Budget 2023 में सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स को लेकर बड़ा फैसला ले सकती है. माना जा रहा है कि 1 फरवरी को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन में बड़े बदलाव का ऐलान कर सकती है. LTCG को युक्तिसंगत बनाने पर विचार किया जा रहा है. इसके अलावा इंडेक्सेशन का लाभ देने के लिए बेस ईयर को भी रिवाइज किया जा सकता है. 

कैपिटल गेन को लेकर नियम काफी जटिल

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वर्तमान में शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन को लेकर नियम काफी जटिल है. इक्विटी निवेशकों के लिए 12 महीने के बाद कैपिटल गेन LTCG और उससे पहले शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स का नियम लागू होता है. अगर अचल संपत्ति को बेचा जाता है या फिर अनलिस्टेड शेयर को बेचा जाता है तो 2 साल के बाद लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है. ज्वैलरी और डेट फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स के लिए 3 साल बाद लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू होता है. इन दोनों मामलों में 20 फीसदी का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है.

होल्डिंग पीरियड पर फैसला लिया जा सकता है

रिपोर्ट के मुताबिक, रेवेन्यू डिपार्टमेंट कैपिटल गेन टैक्स को युक्तिसंगत बनाने पर विचार कर रहा है. इसमें होल्डिंग पीरियड और टैक्स रेट, दोनों को युक्तिसंगत बनाया जाएगा. इसकी घोषणा 1 फरवरी 2023 को बजट 2023-24 में किया जा सकता है.

इंडेक्सेशन के लिए बेस ईयर में बदलाव संभव

इसके अलावा इंफ्लेशन का लाभ देने  के लिए इंडेक्सेशन कैलकुलेशन के लिए बेस ईयर में भी बदलाव किया जा सकता है. आखिरी बार साल 2017 में बेस ईयर में बदलाव किया गया था. वर्तमान में इंडेक्सेशन का बेनिफिट 2001 के आधार पर मिल रहा है. बीते कुछ सालों में असेट की कीमत में बड़ी बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण इंडेक्सेशन का बेस ईयर रिवाइज करना जरूरी हो गया है.

टैक्सपेयर फ्रेंडली बनाने का विचार

इसके अलावा कैपिटल गेन स्ट्रक्चर को सरल बनाना भी सरकार की प्राथमिकता है. सरकार इसे टैक्सपेयर फ्रेंडली बनाना चाहती है.  इनकम टैक्स एक्ट के मुताबिक, चल और अचल, दोनों तरह के असेट बेचने पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है या कैपिटल लॉस की भरपाई होती है. 

होल्डिंग पीरियड को सिंगल रखा जा सकता है

AMRG एंड एसोसिएट के डायरेक्टर ओम राजपुरोहित ने कहा कि 2004 के बाद कैपिटल गेन टैक्स में कई बदलाव किए गए हैं जिसके कारण यह काफी जटिल हो गया है. इसमें अलग-अलग असेट क्लास के लिए अलग-अलग होल्डिंग पीरियड है जिसपर अलग-अलग टैक्स रेट लागू होता है. संभव है कि सरकार असेट क्लास को चल और अचल की कैटिगरी में बांट दे और होल्डिंग पीरियड को भी इसके अनुरूप सिंगल टाइमलाइन में रखा जाए.

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