महात्मा गांधी जी के 150वें जन्मदिवस से पहले लॉन्च हुआ ये खास नोट, जानिए क्या है इसकी खासियत
दुनिया भर में महात्मा गांधी के प्रशंसकों को पहली बार यूरो सोविनियर भारतीय नोट्स को अपने पास रखने का एक दुर्लभ मौका मिलेगा जो कि गांधी जी के 150वीं वर्षगांठ के उत्सव के मौके पर जारी किए जा रहे हैं.
दुनिया भर में महात्मा गांधी के प्रशंसकों को पहली बार यूरो सोविनियर भारतीय नोट्स को अपने पास रखने का एक दुर्लभ मौका मिलेगा जो कि गांधी जी के 150वीं वर्षगांठ के उत्सव के मौके पर जारी किए जा रहे हैं. सीमित एडीशन जीरो यूरो 12-नोट्स को यूएई आधारित विशेष न्यूमजमाटिक्स कंपनी न्यूमिसबिंग द्वारा सोविनियर सीरीज के तौर पर लॉन्च किया जा रहा है और प्रत्येक डिजाइन में सिर्फ 5000 नोट होंगे. इस श्रृंखला के पहले दो नोट हैं और अभी बाकी नोट क्रमिक रूप से 2 अक्टूबर, 2019 तक लॉन्च होंगे.
मशहूर कलाकार अकबर साहब ने डिजाइन किए हैं ये नोट
दुबई स्थित भारतीय कलाकार अकबर साहब द्वारा इन नोट्स को डिजाइन किया गया, जो कि एकमात्र चित्रकार हैं जिन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पुस्तक, मन की बात का इलेस्ट्रेशन का काम किया है और ये नोट गांधी जी के व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन से जुड़ी रोचक और प्रसिद्ध पर आधारित है. ये नोट, उस महान शख्सियत के प्रति सम्मान हैं जो कि दुनिया भर में कई सफल लोगों के प्रेरणास्त्रोत हैं.
बापू के जीवन की घटनाओं को नोटों से जीवंत करने की कोशिश
इस पहल की पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए, रामकुमार, न्यूमिसबिंग के संस्थापक और प्रेसिडेंट, इंटरनेशनल बैंक नोट सोसाइटी, दुबई चैप्टर ने कहा कि “इस तथ्य के अलावा कि इन स्मारक नोटों का एक बड़ा शेल्फ मूल्य होता है, जो कि इस पहल का प्रमुख कारण है लेकिन उससे भी बड़ा कारण है कि महात्मा गांधी के जीवन की उन घटनाओं का उपयोग करके उनको फिर से जीवंत किया जाए, जो कि सिर्फ इतिहास से बढ़कर जिंदगी के सबक हैं.
भारत सरकार ने भी 1969 में थी ऐसी पहल
भारत सरकार द्वारा एक बार इस तरह की पहली शुरू की गई थी जब सरकार ने 1969 में गांधी जी के 100 वें जन्मदिवस के मौके पर गांधी की तस्वीरों वाले इन स्मारक नोटों को जारी किया गया था. वे नोट्स आम लोगों को सार्वजनिक उपयोग के लिए भी उपलब्ध थे.
रामकुमार के पास हैं ऐसे 45 खास नोट
खुद ऐसे नोटों के कलेक्टर रहे रामकुमार ने भी अपना नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज करवाया है और वे स्मारक बैंक नोटों का अनूठा संग्रह रखने वाले व्यक्ति है जिनके पास 1969 में महात्मा गांधी की शताब्दी के मौके पर जारी किए गए 45 नोट हैं. उनके पास सभी मूल्यवर्ग और सभी उपसर्ग हैं, जिनमें 18 नोट 1 रुपए के, पांच 2 रुपए के, 7 नोट 5 रुपए के, 13 नोट 10 रुपए के और दो नोट 100 रुपए के हैं.
उन्होंने कहा कि “शुरू में, हमने सोचा था कि हम सिर्फ एक स्मारक नोट ही लॉन्च करेंगे लेकिन तब यह महसूस किया कि गांधी का जीवन प्रेरणाओं से भरा है और उन सभी को एक तक सीमित करना संभव नहीं है और न ही उस महान व्यक्ति के लिए सम्मान होगा. इसलिए हमने इसे 12 सीरीज में बदलने का फैसला किया और उसके पहले दो नोट जारी करके सीरीज का उद्घाटन कर रहे हैं, जिनमें महात्मा गांधी के जीवन की दो महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल हैं.
नोटों में यूरो बैंक नोट की सभी सुरक्षा विशेषताएं हैं
इस मौके पर स्टीव, सह-संस्थापक, न्यूमिसबिंग और सैक्रेटरी, इंटरनेशनल बैंक नोट सोसायटी, दुबई चैप्टर ने कहा कि “जीरो यूरो नोट यूरोपीय सेंट्रल बैंक द्वारा प्रमाणित एक सोविनियर बैंकनोट है और उसी सुरक्षा प्रिंटर में मुद्रित किया गया है जिनका उपयोग यूरो बैंक नोटों को प्रिंट करने के लिए किया जाता है. इन नोटों में यूरो बैंक नोट की सभी सुरक्षा विशेषताएं हैं, सिवाय इसके कि वे सभी “0” चिन्हित हैं, और यह सुनिश्चित करने के लिए टेस्ट किए जाते हैं कि वे वैध वित्तीय लेनदेन के रूप में प्रचलित मुद्रा में प्रवेश नहीं कर सकते हैं.”
पहले नोट में क्या है खास
पहले नोट में उन तीन प्रतिज्ञाओं की चर्चा है जो युवा मोहनदास गांधी ने अपनी मां पुतलीबाई को लंदन, इंग्लैंड में कानून की आगे की पढ़ाई के लिए जाने से पहले दी थीं. जब गांधी जी की इच्छा हुई कि वे लंदन में अपनी कानून की पढ़ाई जारी रखें, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि उनकी मां उन्हें भेजने के लिए अनिच्छुक थी क्योंकि उन्हें लगता था कि वे बुरी आदतों में पड़ सकते हैं. एक संत ने सुझाव दिया कि पुतलीबाई को उनसे तीन वचन लेने चाहिए जिनमें शामिल थे कि-पहला, वह शराब नहीं पिएंगे, दूसरा, वह सिर्फ शाकाहारी भोजन ही करेंगे और तीसरा, वह अन्य महिलाओं को मां या बहन के रूप में देखेंगे.
दूसरा नोट दक्षिण अफ्रीका की इस घटना पर है आधारित
दूसरा नोट उस प्रसिद्ध घटना पर आधारित है जब गांधी जी को 1893 में पीटरमारित्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन, दक्षिण अफ्रीका, में ट्रेन से नींचे फेंक दिया गया था जब उन्होंने सिर्फ “गोरों के लिए” आरक्षित डिब्बे से स्थानांतरित होने से इनकार कर दिया था. डरने के बावजूद, वह अपने मुददे को लेकर अड़े रहे और इतिहास कहता है कि यही वह क्षण था जब गांधी ने अपना अहिंसा आंदोलन शुरू किया जो अंततः सही साबित हुआ और भारत अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल रहा, जिसमें इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही.