एक यूलिप प्लान को इंवेस्टर अपनी जरुरतों के मुताबिक सब्सक्राइब करता है. प्रीमियम अमाउंट को इंश्योरेंस कवरेज और कैपिटल मार्केट फंड के बीच डिस्ट्रिब्यूट किया जाता है. कैपिटल मार्केट प्रोडक्ट की यूनिट में इंवेस्टमेंट, पॉलिसी खरीदते समय उनके बताई गई वैल्यू के आधार पर किया जाता है. इमरजेंसी की कंडीशन में अगर कोई यूलिप अमाउंट को विड्रॅा करता है. तब कुछ यूनिट लिक्विफाई हो जाती है. कुछ टर्म्स और कंडीशन को ध्यान में रखते हुए कोई इंसान पॉलिसी के मैच्योर होने से पहले ही यूलिप अमाउंट को पार्शियली विड्रॅा कर सकता है. कंपनी की पॅालिसी के आधार पर यूलिप पॉलिसी से कितनी भी राशि निकाली जा सकती है. यूलिप अमाउंट का ज्यादा ट्रांजेक्शन पॉलिसी को खत्म कर सकता है. इसलिए अपनी यूलिप स्कीम के कॅास्ट को कवर करने के लिए सफिशिएंट अमाउंट को रखना चाहिए. ऐसे मामलों में जहां प्रीमियम के साथ टॉप-अप पेमेंट किया जाता है, इनमें पहले पेमेंट से और बाद में बेस फंड वैल्यू से विड्रॅाल किया जाता है. साथ ही अगर टॉप-अप पेमेंट की ड्यूरेशन पूरी नहीं होती है, तो केवल बेस फंड से ही विड्रॅाल किया जाता है.

कितने तरह के होते हैं यूलिप विड्रॅाल

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5 साल की लॉक-इन ड्यूरेशन से पहले

2010 के भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के नियमों के अनुसार ULIP अमाउंट के लिक्विडेशन के लिए एलिजिबल होने का मिनिमम पीरियड 3 साल से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया था. ये लॅान्ग टर्म इंवेस्टमेंट के साधनों से मैक्सिमम बैनिफिट लेने के लिए किया गया था. इसका मतलब है कि यूलिप की रकम निकालने के लिए प्लान का कम से कम पांच साल का पीरियड कंप्लीट होना चाहिए. अगर 5 साल के पूरा होने से पहले स्कीम को सरेंडर या बंद कर दिया जाता है तो किसी भी तरह के फंड की लिक्विडिटी नहीं की जा सकेगी.

5 साल की लॉक-इन ड्यूरेशन के बाद

एक बार लॉक-इन पीरियड पूरी हो जाने के बाद इंश्योरर यूलिप अमाउंट पर विड्रॅाल लिमिट के तहत यूलिप अमाउंट का लिक्विडेशन कर सकता है. आमतौर पर पेमेंट किए गए टॉप-अप, पीरियॅाडिक प्रीमियम अमाउंट के साथ सब्सक्राइबर की रिक्वेस्ट पर निकाले जाते हैं. जब टॉप-अप अमाउंट खत्म हो जाता है. या अगर ऐसा कोई अमाउंट अवेलेबल नहीं होता है, तो बेस फंड के अमाउंट को खत्म करने की परमिशन दी जाती है.

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