खान मंत्रालय ने मंगलवार को भारत के जियोलॉजिकल सर्वे (GSI) को इंटली के नेशनल रिसर्च काउंसिल के साथ एमओयू साइन करने की इजाजत दे दी है. इस पार्टनरशिप से भारत को भूस्खलन के बारे में पहले से पता लगाने में मदद मिलेगा और समय रहते जरूरी कदम उठाए जा सकेंगे. इटली का भू-हाइड्रोलॉजिकल प्रोटेक्शन अनुसंधान संस्थान (CNR-IRPI) एक प्रमुख संस्था है, जो क्षेत्रीय LEWS मॉडल विकसित करने में अग्रणी है. 

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जीएसआई ने कोलकाता में नेशनल लैंडस्लाइड फॉरकास्टिंग फैसिलिटी बनाई है. यहां पर लैंडस्लाइड अर्ली वॉर्निंग सिस्टम डेवलप किया जाएगा और ऑपरेट किया जाएगा. यहीं से देश भर के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लैंडस्लाइड से जुड़ी वॉर्निंग हासिल की जाएंगी और समय रहते ही रिस्क को कम करने के लिए वॉर्निंग के हिसाब से जरूरी कदम उठाए जाएंगे.

NLFC का टारगेट है कि समय पर भूस्खलन की भविष्यवाणी संबंधी जानकारी को संबंधित अधिकारियों और समुदाय तक पहुंचाया जा सके. इससे फायदा ये होगा कि लोग तैयार रहेंगे और भूस्खलन के जोखिम को कम किया जा सकेगा. मौजूदा वक्त में, NLFC पश्चिम बंगाल के कालिमपोंग और दार्जिलिंग जिलों और तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में रोजाना भूस्खनल की भविष्यवाणी रिपोर्ट देता है. इसके साथ ही, 13 जिलों में रिपोर्ट के आधार पर जमीन पर परीक्षण भी जारी है.

इस सहयोग से GSI के भूस्खलन के डेटा, संवेदनशीलता और भविष्यवाणी मानचित्रों को पीएम गति शक्ति के साथ जोड़ा जाएगा. इससे पहाड़ी क्षेत्रों में जोखिम को कम किया जा सकेगा. LEWS एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करेगा, जो पहाड़ी इलाकों में जीवन की सुरक्षा और तबाही को रोकने में मदद करेगा. साथ ही यह सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण में योगदान करेगा. भविष्य में, अधिक जिलों में बेहतर सटीकता के साथ इस भविष्यवाणी प्रणाली को विस्तारित करने की योजना है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भूस्खलन का खतरा अधिक है.