दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. दिल्‍ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है और दिल्‍ली सीएम को रिमांड में भेजने का फैसला बरकरार रखा है. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ये मामला केंद्र सरकार और केजरीवाल के बीच का नहीं, बल्कि उनके और प्रवर्तन निदेशालय के बीच का है. ईडी के पास पर्याप्त सामग्री थी जिसके कारण उन्हें केजरीवाल को गिरफ्तार करना पड़ा.

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दिल्ली उच्च न्यायालय का कहना है कि केजरीवाल के जांच में शामिल न होने और उनके द्वारा की गई देरी का असर न्यायिक हिरासत में बंद लोगों पर भी पड़ रहा है. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया है.  जांच में पूछताछ से मुख्यमंत्री को छूट नहीं दी जा सकती. इस मामले में किसी को कोई विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता है. ईडी के पास पर्याप्त सबूत मौजूद हैं. जज कानून से बंधे हैं, राजनीति से नहीं. 

गिरफ्तारी को हो चुके हैं 20 दिन

बता दें कि केजरीवाल की गिरफ्तार हुए 20 दिन हो गए हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने 21 मार्च को अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया था. केजरीवाल पहले ईडी की हिरासत में रहे. एक अप्रैल को उन्‍हें 15 दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया था. पिछले 9 दिनों से वो तिहाड़ जेल में हैं. इस मामले में अरविंद केजरीवाल की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें उन्‍होंने अपनी गिरफ्तारी और फिर ईडी रिमांड को असंवैधानिक बताया था. 

केजरीवाल पर क्‍या है आरोप

ED की ओर सेआम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति घोटाले के सरगना और मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है. ईडी ने अपनी रिमांड एप्लीकेशन में कहा कि केजरीवाल कुछ व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने की साजिश में शामिल थे और इस लाभ के बदले शराब व्यवसायियों से रिश्वत की मांग की. मालूम हो कि शराब नीति केस में केजरीवाल को गिरफ्तारी करने से पहले ED ने 9 समन भेजे थे. लेकिन वे एक बार भी पूछताछ के लिए नहीं गए. इसके बाद 21 मार्च को ED की टीम केजरीवाल के घर 10वां समन और सर्च वारंट लेकर पहुंची थी.