यंग इंडिया नौकरी में आरक्षण पर उलझा है, और उसकी नौकरी मशीन हथिया रही हैं
विलिस टावर्स वाटसन के एक सर्वे के मुताबिक भारतीय फैक्टरियों में अगले तीन साल के दौरान आटोमेशन दोगुना हो जाएगा.
भारत के सबसे बड़े कार निर्माता के प्लांट में हर चार कर्मचारियों पर एक रोबोट तैनात है. गुजरात की एक कपड़ा मिल में जल्द ही कुल कर्मचारियों के मुकाबले मशीनों की संख्या अधिक हो जाएगी. विलिस टावर्स वाटसन के एक सर्वे के मुताबिक भारतीय फैक्टरियों में अगले तीन साल के दौरान आटोमेशन दोगुना हो जाएगा. अगले तीन वर्षों के दौरान भारत में कुल कार्य में रेकन मशीनों की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाएगी. यानी बड़ी संख्या में इंसानों की नौकरी मशीनों के हिस्से में चली जाएंगी.
सर्वे के मुताबिक भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनियों के मुकाबले अधिक तेजी से मशीनों को अपना रही हैं. लेकिन जापान और जर्मनी फूड चेन में आटोमेशन को तेजी से अपना रहे हैं, जबकि भारत में कारखानों में मोटिवेशन बढ़ रहा है. उनमें इंसानों को काम पर लगाने की इच्छा नहीं है. भारत की अधिकांश आबादी युवा है और उसे रोजगार की जरूरत है. मैककिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट के मुताबिक अगले दशक के दौरान 13.8 करोड़ लोग रोजगार के लिए तैयार हो जाएंगे, इस तरह वर्कफोर्स में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.
रोजगार की जरूरत?
भारत में 15 से 24 साल के युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है. भारतीय जैसी नौकरी चाहते हैं, वैसी नौकरी पाने में उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ये युवा होटल में या पार्सल डिलीवरी का काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कारखानों में नहीं. इसकी एक वजह कारखानों में काम के मुश्किल हालात भी हैं. भारत में धागा और कपड़ा बनाने वाले उद्योग बड़ी संख्या में रोजगार देते हैं, लेकिन अब आटोमेशन की चुनौती है.
तेजी से आटोमेशन के कारण कुछ नई चुनौतियां भी आई हैं. नई मशीन लगाने की लागत अधिक है, जबकि लेबर की कॉस्ट तुलनात्मक रूप से कम है. आटोमेशन को अपनाने वाली कंपनियां कई साल तक अपनी लागत तक नहीं निकाल पाती हैं. दूसरी ओर मजदूरों को न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता. सर्वे के मुताबिक इसकी एक वजह यह है कि भारतीय लेबर की कार्यकुशलता काफी कम है.
इस समय भारत में लेबर फोर्स मुख्य रूप से खेती और सेवा क्षेत्र में काम कर रहा है. भारत के लेबर फोर्स का सिर्फ 18.5 प्रतिशत ही स्किल्ड है. राजनीतिक दल चुनावों में रोजगार के बड़े बड़े वादे करते हैं, हालांकि ये वादे खोखले ही साबित हुए हैं. जिस स्पीड से आटोमेशन बढ़ रहा है, उसे देखते हुए इन वादों को पुरा करना और भी कठिन हो जाएगा.
(एजेंसी इनपुट के साथ)