दिल्ली एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार का बड़ा फैसला, अगले दो दिन बंद रहेंगे सभी सरकारी स्कूल
Delhi NCR Air Pollution: दिल्ली-एनसीआर में लोगों का सांस लेना दुभर होता जा रहा है. दिल्ली सरकार ने अगले दो दिन सभी प्राइवेट और सरकारी प्राइवेट स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया है.
Delhi NCR Air Pollution: दिल्ली एनसीआर में बीते कुछ दिनों में हवा बद से बदतर होती जा रही है. लोगों को भारी पॉल्यूशन के बीच सांस लेना मुश्किल हो रहा है. बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने अगले दो दिन दिल्ली में सभी सरकारी और प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया है. हालात को काबू में रखने के लिए GRAP 3 को लागू कर दिया गया है. जिसके तहत Delhi NCR में आपातकालीन सेवाओं, सरकारी निर्माण कार्यों व सामरिक महत्व के निर्माण कार्यो के इलावा सभी तरह के कंस्ट्रक्शन और डेमोलिशन पर पूरी तरह से मनाही होगी. इसके साथ ही दिल्ली एनसीआर में BS3 पेट्रोल और BS4 डीजल 4 पहिया वाहन बैन रहेगा.
दिल्ली-एनसीआर में हवा हुई जहरीली
पराली जलाने की घटनाओं और प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों के कारण दिल्ली में गुरुवार को धुंध छाई रही, जिससे आसमान धुंधला हो गया और सूरज छिप गया. वहीं, चिकित्सकों ने सांस संबंधी समस्याओं के बढ़ने की चेतावनी जारी की. वैज्ञानिकों ने अगले दो सप्ताह के दौरान दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण का स्तर बढ़ने की चेतावनी जारी की है. यह चिंताजनक इसीलिए है क्योंकि कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक पहले ही 400 से अधिक है.
इन जगहों का है बुरा हाल
भारत मौसम विज्ञान विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सुबह आठ बजे के आसपास सफदरजंग वेधशाला में दृश्यता घटकर केवल 500 मीटर रह गई, दिन के दौरान जैसे-जैसे तापमान बढ़ता रहा दृश्यता 800 मीटर हुई . शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) दोपहर तीन बजे 378 तक पहुंच गया. बुधवार को 24 घंटे का औसत एक्यूआई 364, मंगलवार को 359, सोमवार को 347, रविवार को 325, शनिवार को 304 और शुक्रवार को 261 था. पंजाबी बाग (439), द्वारका सेक्टर-8 (420), जहांगीरपुरी (403), रोहिणी (422), नरेला (422), वजीरपुर (406), बवाना (432), मुंडका (439), आनंद विहार (452) और न्यू मोती बाग (406) सहित शहर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया.
एक्यूआई शून्य से 50 के बीच 'अच्छा', 51 से 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 से 200 के बीच 'मध्यम', 201 से 300 के बीच 'खराब', 301 से 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 से 500 के बीच 'गंभीर' माना जाता है. इन स्थानों पर पीएम2.5 (सूक्ष्म कण जो सांस लेने पर श्वसन प्रणाली में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं) की सांद्रता 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित सीमा से छह से सात गुना अधिक रही.
बच्चे और बुजुर्गों पर है खतरा
स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बच्चों और बुजुर्गों में अस्थमा तथा फेफड़ों से संबंधित समस्याएं बढ़ सकती हैं. सफदरजंग अस्पताल में मेडिसिन विभाग के प्रमुख जुगल किशोर ने कहा कि यह सलाह दी जाती है कि क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित लोग अपनी दवाएं नियमित रूप से लें और जब तक बहुत जरूरी न हो, खुले में न जाएं.
उन्होंने लोगों को अपने घरों में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करने की सलाह दी. हाल के दिनों में प्रदूषक तत्वों के जमा होने के पीछे एक प्रमुख कारण मानसून के बाद बारिश का न होना है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को कहा था कि जिन क्षेत्रों में एक्यूआई लगातार पांच दिनों 400 अंक से अधिक दर्ज किया गया वहां सरकार निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाएगी .
सरकार ने दिए ये निर्देश
सरकार ने वाहन प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए ‘रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ’ अभियान की शुरुआत की है और सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने और वाहन प्रदूषण कम करने के लिए 1,000 निजी सीएनजी बसें किराए पर लेने की योजना बनाई है. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के एक विश्लेषण के अनुसार, राजधानी में एक नवंबर से 15 नवंबर तक प्रदूषण चरम पर होता है, क्योंकि इस समय पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़ जाते हैं.
पराली जलाने पर लगाम लगाने की तैयारी
पंजाब सरकार का लक्ष्य, इस साल सर्दियों में पराली जलाने के मामलों में 50 प्रतिशत तक कमी लाना है और छह जिलों में इन मामलों को पूरी तरह खत्म करना है, जिनमें होशियारपुर, मलेरकोटला, पठानकोट, रूपनगर, एसएएस नगर (मोहाली) और एसबीएस नगर शामिल हैं. हरियाणा का अनुमान है कि राज्य में लगभग 14.82 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है. इससे 73 लाख टन से अधिक धान का भूसा उत्पन्न होने की उम्मीद है. राज्य इस वर्ष पराली जलाने के मामलों को पूरी तरह रोकने का प्रयास कर रहा है. पुणे स्थित भारतीय ऊष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा विकसित एक संख्यात्मक मॉडल-आधारित प्रणाली के अनुसार, वर्तमान में शहर की खराब वायु गुणवत्ता में वाहन उत्सर्जन (11 प्रतिशत से 15 प्रतिशत) और पराली जलाने (सात प्रतिशत से 15 प्रतिशत) का सबसे ज्यादा योगदान है.