गर्मियों के मौसम में बिजली की डिमांड को देखते हुए सरकार ने तैयारियां कर ली है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के.सिंह ने हाई प्राइज डे अहेड (HP-DAM) और सरप्लस पावर पोर्टल (PUShP) लॉन्च किया है. इसके जरिए कुछ श्रेणी के विक्रेताओं द्वारा पीक डिमांड सीजन में 12 रुपये प्रति यूनिट की सीमा से अधिक कीमत पर बिजली की अधिक उपलब्धता सुनिश्चित होगी. विद्युत मंत्रालय के द्वारा एक बयान जारी कर इसकी पुष्टि की गई है. 

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फरवरी में बिजली नियामक संस्था CERC ने HP-DAM सेगमेंट को मंजूरी दी थी. इस सेगमेंट में बिजली को अधिकतम 50 रुपए प्रति यूनिट की कीमत पर बेचा जा सकता है. HP-DAM फंसे हुए गैस और आयातित कोयला आधारित पावर प्लांट को गर्मियों में बढ़ी हुई मांग को पूरा करने में मदद करेगा. साथ ही ये बिजली बनाने और बेचने में भी मदद करेगा. इसके अलावा ये नया सेगमेंट बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम के जरिए भी बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा. गर्मियों में बिजली की मांग 239 गीगा वॉट तक पहुंचना अनुमानित है.     

कार्रवाई के दिए निर्देश

केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के मुताबिक HP-DAM में केवल उन्हीं उत्पादन क्षमता को संचालित करने की परमिशन मिलेगी, जिनकी बिजली उत्पादन की लागत 12 रुपये प्रति यूनिट से अधिक है. उत्पादन की लागत यदि 12 रुपए प्रति यूनिट से कम है तो उन जनरेंटर को पावर एक्सचेंज के इंटीग्रेटेड डे अहेड मार्केट (I-DAM) में बिजली की पेशकश करनी होगी.इसमें अधिकतम सीमा 12 रुपए होगी. केंद्रीय मंत्री ने सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी और ग्रिड कंट्रोल से HP-DAM की उचित कीमतें सुनिश्चित करने के लिए कहा है. इसके अलावा उत्पादन लागत से काफी ज्यादा कीमत वसूलने वालों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए हैं.      

2022 में लगाई गई थी  लिमिट

साल 2022 में विद्युत मंत्रालय ने के सामने ये तथ्य आया था कि कुछ एक्सचेंज में कई दिन कीमतें 20 रुपए प्रति यूनिट तक पहुंच गई थी. इसके बाद नियामक संस्था CERC को निर्देश दिए गए थे कि एक्सचेंज पर 12 रुपए की लिमिट लगा दी जाए. इसका उद्देश्य मुनाफाखोरी रोकना था. ये लिमिट एक अप्रैल 2022 से डे अहेड और रियल टाइम मार्केट में शुरू हो गई थी. इसके बाद छह मई 2022 से सभी सेगमेंट में लागू हो गई थी. इस कदम ने ग्राहकों के लिए कीमत को तर्कसंगत बना दिया था. 

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अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस की ऊंची कीमतों के कारण;गैस के जरिए बनाई गई बिजली महंगी हो गई थी. ये 12 रुपए प्रति यूनिट से अधिक थी. इस क्षमता से बाजार में बेचा नहीं जा सकता था. इसी तरह आयातित कोयला आधारित सयंत्र और बैटरी स्टोरेज सिस्टम में स्टोर की गई रिन्यूएबल एनर्जी को संचालित नहीं किया जा सकता. इसकी उत्पादन लागत बहुत ज्यादा थी.