शेयर बाजार में कंपनियों को कैप के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है. कैप का मतलब कैपिटलाइजेशन से होता है. किसी भी कंपनी के शेयरों की संख्या को उनकी मार्केट वैल्यू से मल्टीप्लाई करने पर उस कंपनी की कैपिटलाइजेशन को निकाला जाता है. इस तरह कंपनियों का कैपिटलाइजेशन शेयर मार्केट द्वारा निर्धारित उनकी वैल्‍यू को बताता है. कैपिटलाइजेशन के आधार पर इन कंपनियों को तीन कैटेगरी (लार्ज कैप, मिड कैप और स्‍मॉल कैप) में रखा जाता है. अगर आप भी शेयर मार्केट में दिलचस्‍पी रखते हैं और इनमें निवेश करने का मन बना रहे हैं, तो आपको लार्ज कैप, मिड कैप और स्‍मॉल कैप के बारे में जरूर जानना चाहिए.

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लार्ज कैप

आमतौर पर जिस कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 10,000 करोड़ रुपए से ज्‍यादा होती है, उन्‍हें लार्ज कैप

की श्रेणी में रखा जाता है. लार्ज कैप होने के कारण इन कंपनियों की मार्केट में मजबूत पकड़ होती है. बाजार के उतार-चढ़ाव का इन पर मिड कैप और स्माल कैप की तुलना में कम असर पड़ता है. मार्केट करेक्‍शन पर इनमें ज्‍यादा अस्थि‍रता देखने को नहीं मिलती, इसकी ग्रोथ संतुलित होती है. ज्‍यादातर एक्‍सपर्ट इनमें निवेश को सुरक्षित मानते हैं. लेकिन भारत की ज्‍यादातर लार्ज कैप कंपनियां वर्ल्‍ड रैंकिंग में मिड कैप या स्‍मॉल कैप कंपनियां बन जाती हैं क्‍योंकि दुनिया भर में उन्हीं कंपनियों को लार्ज कैप का दर्जा मिलता है जिसका मार्केट कैप 10 अरब डॉलर से अधिक होता है.  

मिड कैप

जिस कंपनी का मार्केट वैल्‍यू 2000 करोड़ रुपए से लेकर 10,000 करोड़ रुपए तक है, वो कंपनी मिड कैप की कैटेगरी में आती है. मिड कैप कंपनियों में बड़े आकार की कंपनी बनने का दमखम होता है. वहीं निवेश से ज्यादा रिटर्न पाने का मौका होता है. अगर आप शेयर मार्केट में निवेश करने का मन बना चुके हैं, तो आपको एक बार कंपनी की कैटेगरी पर गौर जरूर कर लेना चाहिए. इससे बाद में आपको पछताना नहीं पड़ता.

स्‍मॉल कैप

जिन कंपनियों की मार्केट कैपिटलाइजेशन 2000 करोड़ रुपए से कम होती है, वो स्‍मॉल कैप की कैटेगरी में आती है. इन कंपनियों की भविष्‍य में मिड कैप बनने की संभावना होती है. स्मॉल-कैप कंपनियां हाई रिस्‍क और हाई रिटर्न स्टॉक निवेश हैं. इनकी ग्रोथ बहुत तेजी से होती है, लेकिन अगर चीजें ठीक न हो तो बड़ा नुकसान भी झेलना पड़ सकता है.