दीपावली के मौके पर कर्मचारियों को बोनस और उपहार देने के लिए हमेशा से ही गुजरात के डायमंड किंग सावजी ढोलकिया चर्चा में रहते हैं. सूरत के हीरा कारोबारी सावजी ने अपने कर्मचारियों को कार, मकान और गहने जैसे कीमती उपहार हर साल देते हैं. कीमती उपहार बांटने वाले सावजी ढोलकिया का कारोबार 3000 करोड़ से ज्यादा का है. लेकिन, शायद कम ही लोग जानते हैं कि कभी वह सिर्फ 179 रुपए की नौकरी किया करते थे और आज इतने बड़े डायमंड किंग हैं. 

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13 साल की उम्र में घर छोड़कर भागे

सावजी ढोलकिया के इतना बड़ा व्यापार खड़ा करने पीछे एक कहानी है, जिसे उन्होंने खुद सावजी ढोलकिया ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में शेयर किया था. सावजी भाई ढोलकिया का जन्म गुजरात के अमरेली जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. ढोलकिया का मन पढ़ने में नहीं लगता था. 13 वर्ष की उम्र में ही सावजी सूरत भाग गए और एक छोटी से फैक्ट्री में काम करने लगे.

पढ़ाई से लगता था डर

सूरत से पांच-छह महीने में लौटकर जब सावजी वापस अपने घर पहुंचे तो उनके पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए कहा. लेकिन, सावजी को पढ़ाई से बहुत डर लगता था. पिता के समझाने पर भी वह फिर से सूरत चले गए. उन्होंने दो-तीन बार ऐसा ही किया. इसके बाद सावजी ढोलकिया की मां उन्हें बुलाया और समझाया कि सभी के बच्‍चे काम करते हैं, पूजा करते हैं तो वह भी कुछ काम करे और अच्छा आदमी बने.

फिर नौकरी पर निकले सावजी

सावजी ढोलकिया के मुताबिक, उनकी मां उन्हें अक्सर समझातीं थीं. एक दिन उन्होने ठान लिया कि अब अच्छा आदमी बनकर ही लौटना है. ढोलकिया के अनुसार, वह एक दिन स्वामी नारायण संप्रदाय के एक साधु के पास गए. उनका परिवार पिछली कई पी‌ढ़ियों से स्वामी नारायण सम्प्रदाय का अनुयाई है. उनके अनुसार उन्होंने साधु से पूछा कि जीवन खुशहाल बनाने के लिए कुछ उपाए बताएं. साधु ने उन्हें भक्ति के साथ 108 नामों का एक मंत्र बताया और उसे 11 लाख बार जाप करने के लिए कहा. इसके बाद उनकी जिंदगी मानो बदल गई. साधु के इस उपाय को करने के बाद ढोलकिया के अंदर आत्म विश्वास जगा. इसके बाद वह फिर से नौकरी करने सूरत के चले गए.

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ढोलकिया की पहली नौकरी

ढोलकिया के मुताबिक, उन दिनों वह सूरत की एक फैक्ट्री में नौकरी करते थे. जहां उन्हें मात्र 179 रुपये प्रति माह का वेतन मिलता था. 179 रुपए में से 140 रुपए खाने-पीने में खर्च हो जाते थे. इसी फैक्ट्री में उनका दोस्त दिनेश भी काम करता था, जिसकी तनख्वाह 1200 रुपये थी. सावजी को भी ज्यादा पैसों की जरूरत थी. उन्होंने भी अब अपने दोस्त जैसा काम करके ज्यादा पैसे कमाने की सोची. इसके बाद उन्होंने अपने दोस्त के साथ काम सीखना शुरू किया. यह काम हीरा घिसने का था.

10 साल हीरा घीसने का किया काम

सावजी के मुताबिक, उन्होंने करीब 10 साल तक हीरा घिसने का काम किया और इसके बारे में काफी अनुभव हुआ तो अपने घर में कुछ दोस्तों के साथ हीरा घिसने का काम शुरू किया, जो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा. ढोलकिया के मुताबिक, कारोबार आगे बढ़ाना के लिए कंपनी बनाना जरूरी है और उसके बाद उसकी मार्केटिंग भी उतनी ही जरूरी. सावजी कंपनी को रजिस्टर कराने और मार्केटिंग करने मुबई पहुंचे. यहां उन्होंने एक बिजनेस सलाहकार की मदद से कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया और मार्केटिंग का काम शुरू किया.

1991 में एक करोड़ की हुई कंपनी

ढोलकिया की हरि कृष्ण डायमंड नाम की कंपनी का कारोबार 1991 में मात्र एक करोड़ का था तो मार्च 2014 तक 2100 करोड़ तक पहुंचा है और इसके बाद 3000 करोड़ के आंकड़े को पार कर गया. ढोलकिया के अनुसार उनकी कंपनी अभी 50 देशों के ल‌िए ही हीरा सप्लाई करती है. दुनिया के 200 देश अभी बांकी है. हरि कृष्ण डायमंड के दुनिया के सात देशों में खुद के आउटलेट्स हैं. इसके अलावा दुनिया भर के 5000 हजार शोरूम में इनका हीरा उपलब्‍ध है. हाल ही में ढोलकिया ने कर्मचारियों को मंहगे तोहफे दिए हैं, लेकिन कर्मचारियों से काम कराने का उनका नजरिया भी अलग है.

कर्मचारियों से कैसे काम लेते हैं ढोलकिया?

कर्मचारियों से काम लेने के बारे में ढोलकिया बताते हैं कि उनकी कंपनी MBA, BBA या कोई डिप्लोमाधारी को जरूरी वेतन के साथ पांच साल तक ट्रेनिंग देती है. इस दौरान कर्मचारियों को इस स्तर का ज्ञान दिया जाता है कि वह कंपनी चला सके. सावजी ढोलकिया के मुताबिक, उनके पास 35 साल काम करने का अनुभव है. अपने अनुभव को वह हर कर्मचारी को पांच साल में सिखा देते हैं, इससे वह उनसे ज्यादा अच्छा काम कर सके.

कर्मचारियों को लेकर अलग नजरिया

कर्मचारियों को लेकर उनका नजरिया भी अलग है. उनका कहना है कि उनकी काशिश होती है कि कर्मचारी से ऐसे काम लिया जाए, ऐसी सैलरी दी जाए, जिससे वह खुशी के साथ काम करे. उनका मानना है कर्मचारी खुश होने पर काम पर ज्यादा केंद्रित होता है और कंपनी को प्रॉफिट दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत करता है. ढोलकिया के मुताबिक, वह अपने कर्मचारियों वही अनुभव कराते हैं जो उन्होंने अपनी मां से सीखा था. उनकी मां का कहना था कि अच्छा आदमी बनना. इतना ही नहीं सावजी की कोशिश होती है कि वह अपने कर्मचारी के साथ ऐसा व्यवहार करें, जैसा अपने बेटे से करते हैं और शायद यही वजह है कि वो आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं.