Women Reservation bill: संसद के चल रहे विशेष सत्र में और नई संसद भवन के औपचारिक तौर पर "भारत का संसद" घोषित किए जाने के साथ ही एक और ऐतिहासिक कदम उठाया गया. मंगलवार को नई संसद में जो पहला बिल पेश किया गया, वो था- महिला आरक्षण बिल. सरकार ने लोकसभा में The Constitution (One Hundred and Twenty-Eighth Amendment) Bill, 2023 यानी नारी शक्ति वंदन अधिनियम पेश किया. संसद में महिला आरक्षण पर सालों से कानून बनने का इंतजार कर रहे इस बिल को फिर से संसद का चेहरा देखने का मौका मिला है. आज लोकसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर चर्चा होगी और पास होने के लिए बढ़ाया जाएगा. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल The Advocates (Amendment) Bill, 2023 पेश करेंगे.

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सरकार ने संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान करने से संबंधित ऐतिहासिक ‘नारीशक्ति वंदन विधेयक’ को मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया. विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने विपक्ष के शोर-शराबे के बीच ‘संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक, 2023’ पेश किया. इस विधेयक को पूरक सूची के माध्यम से लिस्ट किया गया था.

महिला आरक्षण बिल के कानून बनने पर क्या होगा?

मेघवाल ने बताया कि इसके कानून बन जाने के बाद 543 सदस्यों वाली लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या मौजूदा 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी. उन्होंने कहा कि इसके पारित होने के बाद विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित हो जाएंगी. विधेयक में फिलहाल 15 साल के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है और संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा. केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि महिलाओं की आरक्षित सीट में भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण होगा.

बिल के इतिहास पर क्या बोली सरकार?

मेघवाल ने 2010 में महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पारित होने के बाद उसे लोकसभा से पारित न कराने को लेकर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की मंशा पर संदेह व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि राज्यसभा में पारित होने के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पारित नहीं कराया जा सका, यह तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की नाकामी को दर्शाता है. मेघवाल ने कहा, ‘‘राज्यसभा में 2010 में यह विधेयक पारित हुआ था और इसे लोकसभा को भेज दिया गया था. उसके बाद यह विधेयक निम्न सदन की ‘प्रोपर्टी’ हो गया, लेकिन इसे पेश नहीं किया जा सका. पंद्रहवीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही संबंधित विधेयक निष्प्रभावी हो गया।.’

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