Supertech twin towers demolition: नोएडा के सेक्टर 93ए में कल दोपहर सुपरटेक ट्विटन टावर को गिराया जाएगा. इन दो टावर का नाम सियान और एपेक्स है. यह भारत की सबसे ऊंची बिल्डिंग में एक है. बिल्डिंग गिराने की तैयारी जोर-शोर से जारी है. डायनामाइट बिछाने का काम पूरा हो चुका है. 7.5 लाख स्क्वॉयर फीट के बिल्ड-अप एरिया में फैले इस ट्विन टावर की निर्माण लागत करीब 70 करोड़ रुपए है. इसे तैयार करने में 933 रुपए प्रति स्क्वॉयर फीट का खर्चा आया था. अब इस बिल्डिंग को गिराने की लागत 267 रुपए प्रति स्क्वॉयर फीट है. यह कॉस्ट करीब 20 करोड़ रुपए है. 

103 मीटर ऊंचा है टावर

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ट्विन टावर में एक 103 मीटर ऊंचा है और दूसरा टावर 97 मीटर ऊंचा है. इन दो टावर को गिराने के लिए सोसायटी में रहने वाले लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी. पहले यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा. उसके बाद यह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. दोनों अदालत ने इस टावर को गिराने का आदेश दिया. भारत के रियल एस्टेट इतिहास में यह मामला दर्ज किया जाएगा.

55 हजार टन मलबा जमा होगा

यह घटना इतिहास में इसलिए दर्ज होगी, क्योंकि एक बहुत बड़े बिल्डर के खिलाफ सोसायटी के लोगों ने लड़ाई शुरू की और 11 साल बाद उनकी जीत भी हुई. जानकारी के लिए बता दें कि इस टावर को गिराने में जो 20 करोड़ की लागत आएगी उसमें 5 करोड़ सुपरटेक की तरफ से दिया जाएगा. इसका मलबा 55 हजार टन के करीब होगा जिसमें 4000 टन स्टील होगा. इसे बेचकर बाकी का फंड हासिल किया जाएगा.

सुपरटेक को 180 करोड़ सूद समेत वापस करने होंगे

एपेक्स टावर 32 फ्लोर का और सियान टावर 29 फ्लोर का है. इन दोनों टावर में 915 फ्लैट हैं. इनमें से 633 फ्लैट बुक हो चुके हैं. कंपनी ने इन फ्लैट बायर्स से 180 करोड़ की वसूली की है. अब सुपरटेक को 12 फीसदी की दर से इन बायर्स को पैसे लौटाने होंगे. रियल एस्टेट के जानकारों का कहना है कि इस टावर में 3BHK फ्लैट की कीमत 1.15 करोड़ के करीब थी. ऐसे में सुपरटेक को इस प्रोजेक्ट से 1200 करोड़ आने की उम्मीद थी. हालांकि, निर्माण लागत केवल 70 करोड़ की थी.

क्यों गिराया जा रहा है यह टावर?

दरअसल यह मामला पर्यावरण से जुड़ा है. एमराल्ड सोसायटी में जिस जगह पर इस टावर का निर्माण किया गया है, वह पहले ग्रीन जोन था. उस सोसायटी में घर खरीदने वालों को भी यही बताया गया कि यह ग्रीन जोन है. इस सोसायटी में 660 परिवार रहते हैं. इन्हें धोखा देकर टावर का निर्माण काम शुरू किया गया. पहली बात कि इसका निर्माण धोखे से किया गया. दूसरी बात तमाम नियमों को ताख पर रख दिया गया.

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला दर्ज किया गया था

टावर निर्माण के कारण सोसायटी में रहने वाले अन्य परिवारों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. 2009 में सोसायटी के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर बिल्डर के खिलाफ लड़ाई करने की ठानी और 2010 में रेजिडेंट वेलफेयर सोसायटी की मदद से इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला दर्ज किया गया. 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टावर को गिराने का आदेश दिया. बाद में सुपरटेक ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. यहां भी आमलोगों की जीत हुई और सुप्रीम कोर्ट ने भी टावर को गिराने का निर्देश जारी किया.