ब्राजील के फुटबॉल टीम के लिए खेलते हैं महात्मा गांधी, परिवार ने अहिंसा के दूत के नाम पर रखा बेटे का नाम
Mahatma Gandhi in Brazil: 24 साल के महात्मा गांधी मातो पीयर्स ब्राजील के मशहूर क्लब अटलेटिको क्लब गायनीज के लिए फुटबॉल खेलते हैं. मातो पीयर्स का परिवार गांधी से काफी ज्यादा प्रभावित था, इसलिए उनका नाम ही राष्ट्रपिता के नाम पर रख दिया.
Mahatma Gandhi in Brazil: आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि ब्राजील में भी एक महात्मा गांधी नाम का फुटबॉलर है. जो काफी फेमस है. इस फुल बॉलर की उम्र 24 साल है. उनके परिवार ने अहिंसा के दूत और भारत के राष्ट्रपिता के नाम पर फुटबॉलर का नाम रखा है. 24 साल के महात्मा गांधी मातो पीयर्स ब्राजील के मशहूर क्लब अटलेटिको क्लब गायनीज के लिए फुटबॉल खेलते हैं. मातो पीयर्स का परिवार गांधी से काफी ज्यादा प्रभावित था, इसलिए उनका नाम ही राष्ट्रपिता के नाम पर रख दिया.
एक परंपरा के अनुसार रखा नाम ब्राजील समेत कई अफ्रीकी देशों में भी लोग मशहूर हस्तियों पर बच्चों का नाम रखते हैं. कई बार तो अपने किसी प्रिय शिक्षक या किसी मशहूर कैरेक्टर के नाम पर भी लोग नाम रखते हैं. ब्राजील के अलग-अलग क्लब से भी कई फुटबॉलर खेलते हैं जिनका नाम चर्चित हस्तियों पर है. पोकेमॉन नाम का भी एक फुटबॉल खिलाड़ी अटलेटिको क्लब गायनीज के लिए ही खेलते हैं. इस क्लब में जॉन लिनन के नाम का भी एक खिलाड़ी है. गांधी के अनोखे किस्से गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सिद्धांतों को दूसरे रूप में आजमाने के लिए गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 1896 में डरबन, प्रिटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबाल क्लबों की स्थापना की और उन्हें पैसिव रेजिस्टर्स सॉकर क्लब्स नाम दिया. गांधी ने अपनी इन फुटबाल टीमों को उन्हीं गुणों और सिद्धांतों से लैस किया, जिसकी बदौलत वह पहले दक्षिण अफ्रीकी में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई और फिर भारत की स्वतंत्रता की जंग में कूदे और सफल भी रहे. गांधी ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया और खुद को एक मध्यस्थ और प्रदर्शनकारी के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया. कई मामलों में अगल थे गांधी गांधी की फुटबाल टीम में वे लोग शामिल थे, जो दक्षिण अफ्रीका में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई में गांधी के साथ थे. ये स्थानीय लोग थे और वहां के गोरे शासकों और गोरी स्थानीय जनता के अत्याचारों से मुक्ति पाना चाहते थे. महात्मा गांधी को 1914 में भारत आना पड़ा. उन्होंने इन क्लबों को बंद नहीं किया. इसकी कमान गांधी ने 1913 के लेबर स्ट्राइक में शामिल अपने पुराने साथी अल्बर्ट क्रिस्टोफर को सौंप दी. क्रिस्टोफर ने 1914 में दक्षिण अफ्रीका की पहली पेशेवर फुटबॉल टीम का गठन किया. इस टीम में मुख्यतया भारतीय मूल के खिलाड़ियों को रखा गया. यह अफ्रीका महाद्वीप का पहला ऐसा संगठित फुटबॉल समूह था, जिसका नेतृत्व वहां के गोरे लोगों के हाथों में नहीं था. गांधी ने फुटबाल के माध्यम से लोगों को अपने सामाजिक आंदोलन से जोड़ा. मैचों के दौरान गांधी और उनके सहयोगी अक्सर संदेश लिखे पैम्पलेट बांटा करते थे.” फुटबॉल से बापू का लगाव कैसे हुआ? महात्मा गांधी 18 साल की उम्र में पोरबंदर छोड़कर कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए थे. यही वह वक्त था जब फुटबॉल का उभार यूरोप में अपने चरम पर था. फुटबॉल एसोसिएशन को वैधानिक दर्जा मिल चुका था और व्यावसायिक क्लब खिलाड़ियों को प्रोफेशनल का दर्जा देने लगे थे. गांधी की भी इस सब पर नज़र थी और वे समझ चुके थे कि जल्द ही इंग्लैंड में फ़ुटबाल क्रिकेट से ज्यादा देखा जाने वाला खेल हो जाएगा. फुटबॉल को राजनीतिक चेतना के तौर पर इस्तेमाल करने का तरीका गांधीजी को दक्षिण अफ्रीका पहुंचने के बाद ही आया. एक बार गांधीजी ट्रेन में पहले दर्जे का टिकट लेने के बाद भी तीसरे दर्जे में सफर करने को कहा गया और विरोध करने पर उन्हें ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया. इसी घटना ने गांधी के महात्मा होने की बुनियाद डाली. गांधी ने ठान लिया कि वे दक्षिण अफ्रीका में वंचित और भेदभाव के शिकार लोगों के लिए संघर्ष करेंगे.