवेश करना होता है. 

 

(डिस्‍क्‍लेमर: म्‍यूचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है. निवेश संबंधी फैसला लेने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)