QR Code on Medicines: नकली दवाओं के खेल को खत्म करने के लिए QR कोड की व्यवस्था अनिवार्य कर दी गई है. इसे लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी किया था. अब यह व्यवस्था 1 अगस्त, 2023 से अनिवार्य होगी. DCGI (Drugs Controller General of India) ने सभी दवा निर्माताओं को आदेश दिया है. क्यूआर कोड लगाने का ये नियम 300 दवाओं के लिए जरूरी होगा. सरकार ने इसके लिए Drug and Cosmetics Act, 1940 में संशोधन किया है. पहले ये नियम 1 जनवरी, 2023 से लागू होने वाला था, लेकिन फिर इसे टाल दिया गया था. इस नए सिस्टम से दवा बनाने वाली कंपनी को ट्रैक करना आसान होगा. ये जानकारी भी आसानी से जुटाई जा सकेगी कि क्या फॉर्मूला से कोई छेड़छाड़ हुई है, कच्चा माल कहां से आया है और प्रॉडक्ट कहां जा रहा है.

QR में क्या जानकारी होगी?

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- यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड होगा

- दवा का नाम और Generic नाम बताना होगा

- ब्रांड और निर्माता की जानकारी

- बैच नंबर

- उत्पादन और Expiry की तारीख

- लाइसेंस

- इंपोर्टर की जानकारी

क्या होता है API

API यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स. ये इंटरमीडिएट्स, टेबलेट्स, कैप्सूल्स और सिरप बनाने के मुख्य रॉ मैटेरियल्स होते हैं. किसी भी दवाई के बनने में एपीआई की मुख्य भूमिका होती है और इसके लिए भारतीय कंपनियां काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं. नकली, ख़राब या गुणवत्ता से नीचे के API से बनी दवा से मरीजों को फायदा नहीं होता. DTAB यानी ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने जून, 2019 में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. कई रिपोर्ट में दावा किया गया था के मुताबिक भारत में बनी 20% दवाएं नकली होती हैं. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 3% दवाओं की क्वालिटी घटिया होती है. 

कंपनियों ने भी उठाई थी मांग

साल 2011 से ही सरकार इस सिस्टम को लागू करने की कोशिश कर रही थी लेकिन फार्मा कंपनियों के बार-बार मना करने की वजह से इस पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया जा सका था. फार्मा कंपनियां इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित थी कि वो अलग-अलग सरकारी विभाग अलग-अलग दिशा निर्देश जारी करेंगे. कंपनियों की मांग थी कि देशभर में एक समान क्यूआर कोड लागू किया जाए, जिसके बाद साल 2019 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने ये ड्राफ्ट तैयार किया. जिसके तहत एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रिडेएंट्स (API) के लिए क्यूआर कोड जरूरी करना सुझाया गया था.

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