असम के डिब्रूगढ को अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट से जोड़ने वाला ब्रह्मपुत्र नदी पर देश का सबसे लंबा सड़क और रेल पुल बनकर तैयार है. इस ब्रि‍ज के बनने से नॉर्थ ईस्‍ट के हिस्‍से में आवाजाही और आसान हो जाएगी. इसके अलावा सामरिक दृष्‍ट‍ि से सेना की पहुंच भी सुगम हो जाएगी. वैसे तो इस ब्रि‍ज की कई खासि‍यत हैं, ले‍किन इसके अलावा भी एक ऐसी विशेषता है, जो इस ब्र‍िज को बेहद खास बनाती है.

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पूर्वोत्तर भारत के हिस्‍सों में भूकंप का भी खतरा रहता है. लेकिन ये ब्रि‍ज इससे बेअसर रहेगा. रिएक्‍टर स्‍केल पर अगर 7.0 का भूकंप भी आता है तो इस ब्रिज को कोई नुकसान नहीं होगा. ये पुल भारत का पहला पूर्णत: वेल्‍डेट ब्र‍िज है.

ये पुल 4.98 किमी लंबा है. ये डिब्रूगढ़ और धेमाजी को आपस में जोड़ता है. ये करीब 50  लाख लोगों के जीवन को आसान बनाने वाला पुल है. ये ऊपरी असम को अरुणाचल से भी जोड़ता है.

भूकंप का सबसे ज्‍यादा खतरा

इस प्रोजेक्‍ट के निदेशक आरवीआर किशोर का कहना है कि ये ब्रि‍ज भूकंपरोधी जोन में आता है. तकनीकी लिहाज से बात करें तो ये सिसमिक जोन -V में आता है. यहां पर 7 या उससे ज्‍यादा तीव्रता के भूकंप आना बड़ी बात नहीं है. ऐसे में इसे उसी तरह तैयार किया गया है. इसके अलावा इस ब्रिज से 1700 टन का वजन गुजारा जा सकता है. युद्ध जैसे हालात में भारी भरकम टैंक भी इससे निकल सकते हैं.

यह एशिया का दूसरा सबसे लंबा पुल है. इसके ऊपर तीन लेन की सड़क और नीचे रेल लाइन है. खासबात ये है कि यह ब्रह्मपुत्र नदी के जलस्तर से 32 मीटर ऊंचा है. यानी बाढ़ का पानी भी इस पुल को नहीं छू पाएगा. इस पुल से डिब्रूगढ़ से अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाली दूरी 100 किलोमीटर कम हो जाएगी. अभी तक अरुणाचल प्रदेश जाने के लिए डिब्रूगढ़ से गुवाहाटी आना होता है और यहां से अरुणाचल प्रदेश की दूरी 500 किलोमीटर है. यह पुल बोगीबील पुल के नाम से जाना जाता है.

पीएम करेंगे उद्घाटन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 दिसंबर को बोगीबील पुल को राष्ट्र को समर्पित करेंगे. इस पुल को बनाने में डेनमार्क से तकनीक ली गई और जांच का काम जर्मनी ने किया. इसको बनाने में लगभग 6000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. बोगीबील पुल को 1996 में केंद्र सरकार से मंजूरी मिली थी. लेकिन इसका निर्माण कार्य 2002 में शुरू हुआ था.