म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) में निवेश की जब भी बात आती है तो अक्सर दो प्लान के बारे में सुनने को मिलता हैं डायरेक्ट (Direct Plan) और रेगुलर प्लान (Regular Plan). अक्सर नये निवेशकों को इन प्लान की ज्यादा समझ नहीं होती और कई बार गलत चुनाव कर लेते हैं. डायरेक्ट और रेगुलर प्लान में क्या फर्क है, कैसे और कब आपको चुनने चाहिए डायरेक्ट या रेगुलर प्लान, ये बताने के लिए हमारे साथ हैं फिनपीस टेक्नोलॉजिस के CEO निर्मल रेवरिया.

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 लिक्वि़डिटी रिस्क

जब अपने निवेश को आप अपनी इच्छा से बेच नहीं पाते.

निवेश को बेचने में दिक्कत आती है पेश.

रिटर्न का नुकसान झेले बिना बाहर निकलना जब हो मुश्किल.

निवेश भुनाने में आने वाली दिक्कत को ही लिक्विडिटी रिस्क कहते हैं.

म्यूचुअल फंड में ELSS में लिक्विडिटी रिस्क कह सकते हैं.

ELSS में लॉक-इन पीरिएड होता है.

आपको पैसों की जरूरत पड़ती है तो भी आप पैसे नहीं निकाल सकते.

पहले लक्ष्य फिर निवेश

पहले लक्ष्य तय करें फिर निवेश करना सही.

रिटर्न को ध्यान में रखकर निवेश नहीं करें.

हमेशा लक्ष्यों के लिए निवेश करने पर ध्यान दें.

SIP के जरिये निवेश दिलाएगा फायदा.

म्यूचुअल फंड में निवेश

म्यूचु्अल फंड में निवेश के दो प्लान हैं.

एक डायरेक्ट तो दूसरा रेगुलर प्लान.

एक ही फंड में निवेश के लिए दोनों प्लान.

निवेश के नजरिये से दोनों में कुछ फर्क.

डायरेक्ट प्लान

डायरेक्ट प्लान म्यूचुअल फंड में निवेश का तरीका.

रेगुलर के मुकाबले डायरेक्ट ज्यादा अलग नहीं.

दोनों प्लान में आम तौर पर एक्सपेंस रेश्यो का फर्क.

रेगुलर के मुकाबले डायरेक्ट का एक्पेंस रेश्यो होता है कम.

डायरेक्ट प्लान में नहीं होता कोई मध्यस्थ. 

सेबी ने 7 साल पहले की थी डायरेक्ट प्लान की शुरुआत.  

रेगुलर प्लान के सस्ते विकल्प के तौर पर किया पेश.

रेगुलर प्लान

रेगुलर प्लान डायरेक्ट प्लान से ज्यादा अलग नहीं.

रेगुलर प्लान की बिक्री होती है मध्यस्थों के जरिए.

म्यूचुअल फंड ड्रिस्ट्रीब्यूटर की मदद से करते हैं निवेश.

उन निवेशकों के लिए सही, जिन्हें निवेश की ज्यादा समझ नहीं.

दोनों में फर्क

डायरेक्ट और रेगुलर प्लान में खर्च का फर्क.

एक ही पोर्टफोलियो में निवेश के दो तरीके.

दोनों प्लान आप खुद ऑनलाइन ले सकते हैं.

दोनों प्लान में सिर्फ एक्सपेंस रेश्यो का है खर्च.

कमीशन न होने का फायदा आपको मिलता है.

कमीशन न होने से NAV में बढ़त मिलती है.

रेगुलर प्लान में कमीशन डायरेक्ट के मुकाबले ज्यादा.

कमीशन के चलते लॉन्ग टर्म में रिटर्न होता है कम.

रेगुलर के मुकाबले डायरेक्ट ज्यादा पारदर्शी.

डायरेक्ट में एडवाइजर

डायरेक्ट हो चाहे रेगुलर, निवेश एक ही तरह से.

डायरेक्ट में भी एडवाइजर की भूमिका आती है सामने.  

डायरेक्ट फंड में निवेशक रख सकता है एडवाइजर.

डायरेक्ट के मामले में एडवाइजर RIA होना जरूरी.

RIA यानी रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर.

RIA सेबी के साथ होते हैं रजिस्टर्ड.  

डायरेक्ट प्लान के फायदे

डायरेक्ट प्लान में एक्सपेंस रेश्यो कम होता है.

कम एक्सपेंस रेश्यो का असर रिटर्न पर भी.

रेगुलर के मुकाबले ज्यादा रिटर्न मिलता है.

डायरेक्ट का NAV भी ज्यादा होता है.

RIA किसी म्यूचुअल फंड कंपनी से जुड़ा नहीं.

ऐसे में निवेश को लेकर मिलती है निष्पक्ष राय.

 

रिटर्न में फर्क

रेगुलर के मुकाबले डायरेक्ट में ज्यादा रिटर्न की गुंजाइश.

डायरेक्ट में कम होता है एक्सपेंस रेश्यो.

कम एक्सपेंस रेश्यो के चलते ज्यादा NAV.

आम तौर पर दोनों के रिटर्न में 1-1.25% का अंतर.

नये निवेशकों के लिए क्या बेहतर

डायरेक्ट और रेगुलर, दोनों ही नये निवेशक के लिए बेहतर.

नये निवेशक के लिए एडवाइजर की राय लेना होता है अहम.

म्यूचुअल फंड की ज्यादा समझ नहीं तो एडवाइजर करेगा मदद.

एडवाइजर निवेश को लेकर देगा सलाह, पोर्टफोलियो करेगा मॉनिटर.

एडवाइजर का काम है निवेशकों को गलती करने से रोकना.

एडवाइजर का काम आपका मुनाफा बढ़ाने के लिए राय देना.

ए़डवाइजर की सेवा लेकर ही निवेश करना है बेहतर.  

एडवाइजर की कमीशन

रेगुलर प्लान में अलग-अलग है कमीशन.  

सेवा के आधार पर चार्जेज भी होते हैं अलग-अलग.

पोर्टफोलियो रिव्यू करने, अन्य सेवाओं के लिए चार्ज.

इक्विटी म्यूचुअल फंड में करीब 1 फीसदी कमीशन.

डेट फंड में करीब 0.5% कमीशन लगता है.

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रेगुलर से डायरेक्ट में ट्रांसफर

रेगुलर से डायरेक्ट में ट्रांसफर करना संभव है.

ट्रांसफर के दौरान लग सकता है एग्जिट लोड.

नियमों के मुताबिक देना पड़ सकता है टैक्स भी.

एग्जिट लोड: फंड से तय वक्त से पहले बाहर निकलने का चार्ज.

कुछ फंड हाउस कुछ शर्तों के साथ एग्जिट लोड नहीं लेते.