New Parliament Building Row: देश की नई संसद भवन अब बनकर तैयार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 28 मई, 2023 को इसका उद्घाटन करने वाले हैं. हालांकि इसे लेकर विपक्षी दलों में काफी गहमागहमी बनी हुई है. कांग्रेस समेत 19 प्रमुख विपक्षी दलों ने बुधवार को ऐलान कर दिया कि वे संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह का सामूहिक रूप से बहिष्कार करेंगे. एक संयुक्त बयान में विपक्षी पार्टियों ने कहा कि इस सरकार (केंद्र सरकार) के कार्यकाल में संसद से लोकतंत्र की आत्मा को निकाल दिया गया है और समारोह से राष्ट्रपति को दूर रखकर 'अशोभनीय कृत्य' किया गया है. 

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विपक्षी पार्टियों ने एक संयुक्त बयान में यह आरोप भी लगाया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को उद्घाटन समारोह से दरकिनार करना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) द्वारा संसद के नए भवन का उद्घाटन करने का फैसला लोकतंत्र पर सीधा हमला है. 

इन पार्टियों ने किया बायकॉट

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • तृणमूल कांग्रेस
  • द्रविड मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक)
  • जनता दल (यूनाइटेड)
  • आम आदमी पार्टी
  • राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
  • शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)
  • मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
  • समाजवादी पार्टी
  • राष्ट्रीय जनता दल
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
  • इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग
  • झारखंड मुक्ति मोर्चा
  • नेशनल कांफ्रेंस
  • केरल कांग्रेस (मणि)
  • रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी
  • विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची (वीसीके)
  • मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम (एमडीएमके)
  • राष्ट्रीय लोकदल

विपक्षी पार्टियों ने क्यों किया बायकॉट

विपक्ष के 19 दलों ने एक संयुक्त बयान में कहा, "नए संसद भवन का उद्घाटन एक महत्वपूर्ण अवसर है. हमारे इस विश्वास के बावज़ूद कि सरकार लोकतंत्र को खतरे में डाल रही है और जिस निरंकुश तरीके से नई संसद का निर्माण किया गया था, उससे हमारी अस्वीकृति के बावज़ूद हम अपने मतभेदों को दूर करने और इस अवसर को चिह्नित करने के लिए तैयार थे." 

 

'राष्ट्रपति को किया दरकिनार'

इन दलों ने बयान में आरोप लगाया, "राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नए संसद भवन का उद्घाटन करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल राष्ट्रपति का घोर अपमान है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो इसके अनुरूप प्रतिक्रिया की मांग करता है." उनके मुताबिक, भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि "संघ के लिए एक संसद होगी जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन होंगे जिन्हें क्रमशः राज्यों की परिषद और लोगों की सभा के रूप में जाना जाएगा." 

उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति न केवल भारत में राज्य का प्रमुख होता है, बल्कि संसद का एक अभिन्न अंग भी होता है. राष्ट्रपति संसद सत्र बुलाते हैं, उसे संबोधित करते हैं और सत्रावसान करते हैं. संक्षेप में, राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती है. फिर भी, प्रधानमंत्री ने उनके बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है.'' 

इन विपक्षी दलों ने दावा किया कि यह 'अशोभनीय कृत्य' राष्ट्रपति के उच्च पद का अपमान करता है और संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है. 

विपक्षी पार्टियों ने लगाया ये आरोप

विपक्षी पार्टियों ने कहा, "यह सम्मान के साथ सबको साथ लेकर चलने की उस भावना को कमज़ोर करता है जिसके तहत देश ने अपनी पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति का स्वागत किया था. संसद को लगातार खोखला करने वाले प्रधानमंत्री के लिए अलोकतांत्रिक कृत्य कोई नई बात नहीं है. संसद के विपक्षी सदस्यों को अयोग्य, निलंबित और मौन कर दिया गया है जब उन्होंने भारत के लोगों के मुद्दों को उठाया. सत्ता पक्ष के सांसदों ने संसद की कार्यवाही को बाधित किया है." 

विपक्षी दलों ने आरोप लगाया, "तीन कृषि कानूनों सहित कई विवादास्पद विधेयकों को लगभग बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया और संसदीय समितियों को व्यावहारिक रूप से निष्क्रिय कर दिया गया है. नया संसद भवन सदी में एक बार आने वाली महामारी के दौरान बड़े खर्च पर बनाया गया है. भारत के लोगों या सांसदों से कोई परामर्श नहीं किया गया है, जिनके लिए यह स्पष्ट रूप से बनाया जा रहा है.'' 

उन्होंने कहा, "जब लोकतंत्र की आत्मा को संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता. हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं. हम इस निरंकुश प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे, और अपना संदेश सीधे भारत के लोगों तक ले जाएंगे.''

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