IL&FS में फंसे हैं 1400 कंपनियों के लाखों कर्मचारियों के PF के 9700 करोड़
इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) में देश की 1,400 बड़ी कंपनियों की कुल 9,700 करोड़ रुपये की रकम फंसी है. इसमें लाखों कर्मचारियों की भविष्य निधि (PF) और पेंशन निधि (Pension Fund) का पैसा फंसा हुआ है.
इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) में देश की 1,400 बड़ी कंपनियों की कुल 9,700 करोड़ रुपये की रकम फंसी है. इसमें लाखों कर्मचारियों की भविष्य निधि (PF) और पेंशन निधि (Pension Fund) का पैसा फंसा हुआ है. इसका खुलासा राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) के समक्ष अपीलकर्ताओं की ओर से दाखिल पूरक हलफनामे से हुआ है. इस खुलासे में IL&FS से जुड़ी विभिन्न कंपनियां शामिल हैं. इनमें 970 कंपनियों के समूह आईएफसीआई फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड, IL&FS ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क्स (आईटीएनएल) और एचआरईएल शामिल हैं.
सूची में शक्तिशाली सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (PSU) जैसी प्रमाणिक भारतीय कंपनियां, अनेक कॉरपोरेट और आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड व अन्य जैसी इकाइयां शामिल हैं. कर्मचारी वर्ग की बचत की राशि इसमें फंसी हुई है. मामला हालांकि NCLAT के पास है, लेकिन IL&FS या सरकार इस पैसे को वापस करने की स्थिति में नहीं है. इसमें संलिप्त कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं.
मालूम हो कि कंपनी में गड़बड़ी उजागर होने से पहले सितंबर 2018 तक बांड की रेटिंग 'एएए' थी. एनसीएलएटी ने कर्ज में डूबी IL&FS की अंबर कंपनियों के ऐसे निवेश फंडों में पेंशन और भविष्यनिधि के निवेशों की सुरक्षा करने का कदम उठाने का आदेश दिया था.
न्यायाधिकरण 16 अप्रैल की बैठक में कर्मचारी भविष्य निधि और पेंशन निधि के बकाये कुछ भुगतान को जारी करने में दिलचस्पी ले सकता है. दो सदस्यीय पीठ ने कहा, "कितनी कंपनियों की भविष्य निधियां और पेंशन निधियां हैं? आप उनको भुगतान निर्गत करें. हम चाहते है कि उनका भुगतान पहले जारी हो."
IL&FS के वकील ने कहा कि अगर अंबर कंपनियों के व्यक्तिगत कर्जदाताओं को भुगतान किया जाएगा तो इससे अन्य समूह वाली इकाइयों के समाधान पर घातक प्रभाव पड़ेगा. कर्मचारी वर्ग के लाखों लोगों के इस विषाणु से प्रभावित होने के हालात को देखते हुए 16 अप्रैल को इस गतिरोध का कुछ समाधान देखने को मिल सकता है.
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कंपनी कार्य मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक कार्यालय (पश्चिम) में संयुक्त निदेशक राकेश तिवारी द्वारा दाखिल पूरक हलफनामे का मतलब है कि सरकार को मौजूदा संकट के हालात की जानकारी है और वह एनसीएलएटी की ओर से कार्रवाई चाहती है. तिवारी ने अपने हलफनामे के जरिए तर्क दिया है कि इस समूह की कर्ज चुकाने की क्षमता और सुशासन और प्रबंधन सुनिश्चित कराने में पर्याप्त सार्वजनिक हित है.