ITR Filing: हर साल करोड़ों लोग इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Return) फाइल करते हैं. हर आईटीआर फाइल करने वाले शख्स को Tax Exemption और Tax Deduction के बारे में पता होना जरूरी है, ताकि कोई गलती ना हो. आईटीआर फाइल करने वाले कई लोग इन दोनों को समझ ही नहीं पाते हैं. कई लोगों को तो यहां तक लगता है कि यह दोनों एक ही हैं. आइए आज आपको इन दोनों का मतलब उदाहरण के साथ समझाते हैं. 

पहले बात Tax Exemption की

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जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि यह ऐसी इनकम होती है, जिस पर टैक्स छूट मिलती है. इन पर टैक्स नहीं लगता है. हालांकि, यह छूट भी एक तय सीमा तक होती है. इसमें एग्रीकल्चरल इनकम, हाउस रेंट अलाउंस, लीव ट्रैवल अलाउंस और एंप्लॉयर की तरफ से दिए जाने वाले कुछ अलाउंस शामिल होते हैं. बता दें कि सारे एग्जेम्पशन इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10 के तहत मिलते हैं.

छूट वाले सेक्शन भी जान लीजिए

  • सेक्शन 10(13) के तहत आपको हाउस रेंट अलाउंस पर टैक्स छूट मिलती है. इस पर या तो आपको उतने पैसों पर टैक्स छूट मिलती है, जितना एचआरए नियोक्ता ने दिया हो. या फिर आपकी बेसिक सैलरी का नॉन मेट्रो शहर में 40 फीसदी और मेट्रो शहर में 50 फीसदी. या फिर आपके रेंट से बेसिक सैलरी का 10 फीसदी घटाने के बाद बची राशि. इन तीनों में से जो भी कम हो, उस पर आपको टैक्स छूट मिलती है.
  • सेक्शन 10(5) के तहत आप लीव ट्रैवल अलाउंस पर छूट पा सकते हैं. इसका अमाउंट एंप्लॉयर की तरफ से निर्धारित किया जाता है. यह छूट आप 4 साल में दो बार ले सकते हैं.
  • इन सबके अलावा पुरानी टैक्स व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये और नई टैक्स व्यवस्था में 3 लाख रुपये तक की इनकम टैक्स फ्री होती है.

जान लीजिए क्या होता है Tax Deduction

जैसा कि नाम से ही आप समझ रहे होंगे कि यह घटाने से रिलेटेड है. आप जब किसी वित्त वर्ष में कुछ निवेश और खर्चे करते हैं, जिन्हें आप आईटीआर फाइल करते वक्त अपनी ग्रॉस सैलरी से घटा सकते हैं, उसे डिडक्शन कहा जाता है. डिडक्शन की मदद से आपको अपनी टैक्सेबल इनकम कम करने में मदद मिलती है, जिससे आपकी टैक्स देनदारी घटती है. हालांकि, यह डिडक्शन सरकार तय करती है कि किस निवेश या खर्च पर आपको मिलेगा और कितना मिलेगा.

एक उदाहरण से समझते हैं

अगर आपने पीपीएफ में निवेश किया है, बेटी के लिए सुकन्या समृद्धि योजना ली है या होम लोन की ईएमआई चुकाते हैं, तो इतने पैसों को आप अपनी ग्रॉस सैलरी से घटा सकते हैं. इतना ही नहीं, सरकार की तरफ से हर नौकरीपेशा को 50 हजार रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलता है. नई टैक्स व्यवस्था में यह डिडक्शन अगले साल से 75 हजार रुपये हो जाएगा. अगर आपने कोई हेल्थ इंश्योरेंस या लाइफ इंश्योरेंस लिया है, तो उसका प्रीमियम भी डिडक्शन की तरह काम करता है, जिस पर आपको एक तय सीमा तक छूट मिलती है. सारे डिडक्शन इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 के तहत क्लेम किए जाते हैं.

कुछ काम के सेक्शन भी जान लीजिए

  • इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी के तहत आपको निवेश और खर्चों पर 1.5 लाख रुपये तक का डिडक्शन मिलता है. 
  • सेक्शन 80सीसीडी (1बी) के तहत आप एनपीएस में योगदान कर के 50 हजार रुपये तक का डिडक्शन हासिल कर सकते हैं. 
  • सेक्शन 80डी के तहत आपको मेडिकल प्रीमियम पर डिडक्शन मिलता है. 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए इसकी सीमा 25 हजार रुपये हैं, जबकि 60 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए यह सीमा 50 हजार रुपये है.
  • सेक्शन 80ई के तहत आप एजुकेशन लोन के लिए चुकाए गए ब्याज पर 8 साल तक टैक्स छूट पा सकते हैं.
  • सेक्शन 80जी के तहत आप दान यानी डोनेशन में दिए पैसों पर 50 से 100 फीसदी तक का डिडक्शन पा सकते हैं.
  • सेक्शन 80टीटीए के तहत अगर आप 60 साल से कम उम्र के हैं तो सेविंग्स अकाउंट से मिले 10 हजार रुपये तक के ब्याज पर डिडक्शन पा सकते हैं.
  • सेक्शन 80टीटीबी के तहत अगर आपकी उम्र 60 साल या उससे अधिक है तो आप सेविंग्स अकाउंट से मिले 50 हजार रुपये तक का डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं.