धनतेरस और दिवाली के लिए सोने की खरीदारी जोरों पर है. इस मौके पर किसी भी तरह के निवेश को वैसे भी शुभ माना जाता है, हालांकि इस दौरान सोना सबसे ज्यादा खरीदी जाने वाली चीज है. बीते वक्त में सोने के दामों में उतार-चढ़ाव रहा है, ऐसे में अगर सोना खरीदने की सोच रहे हैं तो आपके पास इसके दूसरे निवेश के ऑप्शन भी हैं. यानी आप सोने में कई तरीकों से निवेश कर सकते हैं और इनपर अलग-अलग टैक्स के नियम भी हैं, आइए विस्तार में जानते हैं. 

गोल्ड में निवेश के अलग-अलग ऑप्शन

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1. Digital Gold: आप डिजिटल गोल्ड में निवेश कर सकते हैं. बहुत से ऐप्स और बैंक भी आपको डिजिटल गोल्ड बेचते हैं, आप ऑनलाइन 1 रुपये से ये निवेश शुरू कर सकते हैं. आपको यहां बस ऑनलाइन पैसा लगाना होता है, स्टोरेज की फिक्र नहीं होती है.

2. Physical Gold: गोल्ड में सबसे ज्यादा फिजिकल गोल्ड ही खरीदा जाता है और ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट है. आप ज्वैलरी, कॉइन या गोल्ड बार खरीद सकते हैं. यहां आपको स्टोरेज और मेकिंग चार्जेज़, जीएसटी वगैरह देखना होगा.

3. Paper Gold: आप इसके जरिए गोल्ड में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड में, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में, या गोल्ड ईटीएफ या गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश करते हैं.

अलग-अलग गोल्ड पर क्या हैं टैक्स के नियम?

1. Tax on Digital Gold: अगर आप 36 महीने से कम अवधि के लिए डिजिटल गोल्ड में निवेश रखते हैं तो इसपर सीधा टैक्स नहीं लगता. अगर इसके ऊपर रखते हैं तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है, यानी आपको रिटर्न पर 20 फीसदी टैक्स इसके साथ सरचार्ज और 4 फीसदी सेस देना होता है.

2. Tax on Digital Gold: यहां भी आपके ऊपर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) का नियम लगता है. 36 महीने से कम गोल्ड रखकर बेचा तो इसके रिटर्न को आपकी इनकम में जोड़ा जाएगा और कुल टैक्स लायबिलिटी के हिसाब से जो टैक्स रेट आएगा, उस हिसाब से टैक्स भरना होगा.

लेकिन अगर आप इस अवधि से ज्यादा सोना रखकर बेचते हैं तो इसपर आपको सीधे 20 फीसदी टैक्स के साथ सरचार्ज और 4 फीसदी सेस देना होता है. फिजिकल गोल्ड खरीदते टाइम ही आपको जीएसटी भी चुकाना होता है.

3. Tax on Paper Gold: म्यूचुअल फंड और गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स के नियम फिजिकल गोल्ड जैसे ही हैं, लेकिन सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड पर ये नियम अलग हैं. 

गोल्ड बॉन्ड पर आपको ब्याज मिलता रहता है, जो कि आपके Income from Other Sources में आता है, जिसपर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है. बॉन्ड में निवेश करने के आठ सालों बाद आपको जो भी रिटर्न मिलता है, वो टैक्स फ्री होता है. प्रीमैच्योर एग्जिट करते हैं तो रिटर्न पर अलग-अलग टैक्स रेट लगता है.

SGB में 5 सालों का लॉक-इन पीरियड होता है, अगर आप इन 5 सालों के बाद और मैच्योरिटी के पहले इसे बेचते हैं तो इसपर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा.