कम हो सकती है आपके लोन की EMI, ब्याज दरों में कटौती कर सकता है RBI
घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में नरमी तथा देश में महंगाई दर के आरबीआई के मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे रहने के साथ ऐसी संभावना है कि केंद्रीय बैंक नीतिगत दर में और कटौती कर सकता है.
भारतीय रिजर्व बैंक अगले महीने जून में द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा करने जा रहा है. आरबीआई इस समीक्षा में मुख्य नीतिगत दर रेपो में एक और कटौती कर सकता है. जानकार बताते हैं कि मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे के बढ़ते दबाव के कारण शीर्ष बैंक आगे कभी ब्याज दरों में कटौती नहीं कर पाएगा. इसलिए रेपो रेट में कटौती करने का उसके पास बस एक यही मौका है. हालांकि फरवरी में आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की थी.
इस समय आरबीआई की रेपो रेट 6 प्रतिशत वार्षिक है. इस पर वह बैंकों को एक दिन के लिए नकद धन उधार देता है.
वैश्विक मौद्रिक नीति कार्रवाई तथा उसका आर्थिक प्रभाव के बारे में लंदन की आईएचएस मार्किट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आरबीआई 2020 की शुरूआत से मध्य के बीच मौद्रिक नीति को कड़ा कर सकता है.
जून के बाद नहीं होगी कटौती
आईएचएस की रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में नरमी तथा देश में महंगाई दर के आरबीआई के मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे रहने के साथ ऐसी संभावना है कि केंद्रीय बैंक नीतिगत दर में और कटौती कर सकता है. जून के बाद मुद्रास्फीति दबाव तथा राजकोषीय घाटा बढ़ने की आशंका को देखते हुए नीतिगत दर में और कटौती की गुंजाइश सीमित होगी. अनुमान है कि जून के बाद 2019 में नीतिगत दर में कटौती नहीं होगी जबकि 2020 की शुरूआत से मध्य के बीच मौद्रिक नीति को कड़ा किया जा सकता है.
चुनावों के दौरान वृद्धि को गति
रिपोर्ट के अनुसार 2019 की पहली तिमाही में मौद्रिक नीति में नरमी के साथ कर्ज नियमों में ढील तथा चुनावों के दौरान खर्च बढ़ने से 2019-20 की पहली छमाही में वृद्धि को कुछ गति मिलेगी.
और महंगा हो सकता है तेल
आईएचएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले महीनों में खासकर मॉनसून के सामान्य से कमजोर रहने के अनुमान को देखते हुए खाद्य पदार्थ तथा ईंधन के दाम में तेजी आने की आशंका है. इससे सकल महंगाई दर (हेडलाइन मुद्रास्फीति) 5 प्रतिशत से ऊपर निकल सकती है. 2019 में इसके औसतन 4.2 प्रतिशत तथा 2020 में 5.3 प्रतिशत रहने की संभावना है.
आम आदमी पर क्या होगा असर?
रेपो रेट घटाने का मतलब है कि अब बैंक जब भी आरबीआई से फंड लेंगे, उन्हें नई दर पर फंड मिलेगा. सस्ती दर पर बैंकों को मिलने वाले फंड का फायदा बैंक अपने उपभोक्ता को भी देंगे. यह राहत आपके साथ सस्ते कर्ज और कम हुई ईएमआई के तौर पर बांटा जाता है. इसी वजह से जब भी रेपो रेट घटता है तो आपके लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाता है. साथ ही जो कर्ज फ्लोटिंग हैं उनकी ईएमआई भी घट जाती है.