कश्मीर में 'घात' के बदले होगी 'बात'? मोदी सरकार की हुंकार से कांपे अलगाववादी!
कश्मीर में अलगाववाद की कमर टूटने के बाद अब अलगाववादी नेताओं के हौसले टूटने लगे हैं. पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले अलगाववादी नेता अब बातचीत की मेज पर आना चाहते हैं.
कश्मीर में अलगाववाद की कमर टूटने के बाद अब अलगाववादी नेताओं के हौसले टूटने लगे हैं. पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले अलगाववादी नेता अब बातचीत की मेज पर आना चाहते हैं. जी हां कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पहले दावा किया कि अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस बातचीत करने को तैयार है. इसकी पुष्टि हुर्रियत के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारुख ने भी की. मीरवाइज़ के मुताबिक, अगर बातचीत की कोशिश हुई तो इसके सकारात्मक नतीजे निकलेंगे. और इसी के साथ ही कश्मीर में हुर्रियत से बातचीत को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. सवाल ये है कि क्या वाकई केन्द्र सरकार की सख्ती से हुर्रियत घुटने पर आ चुका है. क्या वाकई हुर्रियत से कोई बातचीत होनी चाहिए. क्या वाकई में घाटी में ऐसा माहौल बन गया है, जिसमें हम बातचीत के लिए एक साथ बैठ सकें.
जो अलगाववादी हिन्दुस्तान में रहकर पाकिस्तान का राग अलापते थे, जो अलगाववादी देश के दुश्मनों की मौत पर मातम मनाते थे, जो अलगाववादी देश के टैक्सपेयर्स के पैसों पर आराम की जिंदगी जीते थे, उन अलगाववादियों पर मोदी सरकार ने सख्ती का ऐसा चाबुक चलाया कि अब वो त्राहिमाम कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के मुताबिक राज्य में बहुत तेजी से सुधार हो रहा है. पत्थरबाजी की घटनाएं थम रही हैं और आतंकियों की भर्ती पर लगाम लग चुकी है. यही नहीं उनके मुताबिक बातचीत से परहेज करने वाला हुर्रियत भी अब बातचीत की कोशिश के लिए पूरी तरह से तैयार है. सत्यपाल मलिक के मुताबिक, पहले हुर्रियत कांफ्रेंस बातचीत करना नहीं चाहती थी, राम विलास पासवान 2016 में उनके दरवाजे पर खड़े थे, लेकिन वे लोग बातचीत के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन आज बातचीत के लिए तैयार हैं.
हालांकि, राज्यपाल मलिक ने आतंकियों को ये भी चेतावनी दी कि जब कोई युवा मारा जाता है तो अच्छा नहीं लगता लेकिन कोई गोली चलाएगा तो जवाब भी गोली में मिलेगा. सेना गुलदस्ता भेंट नहीं करेगी. सत्यपाल मलिक के इस बयान के बाद हुर्रियत का भी बयान आया है हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारुख के मुताबिक बातचीत की पहल होती है तो इसके सकारात्मक नतीजे निकलेंगे. कश्मीर में बातचीत के अलावा कोई भी दूसरा तरीका नहीं है. हुर्रियत हमेशा बातचीत के पक्ष में रही है.
इससे पहले सरकार ने पुलवामा हमले के बाद हुर्रियत समेत अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस लेने के साथ ही उनपर टेरर फंडिंग पर एनआईए और ईडी का शिकंजा कस दिया था. इस वक्त यासीन मलिक समेत घाटी के सभी बड़े अलगावादी या तो जेल में हैं या घर में नजरबंद हैं. शनिवार को ही हुर्रियत कांफ्रेंस के अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक को श्रीनगर में उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया. माना जा रहा है कि सरकार की इसी कार्रवाई से घबराकर अलगावादी अब बातचीत की मेज़ पर आने की कोशिश कर रहे हैं. इधर इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है. बीजेपी का कहना है कि देश के विरोध में नारे बुलंद करने वालों से कोई बातचीत नहीं होगी तो कांग्रेस ने पाकिस्तान को बातचीत में सबसे बड़ा रोड़ा बताया. वहीं, एनसी नेता फारुक अब्दुल्ला ने तो पाकिस्तान से भी बातचीत की पेशकश कर दी.
सवाल ये है कि क्या वाकई में घाटी में बातचीत लायक माहौल तैयार हो चुका है. पुलवामा हमले के बाद से अब तक घाटी में कोई बड़ा हमला तो नहीं हुआ लेकिन आतंकियों का घात लगाकर सुरक्षाबलों को निशाना बनाना जारी है. तो ऐसे में क्या अलगाववादियों से बातचीज होनी चाहिए. सवाल ये भी है कि हुर्रियत के घुटनों पर आने के पीछे वजह क्या है. और इस माहौल में सरकार को क्या करना चाहिए?