रुपये में तेज गिरावट, तेल की बढ़ती कीमतें और चालू खाता घाटे में वृद्धि, ये कुछ ऐसी बातें हैं जो हमें मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार की याद दिलाते हैं. ऐसे में कई लोग ये सवाल कर सकते हैं कि आखिर मोदी सरकार में आर्थिक स्थिति में बदला क्या? राजकोषीय घाटा, चालू खाता, महंगाई और ब्याज दर ये चार ऐसे सुरक्षा कवच है जो मोदी सरकार ने चार साल में अर्थव्यवस्था को दिए हैं. इनकी मदद से आज देश किसी भी आर्थिक जोखिम का मुकाबला करने में अधिक सक्षम है.

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आज हालात उतने निराशाजनक नहीं हैं, और आर्थिक जोखिमों के लिहाज से अर्जेंटीना और तुर्की के मुकाबले भारत बहुत बेहतर स्थिति में है. हालांकि अगर तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाती हैं, तो हालात तेजी से बदलेंगे और देश को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन आज की बात करें, तो हमारे पास चार ऐसे सुरक्षा कवच हैं, जिनके कारण पांच साल पहले के मुकाबले हम बहुत बेहतर स्थिति में हैं-

1. राजकोषीय घाटा

केंद्र में मोदी के आने के बाद भारत ने मोटे तौर पर राजकोषीय घाटे को काबू में रखने की रणनीति अपनाई. 2014 से 2018 के बीच राजकोषीय घाटा कम होकर जीडीपी के मुकाबले औसतन 3.9 प्रतिशत रहा है, जबकि 2009 से 2013 के बीच ये घाटा 5.5 प्रतिशत था. सरकारी आय-खर्च में अनुशासन बरतने का परिणाम है कि आज भारत इस स्थिति में है कि यदि उसे खर्च बढ़ाना पड़े तो ऐसा किया जा सकता है. इससे अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां आएंगी, लेकिन उसका रूप विकराल नहीं होगा. उस पर काबू पाया जा सकता है.

2. चालू खाता

कच्चे तेल और सोने की कीमतों में आई गिरावट के कारण 2013 से 2017 के बीच चालू खाते में सुधार हुआ. 2018 में चालू खाता घाटा जीडीपी के मुकाबले उम्मीद से बढ़कर सुधार दर्ज करते हुए 1.9 प्रतिशत के स्तर पर आ गया. चूंकि अब तेल की कीमतों में एक बार फिर तेजी आ रही है, इसलिए सरकार पर दबाव है.  ब्लूमबर्ग के सर्वे का अनुमान है कि 2019 में चालू खाता घाटा 2.5 प्रतिशत होगा. चालू खाता घाटा बढ़ने से बाहरी जोखिम बढ़ते हैं, लेकिन 2013 की बात करें, तो देश की स्थिति बहुत बेहतर है. 2013 में चालू खाता घाटा जीडीपी के मुकाबले 4.8 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया था. 

इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फिनांस के डिप्टी चीफ इकनॉमिस्ट सेरगी लानाऊ ने कहा, 'तेल कीमतें बढ़ने के कारण भारत अभी भी जोखिमपूर्ण बना हुआ है, लेकिन आज इसकी वाह्य स्थिति 2013 के मुकाबले बहुत अधिक मजबूत है.'

3. महंगाई

कीमतों को काबू में रखने के लिए केंद्रीय बैंक एक बार फिर मुस्तैद हो गया है. हालांकि अच्छी बात ये है कि 2014 से 2018 के बीच उपभोक्ता महंगाई औसतन 5.7 प्रतिशत रही है, जबकि 2009 से 2013 के बीच ये आंकड़ा 10.1 प्रतिशत के स्तर पर था. इस तरह महंगाई के मोर्चे पर भारत आज बहुत बेहतर स्थिति में है. कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उपभोक्ता कीमतों में राहत मिलने के साथ ही, महंगाई के खिलाफ सोने को हेज करने की मांग भी खत्म हो गई. इससे चालू खाता घाटे पर दबाव काफी कम हुआ.

4. विदेशी मुद्रा भंडार

2014 से 2018 के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 120 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है. इस साल अप्रैल में विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड 426 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था. रिजर्व बैंक ने 2013 के संकट के बाद से ही लगातार डॉलर खरीदने की रणनीति को अपनाया. हालांकि अप्रैल के बाद से रिजर्व में 25 अरब डॉलर की कमी आई है, लेकिन फिर भी अभी देश बहुत बेहतर स्थिति में है. भारत नौ महीने की आयात जरूरतों को पूरा करने की स्थिति में है, जबकि आमतौर पर माना जाता है कि तीन महीनों की जरूरतें को पूरा करने का भंडार होना चाहिए.