नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा 'चैलेंज' ही उन्हें 2019 में बना सकता है दोबारा PM
आर्थिक मोर्चे पर साल 2018 में मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सामने आई है. ऐसे में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चैलेंज है कि वह इन चुनौतियों से कैसे पार पाएंगे.
देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? क्या पीएम नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता संभालेंगे? क्या वह उन आर्थिक चुनौतियों का सामना कर पाएंगे, जो ग्रोथ के पहिए थामे खड़ी हैं? इन चुनौतियों के साथ मोदी सरकार के लिए 2019 का चुनाव कितना आसान होगा? यह तमान सवाल पिछले कई महीनों से उठ रहे हैं. क्योंकि, आर्थिक मोर्चे पर साल 2018 में मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सामने आई है. ऐसे में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चैलेंज है कि वह इन चुनौतियों से कैसे पार पाएंगे.
मोदी सरकार के सामने जो सबसे बड़ा 'चैलेंज' हैं, वह आर्थिक मोर्चे पर ही है. कच्चे तेल, रुपये की कमजोरी, बैंकों का NPA, RBI के साथ तकरार और वित्तीय घाटा तमाम उन चुनौतियों में शामिल हैं, जिनसे मोदी सरकार को पार पाना होगा. हालांकि, अब पीएम मोदी के लिए अच्छे संकेत मिलने लगे हैं. 2019 के आम चुनाव से पहले उनका सबसे बड़ा 'चैलेंज' ही उन्हें फायदा पहुंचाता दिख रहा है. यह चैलेंज है-कच्चा तेल.
कच्चे तेल की उल्टी चाल
दरअसल, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अक्टूबर के मुकाबले 28 प्रतिशत से भी ज्यादा की बड़ी गिरावट आ चुकी है. अक्टूबर महीने में कच्चा तेल 86 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया था. यह चार सालों में कच्चे तेल का उच्चतम स्तर था. हालांकि, नवंबर अंत तक आते-आते कच्चे तेल के तेवर नरम पड़े हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड 60 डॉलर प्रति बैरल के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे लुढ़क चुका है. कच्चे तेल में गिरावट सरकार के लिए बड़ी राहत से कम नहीं है और वह भी उस वक्त जब दुनियाभर के एक्सपर्ट्स इसके 100 डॉलर प्रति बैरल तक जाने की संभावना जता चुके थे.
अमेरिका और रूस ने पहुंचाया फायदा
आशंका जताई जा रही थी कि कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती और आपूर्ति में कमी से इसके दाम 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. अमेरिका ने ईरान पर पाबंदियों को बावजूद आठ देशों को तेल आयात की छूट दी. इसके अलावा, अमेरिका और रूस ने तेल उत्पादन में कटौती के बजाए वृद्धि की है. साथ ही सऊदी अरब भी उत्पादन लगातार बढ़ा रहा है. हाल ही में अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि कच्चा तेल 54 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है.
क्यों गिरेगी कच्चे तेल की कीमतें?
एनर्जी एक्सपर्ट्स का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट कौ दौर आगे भी जारी रहेगा. दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक पर उत्पादन बढ़ाने का दबाव बनाया है. साथ ही अमेरिका और रूस भी तेल उत्पादन में वृद्धि कर रहे हैं. इसके अलावा अमेरिका ने अगले साल से हर रोज 1 करोड़ 20 लाख बैरल तेल उत्पादन की योजना बनाई है. वहीं, भारत समेत आठ देशों को ईरान से तेल आयात करने की छूट भी दे दी है. यही वजह है कि आने वाले समय में कच्चे तेल की गिरावट जारी रहने के आसार हैं.
क्यों हैं पीएम मोदी के लिए खुशखबरी
कच्चे तेल की घटती कीमतें मोदी सरकार के लिए राहत भरी खबर है. यही कारण है कि साल 2019 में पीएम मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के दावे और मजबूत हो सकते हैं. क्योंकि, कच्चे तेल की कीमतों के गिरने से भारत के इंपोर्ट बिल में जबरदस्त गिरावट देखने को मिलेगी. क्योंकि, भारत बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करता है. हाल ही में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से ही आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को झटका लगा था. लेकिन, अब कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से अच्छी खबर मोदी सरकार के लिए और क्या हो सकती है.
क्या होगा मोदी सरकार को फायदा
इंपोर्ट बिल में गिरावट आने से दूसरा फायदा यह होगा कि सरकार का चालू खाता घाटा (CAD) का अंतर कम होगा. यह अंतर आयात और निर्यात मूल्य में देखने को मिलता है. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, अगर कच्चे तेल की मौजूदा कीमत में आगे भी गिरावट रही तो इस वित्त वर्ष में अनुमानित तेल आयात बिल में 8.8 लाख करोड़ रुपए की कमी देखने को मिल सकती है.
मिलेंगे तमाम फायदे
कच्चे तेल के सस्ता होने से रुपये पर भी दबाव घटेगा. डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होगा और तेल खरीदने के लिए भारत को कम डॉलर की जरूरत होगी. यही नहीं, मोदी सरकार को फ्यूल और LPG की सब्सिडी पर कम खर्च करना होगा. तेल कंपनियां भी पेट्रोल-डीजल के दाम में और कटौती कर सकेंगी. आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए भारत सरकार के पास खुला विकल्प होगा.
RBI के साथ खत्म होगा विवाद
कच्चे तेल के सस्ता होने से सरकार को एक और बड़ी राहत मिल सकती है. पिछले कई दिनों से चर्चा में रहा आरबीआई के साथ टकराव का मसला भी सुलझ सकता है. दरअसल, कच्चा तेल सस्ता होगा तो आयात बिल घटेगा और इसके घटने से सिस्टम में ज्यादा पूंजी आएगी. तेल के सस्ते होने से महंगाई भी घटेगी. आरबीआई के पास मौजूदा दरों के मुकाबले ब्याद दर में कटौती की संभावना होगी.
सरकार दे सकती है तोहफे
कच्चे तेल पर कम पैसे खर्च होने से मोदी सरकार के पास विकल्प होगा कि वह कल्याणकारी योजनाओं पर ज्यादा खर्च कर पाएंगी. सरकार के पास ज्यादा राजस्व जुटाने का भी विकल्प होगा. पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी नहीं घटानी होगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार अगले साल चुनाव से पहले कई बड़े ऐलान कर सकती है. 1 फरवरी को पेश होने वाले अंतरिम बजट में कई घोषणाओं की जा सकती हैं. सस्ता कच्चे तेल के कारण सरकार को राजस्व की भी दिक्कत नहीं होगी. इसका सबसे बड़ा फायदा पीएम मोदी के लिए है. क्योंकि, कुछ समय से जो पीएम मोदी का सबसे बड़ा चैलेंज था, अब वही 2019 की राह आसान बनाएगा.