बिना बहुमत के विपक्ष क्यों लाई अविश्वास प्रस्ताव? क्या हैं नियम जिससे गिर जाती है सरकार, नेहरू को भी करना पड़ा था सामना
No Confidence Motion History: केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बुधवार को सदन में अविश्वास प्रस्ताव पास किया गया. आइए जानते हैं इससे जुड़ी सभी जरूरी बातें.
No Confidence Motion History: केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार के खिलाफ कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार कर लिया गया है. लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला अब सभी राजनीतिक दलों के फ्लोर लीडर्स के साथ बैठक कर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की तारीख और समय तय करेंगे. पिछले नौ साल में यह दूसरा अवसर होगा जब मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी. इससे पहले, जुलाई, 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था. इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने मत दिया था. हालांकि, ऐसे में सवाल उठता है कि जब सदन में मोदी सरकार के पूर्ण बहुमत प्राप्त है, तो फिर विपक्ष ये अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आई है. आइए इसके लिए जानते हैं अविश्वास प्रस्ताव से जुड़े सभी जरूरी नियम.
क्या है अविश्वास प्रस्ताव
अविश्वास प्रस्ताव या नो कॉन्फिडेंस मोशन कई कारणों से सदन में लाया जा सकता है. जब किसी विपक्षी दल को लगता है कि लोकसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, तो वो अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है. अविश्वास प्रस्ताव को लेकर होने वाली वोटिंग में राज्यसभा सांसद हिस्सा नहीं लेते हैं. एक बार अविश्वास प्रस्ताव आने पर सरकार को लोकसभा में अपना बुहमत साबित करना होता है.
मोदी सरकार को इससे पहले भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. हालांकि, इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है क्योंकि संख्याबल स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में है और निचले सदन में विपक्षी समूह के 150 से कम सदस्य हैं. लेकिन उनकी दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए धारणा से जुड़ी लड़ाई में सरकार को मात देने में सफल रहेंगे.
किस कानून के तहत आता है अविश्वास प्रस्ताव
संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख अनुच्छेद 75 में किया गया है. इसके मुताबिक, अगर सत्तापक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है. सदस्य नियम 184 के तहत लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हैं और सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है.
क्या है अविश्वास प्रस्ताव का नियम
अविश्वास प्रस्ताव को सदन के 50 सदस्यों का समर्थन मिलना जरूरी है. अगर प्रस्ताव सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो सदन में एक दिन इस पर चर्चा करने के लिए चुन लिया जाता है. इस दिन सरकार को बहुमत भी साबित करना पड़ सकता है. अगर सरकार ये नहीं कर पाती है, तो उसे इस्तीफा देना होता है.
पहली बार कब आया था अविश्वास प्रस्ताव
भारतीय संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव लाने का सिलसिला देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था. अब तक कुल 27 बार सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा चुका है. नेहरू के खिलाफ 1963 में आचार्य कृपलानी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे जबकि विरोध में 347 मत आए थे. इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था.
विपक्ष बिना बहुमत के क्यों लाई अविश्वास प्रस्ताव
विपक्षी गठबंधन 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (INDIA) के घटक दलों की मंगलवार को हुई बैठक में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के बारे में फैसला हुआ था. कांग्रेस ने अपने सदस्यों को व्हिप जारी करके कहा था कि वे बुधवार को सुबह साढ़े दस बजे संसद भवन स्थित पार्टी संसदीय दल के कार्यालय में मौजूद रहें.
लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक मणिकम टैगोर ने कहा, "यह विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' का विचार है. हमारा मानना है कि सरकार के अहंकार को तोड़ने और मणिपुर के मुद्दे पर बोलने को विवश करने के लिए (अविश्वास प्रस्ताव नोटिस को) आखिरी हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाए."
मणिपुर हिस्सा पर चर्चा करने की मांग
कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन INDIA के अन्य घटक दल मानसून सत्र के पहले दिन से ही मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) से संसद में वक्तव्य देने और चर्चा कराए जाने की मांग कर रहे हैं. इस मुद्दे पर हंगामे के कारण संसद के मॉनसून सत्र के पहले चार दिन दोनों सदनों की कार्यवाही बार-बार बाधित हुई.
प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर की घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुए 20 जुलाई को संसद भवन परिसर में कहा था कि यह घटना किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली है और इससे पूरे देश की बेइज्जती हुई है. संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले, मीडिया को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने देशवासियों को विश्वास दिलाया था कि इस मामले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और कानून सख्ती से एक के बाद एक कदम उठाएगा.
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