Peak power demand deficit: केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि 2020-21 की अवधि में देश में पीक समय में बिजली की कमी लगभग खत्‍म हो गई है. इसका मतलब कि पीक समय में डिमांड के मुताबिक बिजली की सप्‍लाई की गई. मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पीक समय में डिमांड और सप्‍लाई में अंतर 2020-21 में 0.4 फीसदी रहा, जो 2007-08 में 16.6 फीसदी और 2011-12 में 10.6 फीसदी दर्ज की गई थी. 

मानसून के बाद बढ़ी है डिमांड 

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बिजली मंत्रालय का कहना है कि चालू वित्त वर्ष (2021-22) में अक्टूबर तक, बिजली की पीक समय की डिमांड (-) 1.2 फीसदी रही है और बिजली उत्पादन पर मानसून के बाद के सालाना दबाव के कारण यह मामूली बढ़ोतरी हुई है. 

मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि साल के अंत तक इसके सामान्य होने की संभावना है. भारत में 2007-08 में 16.6 फीसदी की भारी बिजली की कमी थी और 2011-12 में यह 10.6 फीसदी थी. 

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सरकारी स्‍कीम्‍स का दिखा असर 

मंत्रालय ने बयान में कहा गया कि सरकार के प्रोगेसिव अप्रोच और एक्‍शन के जरिए पिछले तीन वर्षों में यह अंतर लगभग समाप्त होने के करीब है. 2020-21 में यह 0.4 फीसदी, 2019-20 में 0.7 फीसदी और 2018-19 में 0.8 फीसदीरहा।

बिजली की कमी वाले देश से डिमांड के मुताबिक सप्‍लाई के स्थिति में यह बदलाव सरकार की ओर से लाई गई मौजूदा योजनाओं के जरिए मुमकिन हो पाया है. डिमांड-सप्‍लाई के बीच का अंतर 1 फीसदी से भी कम रह गया है. 

पावर सेक्‍टर के लिए केंद्र सरकार की ओर से चलाई गई प्रमुख योजनाओं में दीन दयाल उपाध्‍याय ग्राम ज्‍योति योजना (DDUGJY) है. जुलाई 2015 में यह स्‍कीम शुरू की गई. इसके जरिए रुरल सेक्‍टर में पावर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को बूस्‍ट देने बहम रही है. वहीं, इंटीग्रेटेड पावर डेवलप स्‍कीम (IPDS) के जरिए अर्बन सेक्‍टर में पावर इंफ्रा गैप को खत्‍म करने में मदद मिली है.