बिल्डर पजेशन में आनाकानी करे और फ्लैट की रकम न लौटाए तो क्या करें ग्राहक? यह है कारगर तरीका
नोएडा-NCR समेत पूरे देश के लाखों घर खरीदार नए आशियाने की आस लगाए बैठे हैं. उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई घर खरीदने में लगा दी है. मकान या फ्लैट का पजेशन तो मिला नहीं, उस पर EMI का बोझ अलग. जिस घर में रह रहे हैं उसका किराया अलग भरते हैं. ऐसे में घर खरीदार क्या करें?
नोएडा-NCR समेत पूरे देश के लाखों घर खरीदार नए आशियाने की आस लगाए बैठे हैं. उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई घर खरीदने में लगा दी है. मकान या फ्लैट का पजेशन तो मिला नहीं, उस पर EMI का बोझ अलग. जिस घर में रह रहे हैं उसका किराया अलग भरते हैं. ऐसे में घर खरीदार क्या करें? देश के सबसे बड़े कंज्यूमर फोरम NCDRC के 1 फैसले से घर खरीदारों को राहत मिलते दिख रही है. NCDRC ने कहा है कि बिल्डर अगर घर का पजेशन देने में 1 साल से अधिक की देर करता है तो घर खरीदार उससे पूरी रकम ब्याज समेत वापस मांग सकते हैं. लेकिन क्या रिफंड मिलने का रास्ता इतना आसान है? 'जी बिजनेस' ने इसकी गहराई से पड़ताल की, जिससे ग्राहक कानून का सहारा लेकर अपनी रकम वापस पा सकते हैं. पेश है रिपोर्ट
क्या है मामला
दिल्ली निवासी शलभ निगम ने गुरुग्राम में 2012 में 1 करोड़ रुपए कीमत का फ्लैट बुक कराया था. उन्होंने 90 लाख रुपए बिल्डर को अदा भी कर दिए थे. उन्हें समझौते के तहत 36 माह में फ्लैट का पजेशन मिलना था. इसमें अलॉटमेंट तिथि से 6 माह की अतिरिक्त मोहलत शामिल थी. लेकिन बिल्डर समय पर काम नहीं पूरा कर पाए तो शलभ ने आयोग का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया. अब बिल्डर को उन्हें यह रकम तय समय में लौटानी होगी, जैसा NCDRC ने अपने आदेश में कहा है.
कैसे मिलेगा रिफंड
रेरा कानून 1 मई 2017 से लागू हुआ. विशेषज्ञों के मुताबिक NCDRC का फैसला उन ग्राहकों के लिए है, जिन्होंने आयोग में केस दाखिल किया है. रेरा एक्सपर्ट रमेश प्रभु ने बताया कि आयोग ने जो फैसला दिया है उसके मुताबिक बिल्डर को निश्चित अवधि में ग्राहक का पैसा लौटाना होगा. ऐसे जो भी फैसले आते हैं उनमें 30 दिन से 90 दिन तक का समय मिलता है. अगर बिल्डर रकम नहीं लौटाता है तो कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में सेक्शन 25 के तहत बिल्डर की प्रॉपर्टी का ऑक्शन कर उस रकम की रिकवरी की जाती है. इसमें बिल्डर का बैंक अकाउंट, प्रॉपर्टी अटैच की जाती है.
आपराधिक केस भी
रमेश प्रभु के मुताबिक अगर इससे भी रिकवरी न हो तो सेक्शन 27 के तहत बिल्डर पर क्रिमिनल केस होता है. इसमें बिल्डर को अरेस्ट करने का भी प्रावधान है. NCRDC ही इस मामले को टेकअप करता है. अब तक ऐसे जो केस क्रिमिनल फाइलिंग में गए हैं और जब डेवलपर या बिल्डर को गिरफ्तार करने की बात उठी है तो उन्होंने रकम का इंतजाम कर ग्राहक को लौटाया है.
क्या होता है डिले प्रोजेक्ट
ट्रैक टू रियल्टी के सीईओ रवि सिन्हा के मुताबिक डिले प्रोजेक्ट की कोई सही परिभाषा नहीं है. दरअसल बिल्डर आधे-अधूरे प्रोजेक्ट में ही ओसी के लिए अप्लाई कर देते हैं. इस आधार पर माना यह जाता है कि जिस दिन ओसी के लिए अप्लाई किया उस दिन प्रोजेक्ट पूरा हो गया. लेकिन वास्तविकता में वह प्रोजेक्ट पूरा होता नहीं है. ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं जो 2002 के आसपास लॉन्च हुए लेकिन अब तक पूरे नहीं हुए. जब रेरा में केस गया तो उन्हें 2018 से 2022 तक प्रोजेक्ट कम्प्लीशन की डेट मिली. डिले प्रोजेक्ट की परिभाषा तभी तय हो पाएगी जब कंस्ट्रक्शन की लाइफ साइकल डिफाइंड हो.