Ola, Uber से ऑटो बुक करने पर क्या लगता रहेगा GST? उबर इंडिया की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया ये जवाब
ओला, उबर और अन्य माध्यमों से ऑटो रिक्शा बुकिंग पर GST लगाने के मामले पर बुधवार को सुनवाई हुई है, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने GST लगाने की अधिसूचना को ही प्रभावी रहने दिया है.
Ola, Uber जैसे ऐप-बेस्ड कैब एग्रीगेटर्स के जरिए ऑटो रिक्शा बुक करने पर जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स) लगाने के खिलाफ याचिका का कोई प्रभाव नहीं हुआ है. दिल्ली हाईकोर्ट ने जीएसटी लगाने का आदेश लागू करने वाली अधिसूचना को बरकरार रखा है. ओला, उबर और अन्य माध्यमों से ऑटो रिक्शा बुकिंग पर GST लगाने के मामले पर बुधवार को सुनवाई हुई है, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने GST लगाने की अधिसूचना को ही प्रभावी रहने दिया है.
क्या रहा कोर्ट का रुख?
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र की अधिसूचना में भेदभाव पूर्ण नहीं है और केंद्र सरकार के आदेश से किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है. जस्टिस मनमोहन और मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने माना कि ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के वर्गीकरण को कानून द्वारा मान्यता दी गई थी, जो कि विचाराधीन सूचनाओं के कारण होने वाले भेदभाव को रोकता है. आदेश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं, सेवा प्रदाताओं के एक वर्ग के रूप में वर्गीकरण अलग अधिनियम के प्रावधानों में मान्यता प्राप्त है। वर्गीकरण का उद्देश्य प्राप्त करने की मांग के साथ तर्कसंगत संबंध है.
तर्क के अनुसार, इन सूचनाओं को प्राप्त करने के बाद, यदि कोई ऑटो-चालक ऐप-आधारित एग्रीगेटर के साथ पंजीकृत होता है और ऐसे प्लेटफार्मों का उपयोग करने वाले ग्राहकों को यात्री परिवहन सेवाएं प्रदान करता है, तो प्राप्त किराए पर 5 प्रतिशत या 12 प्रतिशत जीएसटी लागू होगा.
Uber India ने दी थी चुनौती
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से नवंबर 2021 में जारी अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी. उबर इंडिया ने ये याचिका दाखिल की थी. उबर ने याचिका में कहा था कि सरकार ऑफ़लाइन मोड के माध्यम से ऑटो की सवारी पर तो ऐसा कोई टैक्स लगाने की योजना नहीं बना रही है, ऐसे में ऑनलाइन ऑटो बुकिंग पर जीएसटी का नियम क्यों लगाया जा रहा है? कंपनी ने याचिका में कहा था कि केंद्र सरकार की अधिसूचनाएं संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं. हालांकि, आज दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया.
यह तर्क दिया गया था कि ऑटो चालकों की ओर से मोबाइल प्लेटफॉर्म के जरिए दी जाने वाली यात्री परिवहन सेवाओं और ऑटो चालकों की ओर से ऑफलाइन दी जाने वाली यात्री परिवहन सेवाओं के बीच टैक्स ट्रीटमेंट में कोई अंतर नहीं हो सकता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार के निर्देश उचित वर्गीकरण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं.
(IANS से इनपुट के साथ)
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