चीन, जापान और लैटिन अमेरिका समेत दुनियाभर में कोरोना के बिगड़ते हालातों को देखकर भारत भी अलर्ट हो गया है. नए साल से ठीक पहले कोरोना के नए वैरिएंट BF.7 की भारत में भी एंट्री हो चुकी है. नया वैरिएंट ज्‍यादा खतरनाक माना जा रहा है. इसके खतरे से भारत को बचाने के लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्‍य सरकारों तक हाई लेवल मीटिंग का दौर शुरू हो गया है. कोरोना को लेकर दिशा निर्देश भी जारी हो चुके हैं. BF.7 को लेकर मचे हाहाकार के बीच जीनोम सीक्वेंसिंग (Genome Sequencing) की चर्चा भी आपने जरूर सुनी होगी. इसी के जरिए कोरोना के नए स्‍ट्रेन का पता चला. आइए आपको बताते हैं कि ये क्‍या होता है और कैसे इससे ओमिक्रॉन के सब वैरिएंट का पता चल जाता है?

क्‍या है जीनोम सीक्वेंसिंग

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जिस तरह इंसान का शरीर DNA से मिलकर बनता है, वैसे ही वायरस भी या तो DNA या फिर RNA से बनता है. कोरोना वायरस RNA से बना है. जीनोम सीक्वेंसिंग वो तकनीक है, जिससे RNA की जेनेटिक जानकारी मिलती है. इसके जरिए ये पता लगाया जाता है कि वायरस किस तरह का दिखता है, कैसे हमला करता है और कैसे बढ़ता है. साधारण शब्‍दों में समझें तो जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए वायरस का पूरा बायोडाटा आपके सामने आ जाता है और ये पता चल पाता है कि लोग वायरस के किस वैरिएंट से संक्रमित हो रहे हैं. 

म्‍यूटेशन को समझने में मददगार

जिस तरह हम तमाम नई चीजें सीखते हैं और उन्‍हें आजमाते हैं, वायरस भी इसी फॉर्मूले पर काम करते हैं और समय-समय पर अपनी संरचना में बदलाव करते रहते हैं ताकि खुद को लंबे समय तक प्रभावी बनाकर रख सकें. एक तरह से ये उनकी सर्वाइवल प्रक्रिया का हिस्‍सा है. इसी को म्‍यूटेशन कहा जाता है. म्‍यूटेशन के दौरान कई बार वायरस कमजोर भी पड़ जाता है और कई बार बहुत ज्‍यादा मजबूत होकर सामने आता है. कई बार तो म्‍यूटेशन के बाद वायरस इतना खतरनाक हो जाता है कि मौजूदा दवाएं और वैक्‍सीन भी प्रभावी नहीं होती. इस स्थिति में वायरस से प्रभावित मरीज जल्‍दी ही गंभीर स्थिति में पहुंच सकता है. ऐसी स्थिति में जीनोम सीक्वेंसिंग काम आती है. इसके जरिए वायरस की ताकत का अंदाजा लगता है और उसके हिसाब से दवाओं, वैक्‍सीन आदि के फॉर्मूले में बदलाव किया जाता है या नए सिरे से उस वायरस को मारने के लिए दवाएं और वैक्‍सीन बनाई जाती हैं.

कैसे होती है जीनोम सीक्वेंसिंग 

संक्रमित लोगों का सैंपल लेकर जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए लैब में भेजा जाता है. लैब में बेहद ताकतवर कंप्यूटर के जरिए वायरस की आनुवंशिक संरचना का पता लगाया जाता हैं. इससे उसका जेनेटिक कोड निकल आता है और वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद मिलती है कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ.

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