Pregnant women is dying every 5 minutes in India: दुनिया भर में हर साल 45 लाख माताओं और बच्चों की मौत हो रही है. इसमें पहले नंबर पर भारत आया है. यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में डिलीवरी की वजह से हर 7 सेकेंड में एक मौत हो जाती है. संयुक्त राष्ट्र की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 45 लाख लोगों में औसतन 2 लाख 90 हज़ार महिलाएं होती हैं. 19 लाख बच्चे अजन्मे होते हैं या मृत पैदा होते हैं. 23 लाख बच्चों की मौत जन्म के पहले महीने में हो जाती हैं. इन कुल मौतों में से 17% भारत में हो रही हैं जो सबसे ज्यादा है. 

भारत के आंकड़े हैं डरावने 

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भारत में 7 लाख 88 हज़ार ऐसी मौतें हुई जो टाली जा सकती थी. जिसमें से 4 लाख 68 हजार बच्चे जन्म के एक महीने तक ही जी पाए. 2 लाख 97 हज़ार बच्चे मृत पैदा हुए. 24 हज़ार माताओं की जान डिलीवरी की वजह से चली गई.

मौतों को कम करने के मामले में सुधार नहीं

दुनिया भर में जन्म के दौरान यानी डिलीवरी के वक्त या उसके फौरन बाद माओं और बच्चों की मौतों में पहला नंबर भारत का है. यूनाइटेड नेशन्स की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2023 के बीच पिछले 8 वर्षों में इन मौतों को कम करने के मामले में खास सुधार नहीं आ सका है. 

डिलीवरी के दौरान ज्यादा हो रही है मौत

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया के 10 देश ऐसे हैं जो विश्व भर में होने वाली कुल मौतों में से 60% मौतों के लिए जिम्मेदार हैं. उससे भी चिंता की बात ये है कि भारत में सबसे ज्यादा माओं और बच्चों की मौत डिलीवरी के दौरान या बच्चों की उम्र 5 साल का होने से पहले हो जाती है.

भारत के बाद दूसरे नंबर पर नाइजीरिया 

उससे भी खराब बात ये है कि भारत के बाद दूसरे नंबर पर अफ्रीकी देश नाइजीरिया है. अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल बेहद खराब है जबकि भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए लोग विदेशों से भी आते हैं. तीसरे नंबर पर पाकिस्तान है. चौथे नंबर पर अफ्रीकी देश कांगो है. पांचवे नंबर पर इथोपिया है.  ऐसे में भारत का इस टेबल में पहले नंबर पर होना बड़े सवाल खड़े करना है. 

अस्पताल भी है बड़ी वजह

भारत में गरीबी और कुपोषण की वजह से वो लोग जो प्राइवेट अस्पताल का खर्च नहीं उठा पाते, वो मारे जा रहे हैं. कई अस्पताल या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं पहुंच पाते. कई ऐसे सेंटर में पहुंचते हैं जहां पूरे उपकरण या स्टाफ ही नहीं है. और जो बड़े सरकारी अस्पतालों तक पहुंच रहे हैं उनमें से कई अपनी बारी की प्रतीक्षा में इलाज से दूर ही रह जाते हैं. हालांकि पिछले सालों के मुकाबले भारत में इन सभी हालातों में काफी सुधार आया है और मौतें पहले से कम हो सकी हैं.

इन देशों में है सुधार की गुंजाईश

ऐसे देश जहां सुधार की गुंजाईश बहुत ज्यादा है उसमें पहले नंबर पर कांगो आता है फिर अफगानिस्तान, सूडान, यमन, सोमालिया, चाड, म्यांमार, दक्षिण सूडान, सेंट्रल अफ्रीका और सीरिया आते हैं. इन देशों को Fragile देशों की कैटेगरी में रखा गया है. दुनिया के एक तिहाई से भी कम देशों के पास पर्याप्त NEW BORN CARE UNIT यानी कि NICU हैं. कई अफ्रीकी देशों में तो 24 घंटे अस्पताल चलाने के लिए बिजली पानी और डॉक्टरों का भी संकट है. दुनिया की 40 प्रतिशत महिलाएं शादी, सेक्स या बच्चा पैदा करने में खुद फैसला नहीं लेती है.

2030 तक सभी देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य

  • 1 लाख में से 70 से अधिक महिलाओं की जान मां बनने की वजह से ना जाए. 
  • जन्म के समय और एक महीने के अंतर में  हज़ार में से 12 से कम मौतें हों.
  • 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों का आंकड़ा प्रति एक हज़ार में 25 से कम रहे.

इसके लिए ये करना जरूरी है

90% महिलाएं डिलीवरी से पहले कम से कम 4 बार मेडिकल चेकअप करवा सकें. ऐसा अफ्रीकी देशों में केवल 54% और दक्षिण एशिया में केवल 58% महिलाओं को ही नसीब है. केवल अमेरिका और यूरोप के कुछ देश ही हैं दो 90% के टारगेट पर खरे उतरते हैं.

  • 90% ट्रेंड डॉक्टर या मिडवाइफ करें.
  • 80% महिलाओं और बच्चों को जन्म के दो दिन के अंदर मेडिकल सुविधा मिल सके.
  • हर देश के 80% ज़िलों में प्रसव यानी डिलीवरी की मेडिकल सुविधाएं मौजूद हों.

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