50/30/20 Budgeting Rule: समझ लें ये फॉर्मूला; निवेश, खर्चे के बाद भी नहीं होगी पैसों की दिक्कत
50/30/20 Budgeting Rule: मनी मैनेजमेंट को कुछ रूल्स के साथ फॉलो किया जाए, तो आप इनकम में सेविंग्स के साथ-साथ इन्वेस्टमेंट और लाइफ स्टाइल के खर्चे भी बिना टेंशन कर सकेंगे. यह तरीका एक सिंगल गणित का फॉर्मूला है.
50/30/20 Budgeting Rule: अक्सर सैलरीड क्लास इस बात को लेकर दिक्कत में रहते हैं कि सैलरी आते ही अगले कुछ दिन में खत्म हो जाती है. कभी उनके पास निवेश के लिए पैसे कम पड़ जाते हैं, तो कभी लाइफस्टाइल पर खर्च करने की तंगी आ जाती है. यहां एक बहुत ही टेक्निकल बात है कि सैलरीड क्लास को अपनी इनकम और मंथली खर्चे की पूरी जानकारी होती है, तो फिर मामला कहां बिगड़ जाता है. दरअसल, यहां सबसे बड़ी दिक्कत है कि फाइनेंशियल प्लानिंग और मनी मैनेजमेंट की. एक्सपर्ट का कहना है कि मनी मैनेजमेंट को कुछ रूल्स के साथ फॉलो किया जाए, तो आप इनकम में सेविंग्स के साथ-साथ इन्वेस्टमेंट और लाइफ स्टाइल के खर्चे भी बिना टेंशन कर सकेंगे. यह तरीका एक सिंगल गणित का फॉर्मूला है.
याद रखें 50+30+20= 100 का रूल
बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर अमित कुमार निगम कहते हैं, मनी मैनेजमेंट में मैथ्स के सिंपल फॉर्मूला याद रख लें, तो आप आसानी से अपना हर टारगेट पूरा कर सकेंगे. यह सिंपल फॉर्मूला है 50 + 30 + 20 = 100. अब 50/30/20 रूल को सरल शब्दों में समझते हैं. मान लीजिए मंथली नकम 100 रुपये है. इसमें कहां कितना एलोकेशन करना है.
बेसिक जरूरतों पर खर्च- 50 फीसदी
निवेश: 30 फीसदी
गिल्ट फ्री खर्च: 20 फीसदी
निगम कहते हैं, घर की बेसिक जरूरतों पर होने वाला खर्च आपकी इनकम का 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. साथ ही यह कोशिश हमेशा करें और उसका पालन करें कि अगर आप 100 रुपये कमा रहे हैं, तो 30 रुपये निवेश भी कर रहे हैं. इसके अलावा, लाइफस्टाइल के खर्चों जैसेकि ट्रैवल, मूवी, आउटिंग के लिए 20 फीसदी रकम खर्च करें. इस तरह आपको किसी भी खर्चों को एडजस्ट करने या रोकने की आवश्यकता नहीं होगी. इस फॉर्मूले से जीवन के अलग-अलग लक्ष्यों को हासिल करने के साथ-साथ गिल्ट फ्री स्पेडिंग भी कर सकेंगे.
निवेश की प्लानिंग रखें दमदार
उनका कहना है, यहां लेकिन यह ध्यान रखें कि निवेश करना कभी न भूले. यह निवेश न केवल अपने बच्चों के लिए बल्कि अपने जीवन के अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है. निवेश को लेकर यह समझ लें कि कहां-कितना पैसा किस मकसद के लिए रखना है, इसकी प्लानिंग इनकम, उम्र और रिस्क उठाने की क्षमता के आधार पर फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद से कर लें.