भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने शुक्रवार को कहा कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता का सम्मान नहीं करती है, उन्हें देर-सवेर वित्तीय बाजारों की नाराजगी का सामना करना पड़ता है. विरल आचार्य के इस बयान के आधार पर कुछ विशेषज्ञ सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच मतभेदों की बात कह रहे हैं. 

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विरल आचार्य ने कहा कि आजादी में दखल देने के विपरीत जो सरकारें केंद्रीय बैंक को स्वतंत्रता के साथ काम करने देती हैं, उनको कम लागत पर उधारी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्यार मिलता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस सरकार पर लोगों का भरोसा बढ़ जाता है. उन्होंने ने कहा, 'रिजर्व बैंक सरकार का ऐसा सच्चा दोस्त है, जो ईमानदारी के साथ सरकार को अप्रिय सच्चाई बताता है.'

विरल आचार्य ने चेतावनी देते हुए कहा, 'केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है. इससे पूंजी बाजार में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है. वित्तीय और मैक्रोइकनॉमिक स्थिरता के लिए यह जरूरी है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्ता को बढ़ाया जाए. केंद्रीय बैंक को सरकारी बैंकों की निगरानी करने के लिए अधिक अधिकार दिए जाएं.' 

उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों पर कार्रवाई के लिए रिजर्व बैंक के पास सीमित अधिकार हैं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरकारी अधिकारियों की ओर से कई बार आरबीआई पर यह दबाव भी डाला गया है कि वह कुछ बैंकों को लेंडिंग के नियमों में ढील दे, जबकि उनका कैपिटल बेस काफी कमजोर है.